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आंकड़ों के आईने में गुजरात मॉडल, देखें पिछले पांच साल में कितना बदला प्रदेश

गुजरात एक बार फिर चुनाव के लिए तैयार है. 27 साल से बीजेपी यहां सत्ता में है. बीजेपी एक बार फिर से सत्ता अपने पास बनाए रखने के लिए गुजरात मॉडल को आगे कर रही है. गुजरात मॉडल को बीजेपी ने विकास के आईने के तौर पर भी पेश किया है. अब 8 दिसंबर को पता चलेगा कि गुजरात मॉडल पास रहा या फेल?

आंकड़ों में समझें पांच साल में कितना बदला गुजरात. आंकड़ों में समझें पांच साल में कितना बदला गुजरात.
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:01 AM IST

गुजरात में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. पिछले 27 साल से यानी 1995 से बीजेपी ही यहां सत्ता में रही है. 2001 में नरेंद्र मोदी यहां के मुख्यमंत्री बने और 2014 तक देश के प्रधानमंत्री बनने तक सत्ता में रहे. बाद में आनंदीबेन पटेल, विजय रूपाणी और अब भूपेंद्र सिंह पटेल मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं.

पिछले 21 साल से न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की राजनीति में 'गुजरात मॉडल' सबसे चर्चित शब्दों में रहा है. आखिर क्या है विकास का ये गुजरात मॉडल जिसे लेकर पूरा देश जैसे दो खेमे में बंट गया है. एक जो इस मॉडल का मुरीद है तो दूसरा जो इसपर सवाल खड़े करता है. aajkak.in ने पिछले पांच साल के आंकड़ों के आईने में इसे परखा और जो नतीजे आए वो आपके सामने हैं.

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1. सबसे पहले बात अर्थव्यवस्था की...

गुजरात में देश की 5 फीसदी से भी कम आबादी रहती है, लेकिन देश की जीडीपी में राज्य की हिस्सेदारी 9 फीसदी से ज्यादा है. 5 साल पहले यानी 2016-17 में गुजरात की जीडीपी 12 लाख करोड़ रुपये से भी कम की थी, जो 2021-22 में बढ़कर लगभग 20 लाख करोड़ रुपये हो गई है. 2022-23 में गुजरात की जीडीपी 23 लाख करोड़ रुपये के पार जाने का अनुमान है.

जीडीपी बढ़ने के साथ ही गुजरात में आम आदमी की कमाई भी बढ़ी है. 2016-17 में गुजरात में प्रति व्यक्ति आय 1.56 लाख रुपये थी, जो 2020-21 में बढ़कर 2.14 लाख रुपये से ज्यादा हो गई. यानी, पहले हर गुजराती हर महीने 13 हजार रुपये के आसपास कमाता था और अब लगभग 18 हजार रुपये कमा लेता है.

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वैसे, सरकार की कमाई और खर्च भी काफी बढ़ा है और कर्ज भी. कम्प्ट्रोलर ऑफ ऑडिटर जनरल (CAG) की रिपोर्ट बताती है कि गुजरात सरकार पर 2016-17 में ढाई लाख करोड़ रुपये के आसपास कर्ज था, जो 2020-21 में बढ़कर साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. यानी, 5 साल पहले गुजरात की जितनी जीडीपी थी, उसका 19% कर्ज था, जो अब बढ़कर 21% से ज्यादा हो गया है.

2. रोजगार की क्या है स्थिति?

गुजरात सरकार के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, अक्टूबर 2021 तक रोजगार दफ्तर में 3.72 लाख लोग रजिस्टर्ड थे. इनमें से 3.53 लाख यानी लगभग 95 फीसदी लोग ग्रेजुएट थे. वहीं, अक्टूबर 2017 तक 5.59 लाख लोगों ने अपना नाम रजिस्टर में दर्ज करवाया था और उनमें से भी लगभग 95 फीसदी यानी 5.30 लाख ग्रेजुएट थे. 

