
अपने से कई गुना छोटे देश यूक्रेन के मोर्चे पर डटे रहने का गुस्सा रूस अब दूसरे पड़ोसियों पर भी उतार रहा है. खासकर एस्टोनिया से उसके रिश्ते काफी खराब हो चुके. वहां के विदेश मंत्री ने सीधे-सीधे शक जताया कि रूस उसपर हाइब्रिड अटैक कर सकता है. ये बात ऐसे समय में आई है, जब पूरी दुनिया ही रूस और चीन से किसी न किसी वजह से परेशानी की बात कह रही है.
लेकिन सवाल ये है कि एस्टोनिया भला ऐसा कौन सा देश है, जिसपर रूस नाराज है.
यूरोप के उत्तर-पूर्व में बाल्टिक सागर के पूर्वी तट पर बसा ये देश पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. नब्बे के शुरुआती दशक में जब सोवियत संघ में मिखाइल गोर्बाचेव लीडर थे. शीतयुद्ध की वजह से रूस दुनिया से कटा हुआ था. गरीबी और गुस्सा दोनों बढ़ चुके थे. तभी एक साथ कई अलगाववादी गुट पनपे और दुनिया की सबसे बड़ी ताकत 15 हिस्सों में टूट गई. इस्टोनिया इसी में से एक था.
ऐसे सुधारे आर्थिक हालात
जब ये देश रूस से अलग हुआ तो काफी बदहाल था. आम ढंग से समझें तो इसकी हालत जॉइंट फैमिली से रातोरात अलग हुए उस परिवार जैसी थी, जिसके पास मसाले रखने के लिए अलग डिब्बे तक नहीं होते. जल्द ही इसकी सरकार ने इकनॉमिक रिफॉर्म लाया. सोशलिस्ट देश की बजाए वे कैपिटलिस्ट बने. रूस या उत्तर कोरिया की तरह अलग-थलग जीने की बजाए एस्टोनिया सबके साथ व्यापार करने लगा.
मुफ्त इंटरनेट और ट्रांसपोर्ट मिलता है यहां
एस्टोनियन सरकार ने अपने नागरिकों के लिए फ्लैट इनकम टैक्स की व्यवस्था लागू की, यानी यहां हरेक नागरिक को समान टैक्स भरना होता है. यहां इंटरनेट फ्री है. देशभर में हजारों फ्री वाई-फाई स्पॉट हैं, इनमें कॉफी शॉप, पेट्रोल पंप, रेस्त्रां, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, होटल और सभी सरकारी दफ्तर शामिल हैं. इंटरनेट ही नहीं, यहां पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी मुफ्त है. इसके पीछे उनकी सोच थी कि रूस का हिस्सा रहने के दौरान लोग काफी तकलीफ में रहे, तो अब वे आजादी से जी सकें, और जहां चाहें आ-जा सकें.
अब रूस को इस देश से क्या दिक्कत है
ये दिक्कत वैसी ही है, जैसे बिना बताए इस्तीफा देने वाले कर्मचारी के साथ बॉस को होती है. रूस गुस्सा है कि अदना सा देश कैसे इतना आगे निकल गया कि यूरोप के हाई-इन्कम देशों में इसकी गिनती होने लगी. एस्टोनिया ने यूक्रेन की सैन्य और आर्थिक मदद की, इस बात ने आग में घी डालने का काम किया. इसके बाद ही दोनों के बीच तनाव बढ़ गया.
रूस और एस्टोनिया के बीच 3 सौ किलोमीटर का बॉर्डर साझा है. एस्टोनिया डरा हुआ है कि यूक्रेन के साथ-साथ लगे हाथ रूस उसपर भी हमलावर न हो जाए. यही वजह है कि वो हाइब्रिड वॉर की बात कर रहा है. बिल्कुल यही बात पोलैंड ने भी रूस के खिलाफ की थी.
पोलैंड में लगातार आ रहे रूसी लोग
पोलैंड की सरकार ने आरोप लगाया कि रूस अपने लोगों को जानबूझकर सताया हुआ दिखा रहे हैं. ये लोग रूस में फसाद का हवाला देकर सीमा पार करके पोलैंड आ रहे हैं, लेकिन ये शांत लोग नहीं, बल्कि रूस के हथियार हैं. मौका पाते ही ये लोग हाइब्रिड अटैक कर सकते हैं. वैसे अब तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई, जो पोलैंड के इस डर को सही साबित कर सके. ये भी हो सकता है कि बहुत ज्यादा शरणार्थियों के आने से वो घबराया हुआ है.
क्या है हाइब्रिड हमला
किसी देश के अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हमला करना हाइब्रिड अटैक कहलाता है. इसके तहत कई काम होते हैं, जैसे वहां हो रहे चुनाव के नतीजों पर असर डालना. अगर दो पार्टियां इलेक्शन में हैं तो विरोधी देश एक पार्टी को अपने पक्ष में कर लेगा और जीतने में उसकी मदद करेगा. जीत के बाद पार्टी उस देश का मोहरा बनकर रह जाती है. इस तरह के अटैक में बारूदी सुरंगे बिछाना और साइबर हमले करना भी शामिल है.
क्यों किया जाता है ये अटैक
सीधा हमला करने के कई नुकसान हैं. इससे देश अलर्ट हो जाता है. सीधी जंग छिड़ जाती है, जिसमें आरपार का फैसला हो सकता है. इससे ये डर भी रहता है कि इंटरनेशनल संस्थाएं भी हमला करने वाले देश के खिलाफ हो जाए. वहीं हाइब्रिड या किस्तों में छिपा हुआ हमला देश को कमजोर भी करता है और शक भी नहीं जाता. बहुत से देश आपस में हाइब्रिड अटैक, खासकर इलेक्शन मेनिपुलेशन का आरोप लगाते रहे.