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क्या है स्पेसबग जो अंतरिक्ष के एक्सट्रीम वातावरण में भी रहता है जिंदा, एस्ट्रोनॉट्स के लिए कितना खतरनाक?

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मौजूद नासा की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स और उनकी टीम के सामने बड़ी मुश्किल आई हुई है. असल में वहां एक बैक्टीरिया मिला, जो लगातार बेहद ताकतवर होता जा रहा है. दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध पा चुके इस स्पेगबग का संक्रमण अंतरिक्ष यात्रियों को गंभीर झटका दे सकता है. लेकिन क्या है ये और कहां से अंतरिक्ष तक पहुंचा?

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सुपरबग मिला है. (Photo- Getty Images) इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सुपरबग मिला है. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 जून 2024,
  • अपडेटेड 8:33 AM IST

भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स फिलहाल आठ लोगों की टीम के साथ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर हैं. यहां हाल में एक स्पेसबग का पता लगा, जो कि सुपरबग की शक्ल ले चुका है, यानी उसपर मौजूदा बैक्टीरियल दवाएं किसी काम की नहीं. स्पेस स्टेशन पर मौजूद क्रू की सेहत के लिए ये काफी खतरनाक हो सकता है. जानें, क्या है ये स्पेसबन, कैसे पहुंचा वहां तक, और बीमार होने पर एस्ट्रोनॉट्स क्या करते हैं. 

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क्या है ये सुपरबग

नासा के मुताबिक, आईएसएस में एंटेरोबैक्टर बुगन्डेंसिस नाम के बैक्टीरिया की मौजूदगी पता लगी. ये धरती पर मिट्टी, गंदे पानी के अलावा इंसानी आंत में भी पाए जाते हैं. इंसानों तक इसका इंफेक्शन अमूमन अस्पताल में भर्ती होने या किसी मरीज के संपर्क में आने पर पहुंचता है. इससे बैक्टीरिमिया (खून में बैक्टीरियल इंफेक्शन). सेप्टिक अर्थराइटिस, स्किन इंफेक्शन, श्वसन तंत्र का संक्रमण और पेट की गड़बड़ी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. 

ISS में अब तक बुगन्डेंसिस बैक्टीरिया के 13 स्टेन्स मिल चुके, यानी ये तेजी से बढ़ रहा है. स्पेस के बंद वातावरण में बढ़ने के लिए इसमें कई म्यूटेशन हुए, जिससे धरती से आए बैक्टीरिया से स्पेसबग बिल्कुल अलग हो चुका. ड्रग रेजिस्टेंट होने की वजह से दवाओं से इसका इलाज भी आसान नहीं. 

कैसे पहुंचा होगा स्पेस स्टेशन तक

ये स्पेस में म्यूटेट होकर विकसित जरूर हुआ लेकिन ये पहुंचा धरती से ही. पूरी सावधानी के बाद भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर क्रू के जरिए या रॉकेट से होते हुए बग्स पहुंच ही जाते हैं. 

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स्पेस स्टेशन पर वातावरण काफी कंट्रोल्स रहता है, ग्रैविटी भी नहीं रहती. यहां तक कि सोलर रेडिएशन काफी ज्यादा रहता है, साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड भी ज्यादा रहती है. इसके बाद भी अगर कोई बग जिंदा रह जाए तो ये बड़ी बात है. साथ ही ये गंभीर समस्या भी हो सकती है. फिलहाल नासा ने इसपर कमेंट नहीं किया कि इसे कैसे हैंडल किया जाएगा या किया जा रहा है. 

स्पेस स्टेशन में पहले भी लोग बीमार पड़ते रहे. साल 1968 में अपोलो 7 में पहला मामला आया था, जब एस्ट्रोनॉट वेली स्चिरा को सिर में तेज दर्द के साथ सर्दी औऱ जकड़न होने लगी. कुछ ही घंटों में ये लक्षण सबमें दिखने लगे. बाद में जैसे-तैसे उनका इलाज हो सका. 

स्पेस में ज्यादा बीमार पड़ते हैं एस्ट्रोनॉट्स

स्पेस में भेजने से पहले अंतरिक्ष यात्रियों को भारी ट्रेनिंग मिलती है. वे पूरी तरह से सेहतमंद हो, तभी ग्रीन सिग्नल मिलता है. इसके बाद भी स्पेस में यात्री ज्यादा बीमार पड़ते हैं. एस्ट्रोनॉट्स में सर्दी, गला खराब होना, स्किन पर चकत्ते या ऐसी एलर्जी होती है, जो धरती पर नहीं दिखती. ये क्यों होता है, इसकी सीधी वजह नहीं पता लग सकी. नासा का ह्यूमन रिसर्च प्रोग्राम फिलहाल रिसर्च कर रहा है कि क्यों धरती पर बिल्कुल स्वस्थ लोगों का ऑर्गन फंक्शन स्पेस में बदल जाता है. 

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दिमाग पर भी होता है असर

अंतरिक्ष में ब्रेन फंक्शन बदलने पर भी काफी बात होती रही. अंतरिक्ष में रहने का मस्तिष्क पर क्या असर होता है, ये समझने के लिए एक खास तकनीक तैयार हुई, जिसे नाम मिला ट्रैक्टोग्राफी. ये ब्रेन इमेजिंग टेक्नीक है, जो न्यूरॉन्स में हल्के से हल्के बदलाव को दिखाती है. स्टडी में कई हैरतअंगेज बातें दिखीं. जैसे स्पेस पर पहुंचने पर वहां की बेहद खतरनाक रेडिएशन से बचने के लिए ब्रेन अलग तरह से काम करने लगता है. इसे न्यूरोप्लासिसिटी कहते हैं. 

स्पेस की एक्सट्रीम कंडीशन के कारण दिमाग अलग तरह से व्यवहार करने लगता है. जैसे वहां शरीर का भार खत्म हो जाता है. इसपर कंट्रोल के लिए ब्रेन अलग संकेत देता है, जो एक या दो दिन नहीं, कई महीनों तक चलता है. ब्रेन की री-वायरिंग के लिए इतना समय काफी है. 

क्या बदलाव दिखते हैं? 

धरती पर लौटने के बाद ऐसे स्पेस ट्रैवलर चलने, बैलेंस बनाने में मुश्किल झेलते हैं. मोटर के साथ-साथ उनकी कॉग्निटिव स्किल पर भी असर होता है. पाया गया कि ज्यादातर यात्री लंबे समय तक बोलने और लोगों से मिलने-जुलने में दिक्कत झेलते रहे. यहां तक कि लगभग सभी की आंखें काफी कमजोर हो गईं.

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