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जानलेवा हमलों से बचे नेताओं के साथ कैसा रवैया होता है पब्लिक का, क्या Trump को भी मिलेंगे सिम्पैथी वोट?

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर शनिवार को एक चुनावी रैली के दौरान जानलेवा हमला हुआ. ट्रंप हालांकि सुरक्षित हैं, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक हवा उनके पक्ष में बन चुकी. इस दौरान विपक्षी पार्टी ये तक कह रही है कि अटैक से ट्रंप को सिम्पैथी वोट मिलेंगे. क्या है ये सिम्पैथी वोट? क्या वाकई ये हमले से बचे नेताओं को सत्ता दिला पाते हैं?

हमले के बाद बड़ा तबका डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में दिख रहा है. (Photo- AP) हमले के बाद बड़ा तबका डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में दिख रहा है. (Photo- AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 4:34 PM IST

नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होंगे. डेमोक्रेट्स में फिलहाल उम्मीदवार के नाम पर ही उथलपुथल मची हुई है, वहीं रिपब्लिकन्स के पास डोनाल्ड ट्रंप हैं, जो धुंआधार प्रचार कर रहे हैं. ऐसी ही एक रैली के दौरान एक युवक ने उन्हें मारने की कोशिश की. गोली ट्रंप के कान को छूते हुए निकल गई. इसके बाद से माना जा रहा है कि अमेरिका में चुनाव से पहले नतीजे तय हो चुके. ट्रंप को भारी संख्या में सिम्पैथी वोट मिल सकता है. वोट की ये किस्म अलग ही है, जो नेताओं को अक्सर जीत दिलाती रही. 

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क्या है सिम्पैथी वोट

कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, ये वो मौका है, जब बहुत से लोग किसी शख्स को इसलिए चुनते हैं क्योंकि कुछ ही समय पहले उसपर हमला हुआ हो या उसके साथ कोई हादसा हुआ हो. 

राजनीति के इतिहास में घट चुकी घटनाएं कहती हैं कि ट्रंप की लोकप्रियता तेजी से ऊपर जा सकती है. असल में जिन नेताओं पर भी ऐसे गंभीर हमले हुए, पब्लिक उनके सपोर्ट में आ गई. इसमें वे लोग भी होते हैं, जो पहले विपक्षी पार्टी के करीब होते हैं. 

अमेरिका में क्या हो रहा है

शूटिंग के बाद सोशल मीडिया ट्रंप की तस्वीरों से भर गया, जिसमें वे चोट के बावजूद मुठ्ठी लहरा रहे हैं. ट्रंप के सपोर्ट में बोलने वाले आम लोग ही नहीं, काफी बड़े नाम भी थे. अमेरिकी खरबपति बिल अकमैन से लेकर एलन मस्क ने सीधे-सीधे ट्रंप का पक्ष लिया. अंदाजा लगाया जा रहा है कि चुनाव के नतीजे अब उतने अनिश्चित नहीं रहे. 

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पाकिस्तान में इमरान की बढ़ी थी लोकप्रियता

हत्या या हत्या के प्रयास के बाद संबंधित नेताओं या उनकी पार्टी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. पूर्व पाकिस्तानी पीएम इमरान खान पर एक रैली के दौरान फायरिंग हुई थी. साल 2022 में हुई फायरिंग में पीएम घायल हुए, वहीं एक शख्स की मौत हो गई. आरोपी ने हमले की बड़ी अजीबोगरीब वजह बताई. उसने कहा कि इमरान खान और उनकी पार्टी के दूसरे नेता अजान के समय शोर कर रहे थे जो उससे देखा नहीं गया. वहीं खान की पार्टी ने दावा किया कि हमला अकेले शख्स ने नहीं किया, बल्कि ये विपक्षियों की साजिश थी. 

वजह जो भी रही, लेकिन रैली में घायल इमरान को उसके बाद जनता का भरपूर सपोर्ट मिला. लोग उन्हें ऐसे नेता की तरह देखने लगे जो देश को नई उम्मीद दे सकता है. 

भुट्टो की हत्या ने बदल दिया चुनावी खेल

बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद यही मामला दिखा. भारी सुरक्षा के बीच चुनावी रैलियां करते हुए उनके पति आसिफ अली जरदारी पत्नी का हवाला देते हुए देश की हिफाजत की बात करते. नतीजा ये हुआ कि साल 2008 में वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. नब्बे के दशक में खुद कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके जरदारी पर करप्शन के आरोप थे, लेकिन सहानुभूति की लहर ने उन्हें भरपूर वोट दिलाया. 

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पूर्व ब्राजीलियन राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो पर साल 2018 में एक इवेंट के दौरान चाकू से हमला किया गया. इससे बोल्सोनारो की इमेज काफी बदली और वे वोटरों में लोकप्रिय हो गए, यहां तक कि साल 2019 के चुनाव में उन्हें जीत मिली. 

इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस को मिली जीत

भारत की बात करें तो कांग्रेस को साल 1984 में सबसे बड़ी जीत मिली. इंदिरा की हत्या के बाद हुए आम चुनाव में देश ने 514 में से 404 सीटें कांग्रेस को दी थीं. लगभग छह साल बाद साल 1991 में एक चुनावी रैली के दौरान पीएम राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. इसके तुरंत बाद जीत के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आ गई. हालांकि इस बार उसे बहुमत नहीं मिल सका था.

अमेरिका में भी मिलते हैं ऐसे मामले

राष्ट्रपति बनने के दो ही महीनों के भीतर रोनॉल्ड रीगन पर जानलेवा हमला हुआ. इसके बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ी. माना जाता है कि ये हमले के बाद पैदा हुई वही सिम्पैथी थी, जिसकी वजह से उनकी कई विवादित नीतियों पर भी वैसा बवाल नहीं हुआ. इसके बाद साल 1984 में हुए इलेक्शन में भी रीगल की जीत कथित तौर पर इसी लहर के चलते हुई. 

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वैसे इस देश में सिंपैथी वोट में कई अपवाद भी रहे

साल 1912 में भूतपूर्व राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट पर चुनावी कैंपेन के दौरान गोलीबारी हुई. गोली निशाने पर लगी, लेकिन रूजवेल्ट की जेब में मेटल का चश्मा और भाषण की मोटी कॉपी रखी थी, जिससे उसका असर उतना नहीं हुआ. रूजवेल्ट जख्मी होकर भी भाषण देने की जिद पर अड़े रहे. इसके बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ एकदम से ऊपर चला गया, लेकिन तब भी वे चुनाव हार गए. 

रिपब्लिकन लीडर गेराल्ड रुडोल्फ फोर्ड राष्ट्रपति पद के लिए दूसरी बार खड़े होने की तैयारी में थे, जब उन्हें मारने की कोशिश हुई. सालभर बाद ही हुए इलेक्शन में वे डेमोक्रेटिक नेता जिमी कार्टर से हार गए.

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