Advertisement

अब डेलाइट सेविंग टाइम भी मस्क और रामास्वामी के निशाने पर, क्या है ये और क्यों रहा विवादित?

ट्रंप प्रशासन में प्रमुख रहने जा रहे खरबपति एलन मस्क और विवेक रामास्वामी अब डेलाइट सेविंग टाइम को खत्म करने की कोशिश में हैं. उनका मानना है कि ये गलत प्रैक्टिस है, वक्त के साथ जिसके फायदे खत्म हो चुके. घड़ियों के कांटों को साल में दो बार एक-एक घंटा आगे-पीछे करने को लेकर पहले भी कई बार विवाद होता रहा.

अमेरिका में कई बार डेलाइट सेविंग टाइम को खत्म करने की बात उठ चुकी. (Photo- Getty Images) अमेरिका में कई बार डेलाइट सेविंग टाइम को खत्म करने की बात उठ चुकी. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:38 PM IST

डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली भी नहीं है लेकिन उठापटक अभी से शुरू हो चुकी. एलन मस्क और विवेक रामास्वामी लगातार बड़े धमाकों की योजना बना रहे हैं. इसी में एक है डेलाइट सेविंग टाइम को खत्म करना. जानें, क्या है ये, और इसे जारी रखने या खत्म करने का क्या असर हो सकता है?

अमेरिका में डेलाइट सेविंग टाइम (डीएसटी) की शुरुआत साल 1918 में हुई थी. ये युद्ध के आखिर-आखिर का समय था. तब ठंडे दिनों में ज्यादा से ज्यादा समय तक दिन का उजाले का इस्तेमाल हो सके, इसलिए डीएसटी का कंसेप्ट चला. हालांकि ये आधिकारिक तौर पर लागू साठ के दशक में हुआ, जब तत्कालीन सरकार ने यूनिफॉर्म टाइम एक्ट के तहत इसे पूरे देश में लागू कर दिया. 

Advertisement

वैसे इसके काफी पहले भी दुनिया में डीएसटी आजमाया जा चुका. इसे पहली बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने साल 1784 में इंट्रोड्यूस किया था. हालांकि, इसका मौजूदा कंसेप्ट न्यूजीलैंड के साइंटिस्ट जॉर्ज हडसन ने दिया था. हडसन ने साल 1895 में समय को दो घंटे आगे-पीछे करने का प्रस्ताव रखा था. 

क्या है डेलाइट सेविंग टाइम

अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में घड़ी की सुइयां मार्च और नवंबर के दौरान एक बार आगे या पीछे होती हैं. इसमें गर्मी के मौसम में घड़ी की सुई को एक घंटा आगे कर दिया जाता है जिससे लोग दिन के उजाले का ज्यादा इस्तेमाल कर सकें और सर्दियां आने पर घड़ियों को वापस एक घंटा पीछे कर दिया जाता है. इससे लोगों को ज्यादा वक्त अंधेरे में काम नहीं करना होगा और एनर्जी सेवा होगी. वहीं गर्मी में घड़ी के एक घंटा आगे बढ़ाने से भी ज्यादातर काम दिन की रोशनी में निपट जाएंगे. इससे भी बिजली की खपत कम होगी. 

Advertisement
एलन मस्क डीएसटी को हार्मफुल प्रैक्टिस कहते आए हैं.

यूएस में यूनिफॉर्म टाइम एक्ट के तहत ये लागू तो हो गया लेकिन इसे लेकर अक्सर भारी बहस होती रही. इसके कई कारण हैं. 

- कई स्टडीज कहती हैं कि डीएसटी के चलते सड़क हादसे बढ़ जाते हैं, खासकर फरवरी, मार्च के वक्त क्योंकि सुबह की रोशनी देर से ही आती है, जबकि घड़ी की वजह से दिन पहले शुरू हो चुका होता है. 

- कई डॉक्टरों ने ये दलील दी कि वक्त में मैन-मेड बदलाव से हमारे शरीर की कुदरती घड़ी गड़बड़ा जाती है. इसकी वजह से जल्दी जागने की वजह से दिल की बीमारियां भी बढ़ीं. 

- डीएसटी को शुरू ही किया गया था बिजली की बचत के लिए लेकिन अब चूंकि लोग एसी और कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करते हैं तो एनर्जी सेव होती हुई भी नहीं दिख रही.

क्या कहते हैं अध्ययन

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इसपर 40 से ज्यादा अध्ययन किए. इनमें पाया गया कि डेलाइट सेविंग टाइम की वजह से बिजली की खपत में सिर्फ 0.34 प्रतिशत की ही कमी दिख रही है, जबकि इसके उलट भी एक स्टडी आ चुकी. नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने साल 2008 में एक स्टडी में पाया कि डीएसटी की वजह से कुल एनर्जी कन्जंप्शन 1 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.  

Advertisement
विवेक रामास्वामी भी डेलाइट सेविंग टाइम के खिलाफ स्टैंडर्ड समय की बात कर रहे हैं. 

राज्यों ने की खत्म करने की कोशिश

कैलिफोर्निया और फ्लोरिडा समेत कई बड़े राज्य इसके खिलाफ मुहिम चला चुके. साल 2018 में फ्लोरिडा ने डोन्ट चेंज टाइम कानून पास करना चाहा, जिसके तहत स्टेट में स्थाई डीएसटी लागू करने की बात थी. कैलिफोर्निया ने एक कदम आगे बढ़ते हुए नागरिकों के बीच वोटिंग ही करा डाली थी. यूरोपियन यूनियन ने भी उसी साल ये प्रस्ताव दिया था कि वो साल 2021 तक डेलाइट सेविंग टाइम को खत्म कर देगा लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका.

अमेरिका में कई पोल्स भी इसे लेकर हो चुके, जिनमें ज्यादातर अमेरिकियों ने डेलाइट सेविंग टाइम खत्म कर देने की इच्छा जताई. अब मस्क और रामास्वामी जैसे प्रभावशाली लोगों की आक्रामकता से ये मुद्दा फिर उछल पड़ा है, और अनुमान है कि इसे कई लीडरों का समर्थन भी मिलेगा. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement