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द्रौपदी से पहले भी दो महिलाओं की हुई थी कई पुरुषों से शादी, महाभारत में ही आता है जिक्र

युधिष्ठिर के इस तरह के गूढ़ तत्व वाले उदाहरणों को मान्यता देते हुए ऋषि व्यास ने उसे मान्य किया साथ ही राजा द्रुपद को द्रौपदी, पांचों पांडवों, कुंती और खुद द्रुपद के पूर्व जन्म की कथा सुनाई. व्यासमुनि ने बताया कि द्रौपदी को साधारण कन्या मत समझो. यह स्वर्ग में इंद्र के बगल में बैठने वाली देवी शची के रूप में स्वर्ग लक्ष्मी हैं, जो नारायण की नारायणी लक्ष्मी का ही एक रूप हैं.

द्रौपदी का पांच पांडव भाइयों से हुआ था विवाह द्रौपदी का पांच पांडव भाइयों से हुआ था विवाह
विकास पोरवाल
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 9:43 PM IST

तमिलनाडु में जहां एक ओर भाषा विवाद जारी है तो इसी के साथ वहां संस्कृति और सभ्यता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ मंत्री दुरईमुरुगन ने उत्तर भारतीय संस्कृति पर विवादास्पद टिप्पणी की है. उन्होंने महाभारत का हवाला देते हुए उत्तर भारत की संस्कृति को बहुपतित्व (Polygamy) और बहुशासन (Polyarchy) से जोड़ा है.

दुरईमुरुगन ने कहा कि उत्तर भारत में एक महिला से 5 या 10 पुरुष शादी कर सकते हैं, ये उनका कानून है, साथ ही कहा कि हमारे यहां एक पुरुष और एक महिला का रिश्ता होता है, लेकिन वहां ऐसा नहीं है. डीएमके के मंत्री ने कहा कि अगर कोई हमें (तमिल लोगों) असभ्य कहेगा, तो उसकी जुबान काट दी जाएगी. दुरईमुरुगन का ये बयान एक कार्यक्रम के दौरान आया, जहां उन्होंने महाभारत के पात्रों का जिक्र करते हुए उत्तर भारतीयों पर तंज कसा. 

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मंत्री दुरईमुरुगन ने की विवादित टिप्पणी
मंत्री दुरईमुरुगन ने महाभारत का उदाहरण देते हुए जिस तरह की टिप्पणी की है, वह तर्कहीन है. द्रौपदी का पांचों पांडवों के साथ विवाह किसी वासना की लालसा में नहीं हुआ था, और न ही द्रौपदी पहली ऐसी स्त्री थी, जिसका विवाह कई पुरुषों के साथ हुआ था, बल्कि महाभारत के युद्ध की एक वजह यह भी थी कि द्रौपदी को कई पुरुषों की पत्नी (वैश्या) कहकर अपमानित किया गया था. 

महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास रचित 'महाभारत' महाकाव्य में इसका विस्तार से जिक्र है कि, द्रौपदी का विवाह किन वजहों से और किन परिस्थितियों में पांच पांडवों से हुआ था, बल्कि इसी घटनाक्रम में यह भी जिक्र आता है कि उससे पहले और किन-किन स्त्रियों का विवाह एक से अधिक पुरुष के साथ हुआ था. 
 
महाभारत में है पूरे घटनाक्रम का वर्णन
महभारत में वर्णित घटनाक्रम के मुताबिक, जब कुंती अनजाने में ही भीम और अर्जुन से कह देती हैं कि, 'जो भी भिक्षा लाए हो, पांचों भाई बांट लो' तो इसे सुनते ही पांचों पांडव असमंजस में पड़ जाते हैं. वह इस बारे में विचार कर ही रहे होते हैं कि वहां द्रुपद के भेजे गुप्तचर सारा हाल जानकर द्रुपद को इसकी सूचना देते हैं. तब द्रुपद ये जानकर कि, स्वयंवर जीतने वाला पांडुपुत्र अर्जुन है, बहुत खुश हो जाते हैं. 