इतना ही नहीं, 2017 में अक्टूबर तक रोजगार कार्यालय में 4.55 लाख लोगों ने नाम दर्ज करवाया था, जिनमें से 3.60 लाख यानी 80% लोगों को रोजगार मिल गया था. वहीं, बीते साल अक्टूबर तक 2.60 लाख लोगों ने नाम दर्ज करवाया था,  उनमें से भी 83 फीसदी यानी 2.17 लाख लोगों को रोजगार मिल गया था.

दूसरी तरफ फैक्ट्रियों में मिलने वाले रोजगार में भी बढ़ोतरी हुई है. गुजरात में देश की 11 फीसदी से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. हर फैक्ट्री में औसतन 72 लोग काम करते हैं. जबकि, पहले 62 लोग काम करते थे.

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राज्य में बेरोजगारी के हालात किस तरह सुधर रहे हैं  इन्हें तीन आंकड़ों से समझा जाता है. पहला- लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी LFPR, दूसरा- वर्कर पॉपुलेशन रेशो यानी WPR और तीसरा- बेरोजगारी दर यानी UR. 

LFPR का मतलब होता है कि कुल आबादी में से ऐसे कितने लोग हैं, जो काम की तलाश में हैं या काम करने के लिए उपलब्ध हैं. WPR का मतलब होता है कि कुल आबादी में से कितनों के पास रोजगार है. वहीं, बेरोजगारी दर का मतलब होता है कि लेबर फोर्स में शामिल कितने लोग बेरोजगार हैं. 

लेबर फोर्स और वर्कर पॉपुलेशन का बढ़ना और बेरोजगारी दर का घटना अच्छा माना जाता है. और गुजरात में यही हो रहा है. लेबर फोर्स और वर्कर पॉपुलेशन बढ़ रही है, जबकि बेरोजगारी दर घट रही है.

3. स्वास्थ्य की स्थिति?

कोरोनाकाल में स्वास्थ्य को लेकर जोर बढ़ गया है. पांच साल में गुजरात में हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा जरूर है, लेकिन ये बढ़ोतरी मामूली है. 

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2017 में गुजरात में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 24 थी, जो 2021 में बढ़कर 31 हो गई है. इनमें सीटों की संख्या भी 3,830 से बढ़कर 5,700 हो गई है.

राज्य का हेल्थ बजट लगभग दोगुना हो गया है. 2016-17 में गुजरात का हेल्थ बजट साढ़े 6 हजार करोड़ रुपये था, जबकि 2022-23 में स्वास्थ्य के लिए 12 हजार 200 करोड़ रुपये से ज्यादा रखे गए हैं.

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हालांकि, इन सबके बावजूद गुजरात में कुपोषण कुछ बढ़ा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में गुजरात में 5 साल से कम उम्र के 38.5% बच्चे ऐसे थे जो ठिगने थे, जबकि 2019-20 में ये आंकड़ा बढ़कर 39% हो गया. इसी तरह, पहले 5 साल से कम उम्र के 9.5% बच्चे ऐसे थे जो गंभीर रूप से वेस्टेड थे, जो अब बढ़कर 10.6% हो गया है. वेस्टेड यानी 5 साल से कम उम्र के ऐसे बच्चे जिनका वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम होता है.

इतना ही नहीं, इस दौरान 5 साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापा भी बढ़ गया है. पहले 1.9% बच्चे ओवरवेट थे और अब 3.9%.

4. महिलाओं की स्थिति कितनी सुधरी?

गुजरात में लगभग 48 फीसदी आबादी महिलाओं की है. पांच साल में यहां लिंगानुपात में सुधार हुआ है. 2015-16 में गुजरात में एक हजार पुरुषों पर 950 महिलाएं थीं, जबकि 2019-20 में 965 महिलाएं हो गईं. 

