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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केसः कार्बन डेटिंग से कैसे पता चलेगी 'शिवलिंग' की उम्र, क्या ये संभव है?

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के दौरान मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की जाए या नहीं? इस पर वाराणसी की जिला अदालत अब 11 अक्टूबर को फैसला सुनाएगी. पहले ये फैसला आज ही आना था. कार्बन डेटिंग की मांग इसलिए हो रही है, ताकि कथित शिवलिंग की सही उम्र का पता लगाया जा सके.

हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया था. (फाइल फोटो-PTI) हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया था. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:43 PM IST

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मिले 'शिवलिंग' की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग कराई जाए या नहीं? इसपर वाराणसी कोर्ट का आज आने वाला फैसल टल गया है. अब इस पर 11 अक्टूबर को फैसला आएगा.

पर कोर्ट के फैसले से पहले सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या पत्थर या लोहे की उम्र का पता लगाया जा सकता है और अगर लगाया जा सकता है तो कैसे? जिस कार्बन डेटिंग पद्धति से दावे वाले शिवलिंग की उम्र का पता लगाने की याचिका डाली गई है क्या है उसकी पूरी प्रक्रिया, कैसे इस टेक्नीक से ऐतिहासिक धरोहरों की उम्र का पता लगाया जाता है. इन सब सवालों का जवाब हम देंगे.

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सबसे पहले क्या है पूरा मामला?

- पिछले साल 18 अगस्त को पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी.

- महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश पर इसी साल 14, 15 और 16 मई को सर्वे किया गया. 

- सर्वे के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था. उन्होंने दावा किया था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है.

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- बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सिविल जज से जिला कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया था. जिला कोर्ट को ये तय करना था कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के लायक है या नहीं? जिला कोर्ट के जज अजय कृष्ण विश्वेश 12 सितंबर को फैसला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के लायक माना था.

- इस फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर याचिका दायर की. हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद में शिवलिंग मिला है और वो कितने साल पुराना है, इसका पता लगाने के लिए उसकी कार्बन डेटिंग कराने की अनुमति दी जाए.

हिंदू पक्ष ने इसे शिवलिंग तो मुस्लिम पक्ष ने फव्वारा बताया था.

कार्बन डेटिंग से शिवलिंग की उम्र पता चल जाएगी?

- कार्बन डेटिंग को रेडियो कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है. इसकी खोज 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी ने की थी. उन्हें इसके लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला था. इस तकनीक से किसी संरचना या चीज की उम्र का पता लगाया जाता है. हालांकि, इससे अनुमानित उम्र ही पता चल सकती है और सटीकता को लेकर आज भी विवाद होता है.

- हिंदू पक्ष कार्बन डेटिंग की मांग इसलिए कर रहा है ताकि कथित शिवलिंग की सही उम्र का पता चल सके. हालांकि, एक्सपर्ट का मानना है कि इस मामले में कार्बन डेटिंग संभव नहीं है.

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- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अशोक सिंह का कहना है कि कार्बन डेटिंग उन्हीं चीजों की हो सकती है, जिसमें कभी कार्बन रहा हो. अगर किसी चीज में कार्बन हो और वो मृत हो जाए तो उसके बचे हुए अवशेष की कार्बन डेटिंग की जाती है, जैसे- हड्डी, लकड़ी का कोयला, सीप, घोंघा.

- हालांकि, प्रोफेसर अशोक सिंह कहते हैं कि रही बात किसी पत्थर या शिवलिंग की, तो ऐसी कोई तकनीक या विधि नहीं है, क्योंकि पत्थर जीवित नहीं होता है, इसलिए उसकी कार्बन डेटिंग की संभावना न के बराबर है.

- अशोक सिंह ये भी बताते हैं कि जो शिला मिली है, उसके आसपास में जो चीजें मौजूद हैं, अगर उनकी उम्र निकाली जा सके तो इस आधार पर शिला की अनुमानित उम्र भी निकाली जा सकती है.

कार्बन डेटिंग को लेकर हिंदू पक्ष में ही दोराय?

- हालांकि, कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग को लेकर हिंदू पक्ष में ही दो राय हो गई है. हिंदू पक्ष का एक धड़ा कार्बन डेटिंग की मांग कर रहा है तो दूसरा इसके विरोध में है. 

- दरअसल, कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग को लेकर हिंदू पक्ष की चार महिलाओं ने याचिका दायर की है. एक याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकीलों ने कराने का विरोध किया है.

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- राखी सिंह के वकीलों का कहना है कि कार्बन डेटिंग से शिवलिंग को क्षति पहुंचेगी, लिहाजा उसकी जरूरत नहीं है. इसके अलावा ये केस का हिस्सा भी नहीं है.

- वहीं, मुस्लिम पक्ष भी इसका विरोध कर रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी कार्बन डेटिंग का विरोध कर रही है.

ज्ञानवापी को लेकर विवाद क्या है?

- जिस तरह से अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद था, ठीक वैसा ही ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर का विवाद भी है. स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ को सबसे अहम माना जाता है. 

- 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. 

- याचिका में दावा किया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया. 

- हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और पूरी जमीन हिंदुओं को सौंपी जाए. 

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