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अब्राहम लिंकन की जीत के बाद दो टुकड़े होने की कगार पर था US, कब-कब नतीजों के बाद भड़की हिंसा?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों का नतीजा अपने साथ कई सारे डर लेकर भी आता है. लगभग चार साल पहले डोनाल्ड ट्रंप की हार के बाद उनके समर्थकों ने बड़ा हंगामा किया था. लेकिन ये अकेली घटना नहीं, 16वें प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन की जीत के बाद देश में बंटवारे के हालात बन गए थे. यहां तक कि नए देश का नाम और झंडा तक तय हो चुका था.

चुनाव नतीजों के बाद वॉशिंगटन में कई बार फसाद हो चुका. (Photo- Getty Images) चुनाव नतीजों के बाद वॉशिंगटन में कई बार फसाद हो चुका. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:30 PM IST

अमेरिका के अगले राष्ट्रपति का एलान हो चुका. पहले माना जा रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच महीन फासला रहेगा, लेकिन ट्रंप बड़ी आसानी से बढ़त पा गए. यूएस में सेलिब्रेशन भी शुरू हो चुके, लेकिन हर जीत के बाद माहौल एक जैसा नहीं रहता. कई पार्टियों के समर्थक अपने मनचाहे कैंडिडेट की हार पर हिंसक हो जाते हैं. साल 2020 में ट्रंप सपोर्टरों ने कैपिटल हिल को घेरा था, लेकिन खून-खराबे का इतिहास इससे काफी पुराना रहा. यहां तक कि नाखुश सपोर्टरों का गुस्सा इतना भड़का कि बात गृहयुद्ध और नया देश बनने तक पहुंच गई थी. 

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लिंकन से गुस्साया दक्षिणी अमेरिका हुआ लामबंद

इसका सबसे बड़ा उदाहरण 19वीं सदी में हुआ राष्ट्रपति चुनाव था, जिसमें अब्राहम लिंकन विजेता थे. साल 1860 में लिंकन की जीत के तुरंत बाद दक्षिणी राज्य नाराज हो गए. लगभग एक दर्जन स्टेट ऐसे थे जो गुलाम प्रथा के कट्टर समर्थक थे. वहीं राष्ट्रपति लिंकन इसे पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे. राज्यों को लगा कि गुलाम निकल गए तो उनकी आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी. कौन उनके काम करेगा, या खेत जोतेगा. ऐसे में भड़के हुए इन राज्यों ने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका से अलग होकर एक नया देश बनाने का एलान कर दिया. इस देश के लिए नाम भी तैयार हो गया- कन्फेडरेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका. जेफर्सन डेविड इसके लीडर थे, और तय था कि वही नए देश के राष्ट्रपति होंगे. 

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ये स्टेट थे नए देश की होड़ में 

अमेरिका के लिए ये खतरे वाली बात थी. एक दर्जन राज्य भी छोटे-मोटे नहीं, बल्कि खासे कद्दावर थे, जिनसे देश को भारी मुनाफा होता. इनमें साउथ कैरोलिना, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, अल्बामा और टैक्सास जैसे राज्य शामिल थे. वाइट हाउस ने इन्हें रोकने के लिए जैसे ही सख्ती की, लीडरों ने तुरंत हिंसा का ग्रीन सिग्नल दे दिया.

सेना और जनता के बीच चार साल चली जंग

अप्रैल 1861 की बात है, जब सेना और जनता के बीच युद्ध चल पड़ा. दिलचस्प बात ये थी कि युद्ध में दक्षिण ने सेना के खिलाफ गुलामों को भी मैदान में उतारा था. वे भारी आक्रामक साबित हुए. यहां तक कि युद्ध में 7 लाख से ज्यादा फेडरल आर्मी हताहत हुई. जनता को भी नुकसान हुआ लेकिन सेना से कम. लड़ाई लगभग चार साल चली. इस दौरान साउथ अपने को अलग देश कहता रहा और बाकायदा नए देश के लिए सारा स्ट्रक्चर भी खड़ा करता रहा. 

अप्रैल 1865 को सेना की जीत के साथ नए देश का सपना भी खत्म हो गया. कनफेडरेट स्टेट को अमेरिका में मिला लिया गया और दासप्रथा खत्म कर दी गई. सिविल वॉर के बाद भी वैसे शांति नहीं थी. दासों को मुक्त करने के बाद लोग भड़के हुए थे और बात-बात पर लड़ने लग जाते. इसी दौरान यूएस में कई लड़ाइयां हुई थीं, जिसके पीछे यही रेसिज्म था. 

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इस राष्ट्रपति को माननी पड़ीं कई कंडीशन्स

साल 1876 में रिपब्लिकन से रदरफोर्ड बी. हेस राष्ट्रपति बने. वैसे ये चुनाव नतीजा विवादित था. दूसरी पार्टी को शक था कि रिजल्ट में छेड़छाड़ की गई है. हेस ने सत्ता तो संभाल ली लेकिन बदले में उन्हें कई शर्तें माननी पड़ीं. मसलन, दक्षिणी राज्यों में विद्रोहियों को देखते हुए वहां लंबे समय से सेना की तैनाती थी. हेस को सेना हटवानी पड़ी. 

साल 1968 में रिचर्ड निक्सन के आने के दौर में काफी विद्रोह हुए. मार्टिन लूथर किंग जूनियर और रॉबर्ट एफ. केनेडी की हत्याओं ने नस्लीय तनाव बढ़ा रखा था. निक्सन को दासों का समर्थक मानते हुए अमेरिकी जनता ने उनकी जीत पर भारी हंगामा किया था. 

लगभग ढाई दशक पहले साल 2000 में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश बनाम अल गोर चुनाव काफी विवादास्पद था. हालात ऐसे हुए कि कई राज्यों में वोटों की दोबारा गिनती करानी पड़ी, तब जाकर लोग शांति हुए. लेकिन दंगे न भड़क उठें, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और सेना को भी बीच में आना पड़ा था. 

साल 2020 में हुई थी हिंसा

पिछला राष्ट्रपति चुनाव भी हिंसा से भरा हुआ था. जो बाइडेन बनाम डोनाल्ड ट्रंप में जैसे ही बाइडेन की जीत का एलान हुआ, ट्रंप सपोर्टर हिंसक हो गए. हजारों की भीड़ ने वॉशिंगटन स्थित कैपिटल बिल्डिंग पर हमला कर दिया. इस घटना में कई लोग मारे गए, जबकि बहुत से जख्मी हुए थे. समर्थकों का आरोप था कि वोट काउंट में धांधली हुई है.

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