डिलीवरी के समय होने वाली मौतों यानी मातृ मृत्यु दर में भी थोड़ा सुधार हुआ है. मातृ मृत्यु दर एक लाख जन्म में महिलाओं की मौत की संख्या को बताता है. गुजरात में 2015-17 में ये संख्या 87 थी, जो 2017-19 में घटकर 70 हो गई.

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हालांकि, महिलाओं की लाइफ एक्सपेक्टेंसी यानी औसत आयु के मामले में गुजरात कई राज्यों से पीछे है. गुजरात में महिलाओं की औसत आयु 72.3 साल है. यानी, यहां की महिलाओं की औसत उम्र 72 साल 3 महीने है. जबकि, जम्मू-कश्मीर में ये 76.2 साल, पंजाब में 74.8 साल और महाराष्ट्र में 73.8 साल है.

लेकिन, पढ़ाई के मामले में महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. 2015-16 में गुजरात की 33 फीसदी महिलाएं 10वीं या उससे आगे की पढ़ाई करती थीं. 2019-20 में ये संख्या बढ़कर 34 फीसदी तक ही पहुंची. जबकि, इसी दौरान देश में ये संख्या 36 फीसदी से बढ़कर 41 फीसदी हो गई. 

इतना ही नहीं, गुजरात में अभी भी 100 में से 70 महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने इंटरनेट का कभी इस्तेमाल ही नहीं किया. और 100 में से 52 महिलाओं के पास अपना फोन भी नहीं है. 

हालांकि, खुद के नाम पर जमीन या घर होने के मामले में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है. 2015-16 में सिर्फ 27 फीसदी महिलाओं के पास ही खुद की जमीन या घर था, जबकि 2019-20 में ये संख्या बढ़कर 42 फीसदी से ज्यादा हो गई.

5. क्राइम कम हुआ या नहीं?

अब बात अगर क्राइम की करें तो आंकड़ों में तो ये कम हुआ है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में गुजरात में क्राइम रेट 16.5% था, जो 2021 में घटकर 11.9% पर आ गया. एक लाख आबादी पर कितना अपराध हुआ, ये क्राइम रेट से पता चलता है.

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हालांकि, इस दौरान दर्ज होने वाले आपराधिक मामलों की संख्या लगभग दोगुनी भी हो गई. 2017 में राज्य में 3.34 लाख मामले दर्ज हुए थे. जबकि 2021 में 7.31 लाख मामले दर्ज किए गए. 

इस दौरान महिलाओं के खिलाफ दर्ज होने वाले अपराधों में थोड़ी कमी जरूरी है, लेकिन रेप के मामले बढ़ गए हैं. 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 7,348 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 589 मामले रेप के थे.

6. स्कूली शिक्षा का क्या रहा हाल?

2011 की जनगणना के मुताबिक, साक्षरता दर के मामले में गुजरात 18वें नंबर पर है. यहां की साक्षरता दर 80% से कम है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 2019-20 में गुजरात में पुरुषों की साक्षरता दर 87.4% और महिलाओं की 73.5% थी. 

शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनु्सार, शिक्षा पर अपनी जीडीपी का खर्च करने के मामले में गुजरात लगभग आखिरी नंबर पर आता है. गुजरात शिक्षा पर अपनी जीडीपी का 2 फीसदी के आसपास ही खर्च करता है, जबकि मेघालय और मिजोरम जैसे राज्य 7 फीसदी से ज्यादा खर्च करते हैं.

हालांकि, गुजरात का शिक्षा बजट 5 साल में 10 हजार करोड़ रुपये बढ़ा है. 2016-17 में गुजरात का शिक्षा बजट करीब 24 हजार करोड़ रुपये था, जो 2021-22 में बढ़कर 35 हजार करोड़ के आसपास पहुंच गया. 