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इसके बाद द्रुपद ने एक पुरोहित भेजकर सभी पांडवों को कुंती समेत महल में बुलवाया और उनका हर तरह से सत्कार करके निवेदन करते हुए कहा कि, सव्यसाची अर्जुन से विवाह कराके मेरी पुत्री को वधू के रूप स्वीकार करें. इस तरह राजा द्रुपद की सारी बात सुनकर पांडवों में शांति छा गई, फिर इस मौन को तोड़ते हुए युधिष्ठिर ने ही राजन से कहा- महाराज, विवाह तो मेरा भी करना होगा. 

यह सुनकर द्रुपद कुछ रुष्ट और दुखी और फिर बातचीत को यहीं रोक दिया गया. उन्होंने कहा कि, यह तर्कसंगत नहीं है कि एक स्त्री कई पुरुषों से विवाह करे, हालांकि राजाओं का अनेक स्त्रियों से विवाह करने पर कोई दोष नहीं माना गया है. इसके साथ ही द्रुपद ने कहा कि इस विषय देवी कुंती आप, पुत्र युधिष्ठिर और मेरा पुत्र धृष्टद्युम्न आपसी चर्चा कर लें और फिर जो ठीक है वह कहें. 

जब इस विषय में अगले दिन मंत्रणा शुरू हुई तब वहां महर्षि व्यासजी भी आ गए. उनके आने पर राजन ने उठकर उनका सत्कार किया और फिर बातचीत शुरू हुई. तब राजा ने यही प्रश्न मुनिवर से भी किया. महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 190 में इसका वर्णन आता है. यहां दर्ज है कि...

ततो मेधामधुरां वाणीमुक्त्वा पाण्डवाग्रजः।
पृष्टस्तं महात्मानमुपतस्थे वृषापतिः॥ 4 ॥

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कथमेकाभवन्यादा धर्मेण सुकृतं चरन्।
एतन्मे भगवाञ्छंस यथातत्त्वेन पृच्छतः॥ 5 ॥

(राजा द्रुपद ने व्यासजी से द्रौपदी के बारे में बताते हुए प्रश्न किया कि, जो धर्म का आचरण करता है, वह कैसे एक ही स्त्री को अनेक पतियों के साथ धर्मपूर्वक स्वीकार कर सकता है? हे भगवन! मैं इसका उत्तर जानना चाहता हूं)

इस प्रश्न को सुनकर व्यासजी ने कहा कि, पहले आप सभी इस विषय में अपने-अपने मत कहो.

युधिष्ठिर ने रखे अपने तर्क
तब युधिष्ठिर ने इस विषय में प्रचेताओं और सात ऋषियों की कथा का वर्णन किया. जिसमें उन्होंने उन दो वैदिक स्त्रियों के नाम का जिक्र किया, जिनमें से एक का विवाह 10 पुरुषों के साथ और दूसरी का विवाह सात ऋषियों के साथ हुआ था. यह सभी विवाह धर्म सम्मत थे और परमपिता ब्रह्मा ने खुद इसकी अनुमति दी थी. 

न मे वागनृतं ब्रूते नाधर्मे धीयते मनः।
वर्तते हृदयं मेऽद्य नैषोऽधर्मः कथंचन॥ 13 ॥

श्रूयते हि पुराणेऽपि जटिला नाम गौतमी।
ऋषीणामयशः कर्त्री सती धर्मभृतां वरा॥ 14 ॥

तथैव मुनिजा वापि तपोभिर्भावितात्मनः।
संगताभूद्दश पत्न्येका नृपते तत्समाहिता॥ 15 ॥

(य़ुधिष्ठिर ने कहा, मैं कभी झूठ नहीं बोलता. पुराणों में भी जटिला नामक एक स्त्री का वर्णन मिलता है, जो गौतम ऋषि की पुत्री थी. वह सती और धर्म का पालन करने वाली थी, तथा अनेक ऋषियों की कीर्ति बढ़ाने वाली थी. उसका विवाह सात ऋषियों के साथ हुआ था. इसके अलावा कंडु ऋषि की पुत्रि वार्क्षी (मारिषा) का विवाह भी दस प्रचेताओं के साथ हुआ था. )

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क्या है जटिला और वार्क्षी की कहानी
दोनों स्त्रियों की कहानी अलग-अलग समय की है. सृष्टि की रचना के बाद इसके संचालन के लिए ब्रह्माजी ने अपने 10 मानस पुत्रों को उत्पन्न किया जिन्हें प्रचेता कहा गया है. इन्हें सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई. चंद्रमा ने इन सभी प्रचेताओं का विवाह वृक्ष कन्या और यक्ष की बहन (वार्क्षी) मारिषा से कराया. प्रचेताओं से विवाह होने के कारण इन्हें प्रचेती और प्रचीती भी कहा गया है. प्रचेताओं और चंद्रमा के आधे-आधे तेज से मारिषा ने दक्ष प्रजापति को जन्म दिया. दक्ष प्रजापति ने ही सृष्टि संचालन का कार्य आगे बढ़ाया और मैथुनी सृष्टि का विकास हुआ. इन्होंने अपनी 10 कन्याओं का विवाह धर्म से करवाया, 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से और इन्हीं की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ था.

सात ऋषियों से हुआ था जटिला का विवाह
इसी तरह गौतमी कुल में जटिला नाम की कन्या हुई. इनका विवाह 7 ऋषियों से हुआ था. वेदों में गौतम मंत्रद्रष्टा ऋषि के तौर पर जाने गए हैं. इसके अलावा न्याय सूत्रों के रचनाकार भी गौतम माने जाते हैं. इन्हीं के वंशज श्वेतकेतु हुए जिन्होंने विवाह व्यवस्था का आरंभ किया. इससे पूर्व कोई भी पुरुष और स्त्री किसी भी स्त्री अथवा पुरुष से संबंध बना सकता था.

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विवाह की बात आई है तो श्वेतकेतु की कथा भी जान लेनी चाहिए. गौतमी वंश के श्वेतकेतु जटिला के ही पुत्र थे. एक दिन श्वेतकेतु अपनी माता के साथ बैठे हुए थे. इसी दौरान एक ब्राह्मण ने आकर उनकी मां को अपने साथ चलने के लिए कहा. श्वेतकेतु को यह परंपरा ठीक नहीं लगी. दरअसल, उस समय तक विवाह और स्त्री-पुरुष के संबंधों पर नियम नहीं बने थे. ऐसे में श्वेतकेतु ने ब्रह्मदेव से इस बारे में बात की और फिर, विवाह संबंध जैसे नियम स्थापित किए.  महाभारत के आदिपर्व में भी इस कथा का उल्लेख आता है.

श्वेतकेतु ने बनाए विवाह के सामाजिक नियम
श्वेतकेतु ने पुरुषों के लिए एक पत्नी व्रत और महिलाओं के लिए प्रतिव्रत का नियम बनाया और परस्त्री गमन पर रोक लगाई. इन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि पति को छोड़कर पर पुरुष के पास जाने वाली स्त्री तथा अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से संबंध कर लेने वाला पुरुष दोनों ही भ्रूणहत्या के अपराधी माने जाएं. श्वेतकेतु को वैदिक काल का समाज सुधारक भी माना जाता है. श्वेतकेतु एक तत्वज्ञानी आचार्य थे, जिनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण, छान्दोग्य, बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में मिलता है. उनकी कथा उपनिषद में आती है.

महर्षि व्यास ने दी युधिष्ठिर के उदाहरणों को मान्यता
खैर, युधिष्ठिर के इस तरह के गूढ़ तत्व वाले उदाहरणों को मान्यता देते हुए ऋषि व्यास ने उसे मान्य किया साथ ही राजा द्रुपद को द्रौपदी, पांचों पांडवों, कुंती और खुद द्रुपद के पूर्व जन्म की कथा सुनाई. व्यासमुनि ने बताया कि द्रौपदी को साधारण कन्या मत समझो. यह स्वर्ग में इंद्र के बगल में बैठने वाली देवी शची के रूप में स्वर्ग लक्ष्मी हैं, जो नारायण की नारायणी लक्ष्मी का ही एक रूप हैं. पांचों पांडव, असल में अलग-अलग समय में हुए इंद्र हैं, जो बाद में धर्मराज, पवन, और अश्विनी कुमारों के अंशों में बदले. यही सब इस धरती पर लोक कल्याण की भावना से आए हैं. खुद नारायण ही श्रीकृष्ण हैं और तुम उनके परम भक्त गोलोकवासी गोप रहे हो. इसलिए यह संबंध पवित्र है. 

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महर्षि व्यास के द्वारा इस विवाह को मान्यता देने के बाद राजा द्रुपद ने प्रसन्नता के साथ द्रौपदी का विवाह, पांचों पांडवों से कर दिया.

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