
अमेरिका में इधर विब्रियो वल्निफिकस नाम के बैक्टीरिया की वजह से 3 जानें चली गईं. इनमें से दो लोगों को समुद्री तैराकी के बाद संक्रमण हुआ था, जबकि एक ने कच्चा सी-फूड खाया था. बेहद तेजी से फैले इंफेक्शन और मौत के बाद प्रभावित राज्यों ने समुद्र में तैरने और सी-फूड को लेकर अलर्ट जारी कर दिया. ये बैक्टीरिया नेक्रोटाइजिंग फासिसाइटिस भी कहलाता है, जो शरीर में किसी जख्म के जरिए भीतर पहुंचकर ऑर्गन डैमेज कर देता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, ये खारे पानी में मिलने वाला बैक्टीरिया है, जिसके संक्रमण के बाद बचने की संभावना बहुत कम रहती है.
इस जगह दिखा पहला नमूना
ये तो धरती पर मिलने वाला बैक्टीरिया है, लेकिन स्पेस से भी वायरस और बैक्टीरिया धरती पर लगातार गिरते रहते हैं. कई सालों पहले जब कुछ अरबपतियों ने जर्म्स के डर से दूसरे ग्रह पर बसने की बात की, तब से ही वैज्ञानिक एलियन जर्म्स की बात कह रहे हैं. स्पेनिश पर्वत श्रृंखला सिएरा नेवादा में रिसर्च के दौरान एक्सपर्ट्स ने ये बात देखी. पहाड़ों के हर वर्ग मीटर पर 8 सौ मिलियन वायरस देखे गए. बैक्टीरिया की संख्या इससे कुछ कम थी. स्टडी में कनाडा, स्पेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों की टीम शामिल थी. सैन डिएगो यूनिवर्सिटी में भी इसमें हिस्सा लिया था.
कई थ्योरीज पर होने लगी बहस
पहाड़ों पर, जहां किसी भी किस्म का प्रदूषण कम होता है, वहां ये जर्म्स कहां से आ रहे हैं. इसपर अलग-अलग थ्योरी दी गई. पहले यह माना जाता था कि वायरस या बैक्टीरिया इसी ग्रह पर जन्म लेते और बढ़ते-घटते हैं. लेकिन पहाड़ों पर, जहां आबादी नहीं है, वहां इनकी मौजूदगी ने इसपर सवाल खड़े कर दिए.
अब एक्सपर्ट ये भी मान रहे हैं कि जर्म्स स्पेस से भी आते हैं. इसे पैनस्पर्मिया कहते हैं. इसपर यकीन करने वाले साइंटिस्ट मानते हैं कि जीवन पूरे स्पेस में है, जो धूल, एस्टेरॉइट्स, कॉमेट्स के जरिए यहां से वहां फैलता रहता है.
रेडिएशन का भी नहीं होता असर
ये वायरस और बैक्टीरिया एक्सट्रीमोफाइल्स होते हैं, मतलब स्पेस की रेडिएशन तक को सहकर बच जाते हैं. यहीं से वे किसी न किसी जरिए से होते हुए धरती तक पहुंचते हैं. हालांकि पैनस्पर्मिया की इस थ्योरी पर बहुत से वैज्ञानिक यकीन नहीं करते, तब भी दावे होते आए हैं. साल 2020 में नेचर कम्युनिकेशन्स के मल्टीडिसिप्लिनरी जर्नल ऑफ माइक्रोबियल इकोलॉजी ने एक रिसर्च पेपर निकाला, जिसमें बताया गया कि ऊंचे पहाड़ों में हर छोटे हिस्से पर करोड़ों जर्म्स होते हैं, जो आमतौर पर महासागरों से आए होते हैं. जैसे सिएरा नेवादा पर रिसर्च में माना गया कि वायरस धरती पर आने के बाद अटलांटिक महासागर और वहां से सहारा मरुस्थल पहुंचे और वहां से पहाड़ों पर जमा हो गए.
कैसे आते होंगे धरती पर?
अंतरिक्ष से धरती तक पहुंचने का जरिया समझने के लिए वैज्ञानिकों ने धरती की सतह के सबसे निचले हिस्से यानी ट्रोपोस्फेयर पर ध्यान दिया. ये ऊंचाई समुद्र तल से 8 से लेकर 10 हजार फीट ऊंची होती है. स्पेस से इस लेयर तक पहुंचे वायरस यहां से हवा में पाए जाने वाले मिट्टी के कणों के साथ नीचे पहुंच जाते हैं और पहाड़ों पर जमा हो जाते हैं.
हमें इनसे कितना खतरा?
एक्स्ट्राटैरेस्ट्रियल बैक्टीरिया और वायरस सुनने में भले खतरनाक लगें लेकिन धरती को फिलहाल इससे कोई खतरा नहीं. पैथोजेनेसिस का नियम कहता है कि जर्म्स को जिंदा रहने के लिए होस्ट चाहिए, यानी इंसानों या जीव-जंतुओं का शरीर. लेकिन जिन जगहों पर ये वायरस होते हैं, उनके लोगों के संपर्क में आने की संभावना कम रहती है. दूसरी वजह ये है कि चूंकि ये एलियन जर्म्स हैं, जो इंसानों या दूसरे जीवों के प्रोटीन से जुड़ने के लिए वे मॉडिफाई भी नहीं होते. जब वे हमारे भीतर ही नहीं पहुंच सकेंगे तो बीमारी पैदा करने की आशंका भी नहीं रहेगी.
स्पेस के लिए बने कई सेफ्टी प्रोटोकॉल
जिस तरह स्पेस से धरती पर वायरस आते हैं, उसी तरह स्पेस पर वायरस होते भी हैं. जर्मन एरोस्पेस सेंटर के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन ने साल 2022 में एक रिव्यू पेपर प्रकाशित किया. एस्ट्रोबायोलॉजी में छपे इस पेपर में माना गया कि अंतरिक्ष में बैक्टीरिया से कई गुना ज्यादा वायरस होते हैं. हालांकि ये साफ नहीं हुआ कि ये जिंदा कैसे रहते हैं.
इस रिसर्च से पहले ही साइंटिस्ट एलियन जर्म्स की बात करते रहे. यहां तक कि अंतरिक्ष से लाए हुए किसी भी नमूने को धरती पर सीधे खोला नहीं जाता, बल्कि लंबे क्वारंटीन पीरियड के बाद वैज्ञानिक उसे देखते हैं. साठ के दशक में ही आउटर स्पेस ट्रीटी के तहत ये सेफ्टी प्रोटोकॉल बना था. इसमें अंतरिक्ष यात्रियों को भी डीकंटेमिनेट करके कुछ समय के लिए अलग रखा जाता है.