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पिछले साल अगस्त में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि देश के सरकारी स्कूलों में टीचर्स या प्रिंसिपल के 11 लाख से ज्यादा पद खाली हैं. इनमें से गुजरात में सिर्फ 6,393 पद ही खाली थे. 

गुजरात में टीचर्स-स्टूडेंट रेशो भी अच्छा है. इससे पता चलता है कि स्कूलों में कितने स्टूडेंट पर एक टीचर है. राइट टू एजुकेशन एक्ट, 2009 के मुताबिक स्कूलों में प्राइमरी लेवल पर हर 30 स्टूडेंट्स पर एक टीचर होना चाहिए. इसी तरह अपर प्राइमरी लेवल पर 35 स्टूडेंट्स पर एक टीचर होना जरूरी है. शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, गुजरात में प्राइमरी लेवल पर 30 और अपर प्राइमरी लेवल पर 24 स्टूडेंट्स पर एक टीचर है. वहीं, औसत निकाला जाए तो गुजरात के स्कूलों में हर 31 स्टूडेंट्स पर एक टीचर है.

हालांकि, 5 साल में गुजरात में 600 नए स्कूल भी नहीं खुले हैं और टीचर्स की संख्या भी कम हो गई है. 2016-17 में राज्य में 53,291 स्कूल थे, जिनकी संख्या 2021-22 में थोड़ी बढ़कर 53,851 ही हुई. इस दौरान टीचर्स की संख्या भी साढ़े 14 हजार कम हो गई है.

आखिर में बात गुजरात के इतिहास की

1947 में जब भारत को आजादी मिली, तब गुजरात नाम का कोई राज्य ही नहीं था. आजादी से पहले ये बंबई प्रेसिडेंसी का हिस्सा था. और आजादी के बाद बंबई राज्य का हिस्सा बना. 1 मई 1960 में बंबई राज्य को दो भागों में बांटा गया और जन्म हुआ गुजरात का.

1960 में यहां पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. तब 132 सीटें हुआ करती थीं. 1960 से 1975 तक कांग्रेस का एकतरफा राज रहा. आपातकाल के बाद कांग्रेस थोड़ा डगमगाई जरूर, लेकिन 1980 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद फिर उठ खड़ी हुई.

1980 में माधव सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बने. उन्होंने ही क्षत्रियों, दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों को साथ लाने वाली 'खाम थ्योरी' बनाई थी. इसी थ्योरी की बदौलत 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 149 सीटें जीतीं, जो अब तक किसी पार्टी को मिली सीटों की सबसे ज्यादा संख्या है. हालांकि, 1990 के बाद यहां पटेल राजनीति की शुरुआत हुई.

1990 में जनता दल और बीजेपी की मिली-जुली सरकार बनी, लेकिन राम मंदिर के मुद्दे पर गठबंधन टूट गया. 1995 में बीजेपी को बड़ी जीत मिली और केशुभाई पटेल सीएम बने, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. 1998 में केशुभाई पटेल दूसरी बार सीएम बने, लेकिन 2001 के भूकंप के बाद उन्हें हटा दिया गया और फिर शुरुआत हुई नरेंद्र मोदी युग की. मोदी लगातार 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की जगह आनंदीबेन पटेल ने ली. आनंदीबेन पटेल ने भी बाद में इस्तीफा दे दिया और विजय रूपाणी सीएम बने. फिलहाल भूपेंद्र सिंह पटेल यहां के सीएम हैं.

गुजरात 1.96 लाख वर्ग किमी के इलाके में फैला हुआ है. इसका समुद्र तट 1,600 किमी लंबा है. और यहां की आबादी 6 करोड़ से ज्यादा की आबादी रहती है. 

67 साल के इतिहास में एक बार फिर से गुजरात चुनाव के लिए तैयार है. बड़े-बड़े वादे और दावे किए जा रहे हैं. 8 दिसंबर को पता चलेगा कि बीजेपी का 'गुजरात मॉडल' इस बार पास हुआ या फेल?

 

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