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कौन सा तर्क देकर जर्मनी में चाइल्ड पोर्न पर घटा दी गई सजा की अवधि, क्यों कुछ समूह कर रहे सेलिब्रेट?

लगभग तीन साल पहले जर्मनी में चाइल्ड पोर्न को लेकर न्यूनतम एक साल की सजा तय थी, जो अब घटकर तीन महीने रह गई. जर्मन संसद ने हाल में एक बिल पारित किया. इसके तहत चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल को रखना या बांटना गंभीर अपराध की कैटेगरी से घटकर मामूली क्राइम में आ चुका, जिसका दोषी पाए जाने पर छोटी सजा या जुर्माना देना होता है.

बच्चों के साथ यौन अपराध बढ़ रहे हैं. (Photo- Getty Images) बच्चों के साथ यौन अपराध बढ़ रहे हैं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:37 PM IST

जर्मनी में अपराधों की कुल दर कम हुई, लेकिन चाइल्ड पोर्न बनाने, देखने और बांटने वालों में जबर्दस्त इजाफा माना जा रहा है. साल 2021 में ये उससे पिछले साल के मुकाबले 108.8% तक बढ़ा. एक तरफ चाइल्ड सेक्सुअल कंटेंट बढ़ रहा है, वहीं जर्मन पार्लियामेंट ने हाल में एक ऐसा फैसला लिया, जो विवादों में है. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस देश में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल (CSAM) को अपराध की श्रेणी से लगभग हटा दिया गया. 

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क्या हुआ है बदलाव

जर्मन संसद बुंडेस्टाग ने हाल ही में एक प्रेस रिलीज जारी किया, जिसमें उसकी लीगल अफेयर्स कमेटी का जिक्र था. इस कमेटी ने चाइल्ड पोर्न रखने पर तय सजा की अवधि घटाकर न्यूनतम एक साल से तीन महीने कर दी. वहीं इस तरह का कंटेंट बांटने या फैलाने वालों को छह महीने की सजा मिलेगी. चाइल्ड पोर्न से जुड़ा ऑफेंस क्रिमिनल कोड के सेक्शन 184बी के तहत मामूली या सब-क्राइम की श्रेणी में आता है. नया बिल साल 2021 में आए लॉ को निरस्त करता है, जिसके अनुसार चाइल्ड पोर्न अपराध हुआ करता था. 

क्या दलील दी जा रही है

नए बिल में उस मां का उदाहरण दिया गया, जिसने चूकवश पोर्न बांट दिया था, और सजा मिली थी. अब उसकी सजा भी निरस्त हो रही है. बता दें कि मामला स्कूल पढ़ने वाले एक बच्चे की मां का था. वो दूसरे पेरेंट्स को चाइल्ड पोर्न पर चेता रही थी. इसी कड़ी में उसने कुछ ऐसी तस्वीरें शेयर कर दीं, जो चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मटेरियल में आते हैं. इसके बाद उसे भी सजा हुई. नए बिल के बाद ये सजा खत्म हो गई है. 

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किशोरों को बचाना जाना एक मकसद

यूरोपियन कंजर्वेटिव में छपी रिपोर्ट कहती है कि जर्मनी में हुआ ये बदलाव सीधे यूरोपियन यूनियन के निर्देशों का उल्लंघन करता है जो किसी भी तरह से चाइल्ड सेक्सुअल कंटेंट रखने या उसके सर्कुलेशन को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखता है.

वहीं बिल का समर्थन करने वालों का एक तर्क ये है कि अगर इसे दुष्कर्म की श्रेणी में डाल दिया जाए तो इसका सबसे ज्यादा असर किशोरों पर होगा, जो इसे देखते या दोस्तों में सर्कुलेट करते हैं. कई बार इस गलती की वजह से उनके अभिभावक भी फंस जाते हैं, जैसा जर्मनी में उस मां के मामले में दिखा जो बच्चे के फोन पर ये देखकर बाकी पेरेंट्स को चेतावनी दे रही थी. 

बिल में दलील है कि इसे क्राइम से घटाकर मिसडेमेनर की श्रेणी में रखने की तात्कालिक जरूरत है ताकि खासकर किशोर अपराधियों को बचाया जा सके, जो केवल अपनी बढ़ रही उम्र के चलते ऐसा कर जाते हैं. 

क्या कह रहा दूसरा खेमा

इस बिल का विरोध शुरू हो चुका है. विपक्षी पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) ने बिल का विरोध करते हुए एक बयान भी छापा, जो कहता है कि चाइल्ड पोर्न को रखना या बांटना निश्चित तौर पर क्राइम की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. साथ ही बिल जिन मुश्किल मामलों (जैसे पेरेंट्स के गलती से फंसने का केस) का हवाला देते हुए ऐसा कर चुका, उन केसेज को अलग से डील किया जाना चाहिए. 

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इन समूहों का मिल रहा सपोर्ट

जर्मनी में ये बदलाव तब हुआ, जबकि सोसायटी में एक खास तबका तैयार हो रहा है. वे खुद पीडोफिल नहीं, बल्कि पीडोसेक्सुएल या माइनर-अट्रैक्टेड पर्सन कहते हैं. ये तर्क देते हैं कि वे बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, बल्कि जैविक तौर पर उनमें ऐसी चीजें हैं कि वे खुद को माइनर्स के लिए आकर्षित महसूस करते हैं. जर्मनी में भी पीडोफिल लोगों को पीडोसेक्सुअल कहने और उनकी वकालत करने वालों की कमी नहीं. 

एक संस्था है के13. इसके डायरेक्टर जो खुद केई बार चाइल्ड पोर्न के मामलों में फंस चुके, वे मांग कर रहे हैं कि यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र घटाकर 12 साल कर देनी चाहिए. 

क्या है पीडोफीलिया? 

WHO के मुताबिक, पीडोफाइल या बाल यौन अपराधी वो है, जो कम उम्र के बच्चों के लिए यौन रुचि रखे, और मौका पाने पर ऐसा करे भी. इंटरनेशनल क्‍लासिफिकेशन ऑफ डिजीज इसे मनोवैज्ञानिक बीमारी की तरह देखता है. आमतौर पर जो लोग खुद बचपन में यौन शोषण झेलते हैं, वे वयस्क होने पर वही व्यवहार दूसरे बच्चों से करने लगते हैं. इसमें यह भी माना गया कि 2 प्रतिशत महिलाएं ही पीडोफाइल हो सकती हैं, जबकि पुरुषों में ये प्रतिशत बढ़ता जा रहा है.

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MAP टर्म बीते तीन-साल सालों से चल रहा साल 1998 में ये सबसे पहले बोला गया था. एक पीडोफाइल ग्रुप बॉयचैट ने ये शब्द दिया. उसका कहना था कि वे लोग बाल यौन अपराधी नहीं हैं, बल्कि बच्चों की तरफ वाकई आकर्षित हैं, जैसे बाकी लोग वयस्कों की तरफ होते हैं. तब से कई कैंपेन चल चुके, जिसमें ऐसे अपराधी मांग करते हैं कि उन्हें भी LGBTQ की तरह अपनाया जाए, न कि क्रिमिनल माना जाए.

भारत में बच्चों पर यौन अपराध रोकने के लिए कानून 

- पॉक्सो (POCSO) यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट के तहत माइनर से यौन संबंध बनाना अपराध है. - चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों का इस्तेमाल भी बेहद कड़ा अपराध है. 

- अगर कोई 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी पाया जाए तो उसे 20 साल की जेल लेकर उम्रकैद तक हो सकती है. 

- कोई व्यक्ति किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करे तो उसे 5 साल और दूसरी बार में दोषी पाए जाने पर 7 साल की सजा हो सकती है. जुर्माना अलग है. 

- अगर कोई शख्स बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी को स्टोर या डिस्प्ले या शेयर करे, तो उसे 3 साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है.

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