
रूस और यूक्रेन की लड़ाई सुलझाने में डोनाल्ड ट्रंप आक्रामक किस्म की मध्यस्थता कर रहे हैं. वो यूक्रेन पर इस कदर हावी हो चुके कि पूरा का पूरा यूरोप डरा हुआ है. इस बीच वाइट हाउस में बैठे हुए वे लगातार एग्जीक्यूटिव ऑर्डर भी दे रहे हैं. ऐसे ही एक आदेश के तहत अब से अंग्रेजी अमेरिका की आधिकारिक भाषा होगी. ये प्रस्ताव पहले भी आया था, जो विरोध के चलते ठंडे बस्ते में चला गया था.
कार्यकारी आदेश देते हुए ट्रंप ने कहा कि इंग्लिश को आधिकारिक दर्जा मिल जाने पर न केवल कम्युनिकेशन आसान होगा, बल्कि इससे साझा राष्ट्रीय मूल्य भी मजबूत होंगे. साथ ही लोग और करीब आएंगे. इससे देश की इकनॉमिक ग्रोथ भी तेजी से होगी. ट्रंप का ये एलान अमेरिका में इंग्लिश-ओनली मूवमेंट में बड़ा माइलस्टोन माना जा रहा है. बता दें कि भाषा वो चीज है, जिसकी वजह से देशों के बंटवारे तक हो चुके. भारत में भी आधिकारिक भाषा को लेकर बवाल होते आए हैं. यही हाल अमेरिका का रहा.
18वीं सदी में अमेरिका में अलग-अलग देश और बोली बोलने वाले बस रहे थे. अंग्रेजी के अलावा डच, फ्रेंच, स्पेनिश और स्वीडिश-भाषी भी बड़ी संख्या में थे. तब सारे लोग किसी हड़बड़ाहट में नहीं थे. जैसे-जैसे देश आगे बढ़ा, भाषा को लेकर राजनीति शुरू हो गई.
जर्मन भाषा पर हुई थी वोटिंग
20वीं सदी के शुरुआती दशकों में जर्मन भाषा को भी आधिकारिक दर्जा देने की बात हुई क्योंकि तब वहां जर्मन्स काफी संख्या में थे. कई शहरों में जर्मन अखबार, स्कूल और चर्च चलते. यहां तक कि साल 1795 में कांग्रेस में एक प्रस्ताव आया कि क्यों न जर्मन भाषा में सरकारी दस्तावेज छपा करें. वोटिंग हुई और केवल एक मत से ही प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया. माना जाता है कि अमेरिका के पहले हाउस स्पीकर, जो खुद एक जर्मन थे, उन्होंने ही इसके खिलाफ वोट दिया था. वे कहा भी करते थे कि अमेरिका को अंग्रेजी से ही चलाया जाना चाहिए.
जर्मन संसद में भले रिजेक्ट हो गई लेकिन अब वो तेजी से फैल रही थी. जर्मन भाषी समुदाय बढ़ता चला जा रहा था. तभी दूसरा वर्ल्ड वॉर हुआ. दोनों देशों में दूरियां आ गईं और कई राज्यों ने जर्मन भाषा पढ़ाने तक पर पाबंदी लगा दी. इस भाषा को बोलने वालों को शक की नजर से देखा जाने लगा. इससे डरे हुए जर्मन्स पब्लिक में अपनी ही भाषा से बचने लगे. इंग्लिश पर जोर दिया ही जा रहा था कि तभी यूएस में इमिग्रेशन बढ़ गया. करोड़ों लोग आने लगे, जिनकी फर्स्ट लैंग्वेज अंग्रेजी नहीं थी. इससे मुहिम शुरू होने से पहले ही कमजोर हो गई.
80 के दशक से शुरू हुआ अभियान
अस्सी के दशक में एक ग्रुप बना- यूएस इंग्लिश. यह संगठन चाहता था कि इंग्लिश को देश की आधिकारिक भाषा बनाया जाए और सरकारी दफ्तरों में दूसरी भाषाओं के इस्तेमाल पर पाबंदी लग जाए. दशक के आखिर में कैलिफोर्निया में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसमें ज्यादातर ने अंग्रेजी के पक्ष में वोट दिया. लेकिन नेशनल लेवल पर ये कोशिश बार-बार फेल होती रही.
नब्बे में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के समय फेडरल स्तर पर इसकी कोशिश हुई. इंग्लिश लैंग्वेज एम्पावरमेंट एक्ट आया. यहां तक कि अंग्रेजी न जानने वालों को भाषा सिखाने की भी बात हुई. इसके लिए भारी आर्थिक मदद होने लगी. इमिग्रेंट्स और लिमिटेड इंग्लिश प्रोफिशिएंसी वालों को भाषा सिखाने के लिए फेडरल संस्थाएं काम करने लगीं.
क्लिंटन अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बनाना तो चाहते थे लेकिन सबको साथ लेकर. तभी ह्यूमन राइट्स संगठनों में इसमें ये कहते हुए अड़ंगा लगा दिया कि इससे इमिग्रेंट्स के साथ भेदभाव होगा. कानून आखिर सीनेट में ही अटक गया. अब ट्रंप के इस आदेश को मेक अमेरिका ग्रेट अगेन की ही एक कड़ी की तरह देखा जा रहा है.
कितने और कौन सी भाषा बोलने वाले हैं यहां
अमेरिका में तीन-चौथाई लोग घर पर सिर्फ अंग्रेजी बोलते हैं, जबकि 4.2 करोड़ लोग स्पेनिश और 30 लाख लोग चीनी बोलने वाले हैं. इसके अलावा हिंदी समेत कई और भाषाएं बोलने वाले लोग यहां है. यूएस सेंसस ब्यूरो के अनुसार, अमेरिका की कुल आबादी में से हर पांचवां शख्स अपने घर में इंग्लिश के अलावा कोई दूसरी भाषा बोलता है, जो उसकी फर्स्ट लैंग्वेज है. पूरे देश में साढ़े तीन सौ से ज्यादा भाषाएं हैं, जिनमें स्पेनिश, जर्मनी, चीनी और अरेबिक मुख्य हैं, हालांकि ये भी सच है कि इंग्लिश कॉमन भाषा है.
ट्रंप ने अपनी चुनावी रैली के दौरान इसे भी कटघरे में खड़ा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि हमारे यहां बहुत सी भाषाएं आ रही हैं, जिन्हें हमारे लोग जानते तक नहीं. ये खतरनाक है. अपने पहले कार्यकाल में भी वे बाकी भाषाओं के लिए अपनी नापसंदगी दिखा चुके.
अब तक 30 राज्य अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बना चुके लेकिन केंद्र में न होने की वजह से सरकारी कामकाज में दूसरी भाषाएं भी इस्तेमाल होती आईं. मसलन न्यू मैक्सिको में सरकारी डॉक्युमेंट्स इंग्लिश के अलावा स्पेनिश में भी मिलते हैं. इसी तरह से हवाई में हवाईयन को भी दर्जा मिला हुआ है.