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क्या ट्रांसजेंडरों के लिए मुश्किल होंगे अगले चार साल, डोनाल्ड ट्रंप के 'सिर्फ दो जेंडर' वाले बयान के क्या हैं मायने?

अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया है कि ट्रांसजेंडरों को सेना के साथ-साथ स्कूलों से भी दूर रखेंगे. रिपब्लिकन पार्टी लगातार और बेहद आक्रामकता से LGBTQ राइट्स के खिलाफ बात कर रही है. बकौल ट्रंप, अमेरिकी सरकार की नीतियों में दो ही जेंडर होंगे- महिला और पुरुष. वे इसपर एग्जीक्यूटिव ऑर्डर भी ला सकते हैं.

अमेरिका में नई सरकार के साथ ट्रांसजेंडर अधिकारों पर फर्क पड़ेगा. (Photo- Reuters) अमेरिका में नई सरकार के साथ ट्रांसजेंडर अधिकारों पर फर्क पड़ेगा. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:41 AM IST

डोनाल्ड ट्रंप वाइट हाउस आने के साथ ही जो नए काम करने वाले हैं, उनमें से एक है ट्रांसजेंडरों पर लगाम कसना. रविवार को उन्होंने इसे पागलपन बताते हुए कहा कि वे इसे रोकने के लिए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर साइन करेंगे. साथ ही पुरुषों और महिलाओं पर एक-दूसरे का असर न हो, इसके लिए वे पुरुषों को महिलाओं के खेल से बाहर रखने की बात भी कर रहे हैं. आने वाली सत्ता की नीतियां डेमोक्रेट्स की ट्रांसजेंडर नीति से बहुत अलग होने जा रही हैं. लेकिन अमेरिका में कितने ट्रांसजेंडर हैं, और ऐसा क्या हुआ जो रिपब्लिकन्स उनके इतने खिलाफ हो गए?

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अमेरिका में ट्रांसजेंडरों की आबादी कितनी

यूएस में तीस साल के भीतर के लोगों में पांच फीसदी से कुछ ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजेंडर या फिर नॉन-बायनरी मानते हैं, यानी जो खुद को किसी जेंडर में नहीं पाते. ये डेटा प्यू रिसर्च सेंटर का है और दो साल पुराना है. इस बीच संख्या काफी बढ़ी, लेकिन इसपर किसी का कोई निश्चित डेटा नहीं है. यूसीएलए लॉ स्कूल में विलियम्स इंस्टीट्यूट ने भी इसपर एक रिसर्च की, जिसमें पाया गया कि अमेरिका में 13 साल की उम्र के ज्यादा के 16 लाख से ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजेंडर मानते हैं. इसके अलावा वे लोग भी हैं, जो जन्म के समय खुद को मिले जेंडर से खुश नहीं, लेकिन खुलकर जता नहीं पाते. 

2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ट्रांसजेंडरों की शादी पूरे देश में वैध हो गई. साथ ही ट्रांस कपल के लिए बच्चों को गोद लेने की भी मंजूरी मिल गई. गोद देने वाली एजेंसियां इसके लिए होम स्टडी करती हैं कि बच्चों के लिए कैसा माहौल है, इसके बाद वे कानूनी प्रोसेस करती हैं. कई बार आवेदन रिजेक्ट भी हो जाता है लेकिन ये दर उतनी ही है, जितनी आम जोड़ों के एडॉप्शन के दौरान होता है. 

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सेना में भी जगह मिली हुई

बहुत से देशों से अलग अमेरिका में ट्रांसजेंडर सेना में भी जा सकते हैं. ओबामा सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी चरण में इसे मंजूरी दे दी थी, जिसके बाद आर्मी में ट्रांसजेंडर सैनिकों की मौजूदगी बढ़ने लगी. साल 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने आते ही इसपर रोक लगा दी. उनका कहना था कि इससे मेडिकल खर्च बहुत ज्यादा बढ़ रहा है क्योंकि हॉर्मोनल बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे सैनिकों की मेडिकल जरूरतें आम सैनिकों से ज्यादा रहती हैं. इसके अलावा सेना में कथित तौर पर बैलेंस भी बिगड़ रहा था. साल 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप की पाबंदियों को पलटते हुए ट्रांसजेंडरों के लिए सैन्य सर्विस एक बार फिर शुरू कर दी. 

ट्रंप पहले भी रह चुके हैं खिलाफ

पहले कार्यकाल में ट्रंप ने कई और विवादित फैसले लिए, जो ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के हक में नहीं था. मसलन, उन्होंने बहुत से ऐसे जजों की नियुक्ति की, जो अपने एंटी-LGBTQ+ माने जाते थे. उनका पुराना रिकॉर्ड ट्रांसजेंडर लोगों से नफरत या भेदभाव का रहा. ट्रंप ने दो सौ से ज्यादा ऐसे जजों को ताकत दी, जो अपने कन्जर्वेटिव तौर-तरीकों के लिए जाने जाते थे. उनमें से कईयों ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला देकर ट्रांस अधिकारों को कम करने की कोशिश भी की. 

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ट्रंप के वाइट हाउस आने से पहले ही ट्रांसजेंडरों के खिलाफ हवा चल निकली है. द कन्वर्सेशन की एक रिपोर्ट में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के हवाले से बताया गया कि इसी साल देश भर में  532 एंटी-LGBTQ बिल बने. 

- इनमें से 208 बिल स्टूडेंट्स और शिक्षकों के अधिकारों को सीमित करते हैं.

- लगभग 70 बिल धार्मिक छूट से जुड़े हुए हैं और ट्रांसजेंडरों पर कई रोक लगाते हैं. 

- 112 बिल हेल्थ से संबंधित हैं. जैसे ट्रांसजेंडरों का अपना पसंदीदा जेंडर पाने के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट लेना. 

आदेश जारी कर सकते हैं राष्ट्रपति

अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के मुताबिक, रिपब्लिकन्स के कथित विवादित प्रोजेक्ट 2025 में ट्रांसजेंडरों के हक कमजोर करने पर भी कई नीतियां हैं. उन्हें डर है कि राष्ट्रपति एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी करते हुए सरकारी एजेंसियों को ऐसे निर्देश दे सकते हैं. जैसे सेना या स्कूल-कॉलेजों में उनकी जगह खत्म कर दी जाए. या इसपर बातचीत के फोरम पर अटैक हो. 

क्या ट्रंप के चाहने भर से बदलाव संभव

वैसे एग्जीक्यूटिव ऑर्डर देते ही ऐसा नहीं है कि नीतियां में बदलाव हो जाता है. इसके बाद एक टाइम पीरियड होता है, जिसे पब्लिक कमेंट पीरियड कहते हैं. एक से दो महीने के इस वक्त में संस्थाएं या लोग इसे चुनौती भी दे सकते हैं. या फिर इस दौरान आम लोगों और संगठनों की राय ली जाती है ताकि नीतियों में अमेंडमेंड हो सकें. अगर ऑर्डर किसी खास समूह के अधिकारों को कमजोर करता दिखे तो उसे कोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है. तब वो पॉलिसी लागू नहीं हो सकती, जब तक कि उसे कोर्ट से हरी झंडी न मिल जाए. इसमें महीनों या सालों भी लग सकता है. इतने समय में सरकारें बदल जाती है.

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कुल मिलाकर फिलहाल ट्रांसजेंडरों में डर तो बना हुआ है लेकिन उनके खिलाफ नीतियां लाना उतना भी आसान नहीं.

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