
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जिला अदालत ने आज बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वे कराने की इजाजत दे दी है.
हिंदू पक्ष ने जिला अदालत में याचिका दायर कर मस्जिद परिसर का सर्वे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से करवाने की इजाजत मांगी थी. इस मामले में 14 जुलाई को जिला जज एके विश्वेश ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
कोर्ट ने अपने आदेश में विवादित जगह को छोड़कर बाकी पूरे परिसर का ASI सर्वे कराने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई अब 4 अगस्त को होगी.
क्या है मामला?
- अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी.
- महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर पिछली साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था.
- सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है.
- इसके बाद पांच वादी महिलाओं में से चार ने इसी साल मई में एक प्रार्थना पत्र दायर किया था. इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का ASI से सर्वे कराया जाए. इसी पर अदालत ने आज फैसला सुनाया है.
सर्वे होगा कैसे?
- अदालत के आदेश पर अब ASI की टीम मस्जिद परिसर का सर्वे करेगी. हालांकि, ASI उस वजूखाने का सर्वे नहीं करेगी, जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था.
- हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने बताया कि इस सर्वे में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा.
- हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद परिसर के अंदर जो बीच का गुम्बद है, उसके नीचे की जमीन से धपधप की आवाज आती है. ऐसा दावा है कि उसके नीचे मूर्ति हो सकती है, जिसे कृत्रिम दीवार बनाकर ढंक दिया गया है.
- हिंदू पक्ष के वकील का कहना है कि ASI की टीम पूरे मस्जिद परिसर का सर्वे करेगी. हालांकि, सील्ड एरिया का सर्वे नहीं किया जाएगा.
वजूखाने का सर्वे क्यों नहीं?
- ज्ञानवापी मस्जिस परिसर के एडवोकेट कमीशन के सर्वे के दौरान वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था.
- दरअसल, सर्वे के दौरान वजूखाने से शिवलिंग जैसी आकृति दिखी थी. हिंदू पक्ष ने इसे शिवलिंग तो मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था.
- अभी जो ASI की टीम सर्वे करेगी, वो इस वजूखाने और उसमें मिले कथित शिवलिंग का सर्वे नहीं करेगी. क्योंकि ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस पूरे एरिया को सील कर दिया गया है.
कितना टाइम लगेगा?
- वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि अयोध्या के राम मंदिर मामले में 2002 में ASI को सर्वे करने की अनुमति मिली थी. तब ASI ने तीन साल यानी 2005 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी.
- उनका कहना है कि ज्ञानवापी मामले में तीन से छह महीने का समय लग सकता है. क्योंकि अयोध्या की तरह इसके सर्वे का इलाका बहुत बड़ा नहीं है.
पर यहां विवाद क्या है?
- जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद था, ठीक वैसा ही ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद भी है. स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ को सबसे अहम माना जाता है.
- 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की.
- याचिका में दावा किया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.
किसकी क्या दलील?
- हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए. हिंदू पक्ष का दावा है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है.
- वहीं, मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ है. मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद ही बताता है. इसके साथ ही ये भी दावा करता है कि मस्जिद में आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है.
- मुस्लिम पक्ष की दलील है कि चूंकि आजादी से पहले नमाज पढ़ रहे हैं, इसलिए इस पर 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी लागू होता है.
- हालांकि, जिला कोर्ट ने पिछले साल अपने फैसले में साफ कर दिया था कि हिंदू 1993 तक यहां रोजाना पूजा करते आ रहे थे और उसके बाद साल में एक बार पूजा करते रहे थे, इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट इस मामले पर लागू नहीं होता.
- प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. दरअसल, ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा. उसके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता.