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आर्कटिक की वो जेल, जहां मौत से पहले रखे गए थे रूसी नेता एलेक्सी नवलनी, बेहद भयावह रहता है माहौल

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोधी एलेक्सी नवलिनी की जेल में मौत की खबर आ रही है. दिसंबर में ही उनकी स्पोक्सपर्सन काइरा यर्मीश ने कहा था कि वे 'द पोलर वोल्फ' कॉलोनी भेजे जा चुके हैं. मॉस्को से 2 हजार किलोमीटर दूर ये कॉलोनी रूस की सबसे खतरनाक जेल मानी जाती है. इसके बाद कैदी की कोई खबर बाहरी दुनिया तक नहीं पहुंच पाती, सिवाय मौत के.

पुतिन की सत्ता को चुनौती देने वाले विपक्षी नेता एलेक्सी की मौत की खबर आ रही है. पुतिन की सत्ता को चुनौती देने वाले विपक्षी नेता एलेक्सी की मौत की खबर आ रही है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:49 PM IST

रूस के बारे में माना जाता है कि उस देश में कोई विपक्ष नहीं. जो भी सत्ता में आएगा, वो अगले कई सालों के लिए विरोधियों को दबाकर रखेगा. अगर कोई आवाज उठाने की कोशिश करे, तो वो या तो गायब हो जाता है या फिर संदिग्ध हालातों में मौत हो जाती है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जब पुतिन के कार्यकाल में विरोधी गायब हो गए. अब एलेक्सी नवलनी के बारे में यही कहा जा रहा है. कथित तौर पर उनकी मौत हो चुकी है.

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कुख्यात है ये जेल 

इससे पहले भी उन्हें लेकर अफवाहें उड़ती रहीं, लेकिन इस बार मामला अलग लग रहा है. वजह है, वो जेल जहां वे थे. बीते साल 25 दिसंबर को उनके समर्थकों ने बताया कि नवलनी से संपर्क हुए उन्हें दो हफ्ते हो चुके. साथ ही यह भी बताया गया कि वे पोलर वोल्फ पीनल कॉलोनी में भेजे जा चुके हैं. यमालो-नेनेट्स जिले में यह वो कुख्यात जेल है, जहां रूस के सबसे खतरनाक अपराधी रखे जाते हैं, या फिर वे जिन्हें सरकार दुनिया से काट देना चाहे. 

नाजी कैंप से होती रही तुलना

दूसरे वर्ल्ड वॉर के समय रूस पर आरोप लगा कि वो दुश्मन सेना और आम नागरिकों को एक जेल में डाल रही है. यहां बंदियों से इतनी मेहनत करवाई जाती थी कि वे दम तोड़ दें. साइबेरिया से सटे इन कैंपों में न तो बर्फबारी से बचाने का इंतजाम था, न ही भरपेट खाना और इलाज मिलता था. इस कैंप को गुलाग कहा गया. युद्ध के बाद गुलाग बंद हो गया, लेकिन उसका नया रूप आ गया. इसे ही पीनल कॉलोनी कहते हैं.

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 महीनेभर चलता है सफर

कैदी रूस में 800 से ज्यादा पीनल कॉलोनीज हैं. ये बर्फीली सीमाओं से सटे हुए हैं, जहां तक जाने के लिए कोई खास सुविधा नहीं है. अक्सर सत्ता विरोधी राजनैतिक बंदियों को वहां भेजा जाता है. इस तक पहुंचने का सफर भी अपने-आप थकाने वाला होता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, कॉलोनी तक पहुंचने में एक महीने का समय भी लग सकता है. 

आर्कटिक से सटी जेलों की हालत और खराब 

ये यात्रा ट्रेन, बस, बर्फ हर जगह से होते हुए गुजरती है. इस दौरान ही कई कैदी बीमार पड़ जाते हैं. महिलाओं की स्थिति और खराब है. उनके लिए 40 के करीब ही कॉलोनीज हैं, जो रूस के बर्फीले इलाकों में हैं. वहां सफर के दौरान वे दुनिया से लगभग कट जाती हैं. 

इस तरह का मिलता है ट्रीटमेंट 

पीनल कॉलोनी के भीतर जाते ही यंत्रणा का नया दौर शुरू हो जाता है. माइनस तापमान पर भी कैदी को नंगे पांव ही चलना है, पहनने के लिए भी कम कपड़े दिए जाते हैं. यहां तक कि सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कैदियों को सिर्फ चलना या खड़े रहना है, उन्हें बैठने की इजाजत नहीं होती है. लिखने-पढ़ने की छूट नहीं है. टीवी जरूर है, लेकिन उस पर स्टेट स्पॉन्सर्ड खबरें ही चलती हैं. 

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गंभीर जुर्म के लिए अलग कॉलोनी
 

पीनल कॉलोनी में कैदियों की अलग-अलग श्रेणियां हैं, जो इस पर तय होता है कि उसका क्राइम कितना गंभीर है. सबसे कम सख्ती वाली कॉलोनियों को कॉलोनीज सैटलमेंट कहा जाता है. यहां कैदी कुछ बड़ी बैरक में रहते हैं और घूम-फिर भी सकते हैं. उन्हें रिश्तेदारों से मिलने की भी छूट रहती है. वहीं, स्पेशल रेजीम और स्ट्रिक्ट रेजीम के कैदी सख्त पाबंदी में रहते हैं.

पहले कहां थे नलवनी 

पोलर वोल्फ से पहले नवलनी को मॉस्को से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर एक कॉलोनी में रखा गया था. वहां से वे सपोर्टरों से बातचीत करते रहते थे. वैसे हालात तब भी खास बढ़िया नहीं थे. खुद नवलनी ने पिछले साल कहा था कि उन्हें रोज 7 घंटे सिलाई मशीन चलानी होती है, साथ ही घंटों रूसी टेलीविजन देखना होता है.

चूंकि रूस में हर कैदी के लिए काम करना जरूरी है, तो पीनल कॉलोनी के बंदियों को पुलिस की वर्दी सीने का काम मिलता है. कॉलोनी एक तरह की फैक्ट्री होती है, जिसमें कुछ घंटे लिविंग जोन में सोने के लिए भेज दिया जाता है. बाकी समय सिलाई करवाई जाती है.

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