
पड़ोसी देश नेपाल से कुछ समय से कई खबरें आ रही हैं. सब की सब इस बात से जुड़ी हुई कि नेपाल को वापस हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए. बता दें कि लंबे समय तक ये दुनिया का अकेला हिंदू देश रहा, लेकिन लोकतंत्र के आने के साथ ही इसने खुद को सेकुलर बना दिया. अब वहां लगातार आंदोलन हो रहे हैं कि लोकतंत्र हटाकर वापस शाही परिवार को ही कमान सौंपी जाए.
क्या मांग हो रही है
कुछ रोज पहले काठमांडू की सड़कों पर उतरे राजशाही समर्थकों ने राजा वापस आओ, देश बचाओ, जैसे नारे लगाए. वे आरोप लगा रहे हैं कि देश में सारी राजनैतिक पार्टियां करप्ट हैं. साथ ही वे दूसरे धर्मों को बढ़ावा दे रही हैं. ऐसे में नेपाल की पहचान खत्म हो जाएगी. आम जनता की नजरों में इसका इलाज ये है कि राजपरिवार दोबारा शासन करे. वो नियम तय करेगा और सबको मानना होगा.
क्यों परेशान हैं देशवासी
सबसे बड़ी परेशानी हैं, वहां के इकनॉमिक और सोशल हालात. राजनैतिक दलों के करप्शन और ढीले रवैए की बात अक्सर कही जाती है. नेपाल के युवा काम-धाम के लिए लगातार दूसरे देशों की तरफ पलायन कर रहे हैं. लेकिन नेपाल की फॉरेन पॉलिसी से भी लोग डर चुके.
असल में राजशाही जाने के बाद पॉलिटिकल पार्टियां चीन के काफी करीब हो गईं. इनवेस्टमेंट के नाम पर चीन पर आरोप है कि वो नेपाल में घुसपैठ कर चुका. वहां की सड़कों से लेकर एयरपोर्ट तक पर चीन का काम जारी है. यहां तक कि नेपाल में चीनी भाषा सिखाई जा रही है. ऐसे में नेपाली जनता को डर है कि कई दूसरे देशों की तरह उसे भी ड्रैगन कर्ज में न डुबा दे.
धर्मांतरण के आरोप
राजशाही जाने के बाद इस देश में कन्वर्जन भी तेजी से बढ़ा. थिंक टैंक गॉर्डन कॉनवेल थियोलॉजिकल सेमिन्री की दशकभर पुरानी रिपोर्ट साफ कहती है कि नेपाल में चर्च जिस तेजी से बढ़े हैं, वो दुनिया में सबसे ज्यादा है. ये धर्मांतरण दलित समुदाय में ज्यादा दिख रहा है, जो पहले बौद्ध या हिंदू हुआ करते थे.
किन धर्मों के लोग हैं
2021 के सेंसस के मुताबिक देश में हिंदू आबादी 81 प्रतिशत से भी ज्यादा है. इसके बाद 8 प्रतिशत के साथ बौद्ध धर्म के लोग हैं. इसके बाद इस्लाम को मानने वाले हैं, जो 5 प्रतिशत से कुछ ज्यादा रहे. इसके बाद ईसाई धर्म हैं, और बाकी मिले-जुले धर्म के लोग रहते हैं.
क्रिश्चियन कम्युनिटी सर्वे के मुताबिक, कुछ ही सालों में यहां 7,758 चर्च बन गए, और बौद्ध धर्म को मानने वाली बड़ी आबादी ईसाई धर्म अपना चुकी. सत्तर के दशक के बाद से क्रिश्चिएनिटी में सालाना करीब 11 प्रतिशत की बढ़त हुई. देश का बड़ा खेमा इसे लेकर परेशान है. वे अपनी आजमाई हुई व्यवस्था में वापस लौटना चाहते हैं ताकि राजा ही सब तय करे.
कब खत्म हुई थी राजशाही
साल 2008 में नेपाल के आखिरी राजा ज्ञानेंद्र को अपदस्थ करते हुए राजशाही खत्म कर दी गई. इससे पहले लगभग ढाई सौ सालों तक रॉयल परिवार ही शासन करता रहा. जून 2001 में रॉयल परिवार के ही एक सदस्य ने फैमिली के 9 सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके बाद मची उथल-पुथल ने काफी कुछ बदल दिया. खासकर राजनैतिक तौर पर. जनता असंतुष्ट रहने लगी. इस बीच माओवादी ताकतें मजबूत हुईं और राजशाही हटाने की बात गहराती चली गई.
अब कहां है आखिरी राजा
ज्ञानेंद को ही दोबारा देश की बागडोर देने की मांग हो रही है. सत्ता जाने के बाद से वे खबरों में तो नहीं हैं, लेकिन राजा तो राजा ही होता है. उनके पास अच्छी-खासी संपत्ति है. यहां तक कि नेपाल के अलावा अफ्रीकी देशों में भी उनका काम चल रहा है.
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के बारे में यह भी माना जाता है कि वे धर्म को लेकर कट्टर हैं. इसका मतलब ये है कि अगर देर-सवेर उनके हाथ में शासन आया, तो वे उसे हिंदू देश तो घोषित कर ही सकेंगे. कम से कम फिलहाल आंदोलन कर रहे लोगों का यही मानना है.
कितनी दौलत है उनके पास
राजा के पद से हटाए जाने के बाद भी ज्ञानेंद्र के पास अकूत दौलत रही. उनके पास कई पैलेस हैं, जैसे निर्मल निवास, जीवन निवास, नागार्जुन और गोकर्ण. ये सारे महल काठमांडू में हैं. इसमें हजार एकड़ में फैला नागार्जुन जंगल भी शामिल है. यहां बता दें कि राजपरिवार के लगभग सभी सदस्यों की हत्या के बाद उनके हिस्से की जायदाद भी ज्ञानेंद्र को मिली.
फॉरेन इनवेस्टमेंट भी अच्छा-खासा
सत्ता मिलने से पहले वे बड़े बिजनेसमैन हुआ करते थे. इस दौरान उन्होंने नेपाल और बाहर के देशों में 2 सौ मिलियन डॉलर के लगभग इनवेस्टमेंट किया. साल 2008 में सोलटी होटल में ही उनका इनवेस्टमेंट सौ मिलियन डॉलर से ज्यादा का था. कथित तौर पर चाय बागानों के काफी सारे शेयरों के वे मालिक हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि नेपाल में प्रॉपर्टी और बिजनेस के अलावा ज्ञानेंद्र का बिजनेस बाहर के देशों में भी फैला हुआ है. जैसे मालदीव में एक द्वीप और नाइजीरिया में ऑइल में पैसे लगाए हुए हैं.
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की दौलत की ये झलक कोविड की पहली लहर के दौरान दिखी भी थी. उन्होंने एक ट्रस्ट के जरिए 2 करोड़ रुपए दान किए थे.