
हमास का पॉलिटिकल चीफ इस्माइल हानिया मारा जा चुका. आतंकी संगठन के मिलिट्री चीफ मोहम्मद दइफ की मौत का दावा भी इजरायली सेना कर रही है. हमास के तीन बड़े नेताओं में अब याह्या सिनवार ही बाकी रहे. इससे ऐसा लग रहा है कि 7 अक्टूबर पर अपने नागरिकों पर हुए हमले का बदला इजरायल ने ले लिया. हालांकि ये भी हो सकता है कि फिलिस्तीनी को दूर से सपोर्ट कर रहे देश खुद भी जंग में शामिल हो जाएं. ऐसे में भारत समेत दूर-दराज बैठा अमेरिका भी इसके असर से अछूता नहीं रहेगा.
क्यों तूल पकड़ रहा मामला
ईरान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे इस्माइल हानिया तेहरान की जिस इमारत में ठहरे हुए थे, उस पूरी बिल्डिंग को ही हवाई हमला करके उड़ा दिया गया. इसके बाद से फिलिस्तीन समेत पूरा मिडिल ईस्ट परेशान है. खासकर ईरान, जहां अटैक हुआ. वहां से लगातार ऐसी खबरें और बयान आ रहे हैं कि ईरान हमास लीडर की हत्या को बेकार नहीं जाने देगा. वो इजरायल से बदला लेगा.
तेहरान में कड़ी सुरक्षा के बीच हुई हत्या से साफ है कि इजरायल बेहद ताकतवर है और उससे भिड़ना आसान नहीं. इसके बाद भी अंदेशा गहरा रहा है कि मिडिल ईस्ट समेत बड़े युद्ध के मुहाने पर खड़ा है. जंग बढ़ी तो वहीं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि आंच दिल्ली समेत दुनिया पर आ सकती है.
जानिए, क्या हैं इन हाई-प्रोफाइल हत्याओं के मायने.
यही नेता कर रहे थे बंधकों पर बात
हानिया की हत्या को हमास उकसावे वाली कार्रवाई मान रहा है क्योंकि हानिया कतर स्थित राजनैतिक ब्यूरो के चीफ थे. वे हमास का मॉडरेट चेहरा थे, जो सारी दुनिया में अपना संदेश देता था. वही बंधकों और युद्ध विराम की शर्तों पर बात कर रहे थे. उनका ईरान में एक अहम मौके पर जाना और हवाई हमले में हुई हत्या को हमास यूं ही नहीं जाने देगा. कम से कम वहां से बयान तो इसी तरह के आ रहे हैं.
एक बड़ी बात हत्या की जगह भी है
हमला तेहरान में हुआ, जो ईरान की राजधानी है. इस देश को हमास के रखवाले की तरह देखा जाता रहा. ऐसे में हानिया को वहीं मारा जाना ये संदेश भी दे रहा है कि हमास नाम की आइडियोलॉजी अब ईरानी छांव तले भी सुरक्षित नहीं. इसी साल अप्रैल में ईरान और इजरायल के बीच ठन भी चुकी है. अब इस हत्या से लड़ाई का ज्यादा आक्रामक दौर शुरू होने की आशंका है.
नए चुने ईरानी राष्ट्रपति पर भी होगा असर
हमास के साथ ईरान के भीतर भी हानिया की मौत का बदला इजरायल से लेने की मांग उठने लगी. ईरान में हाल ही में आए राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान पर इससे प्रेशर बनेगा. पेजेशकियान की इमेज उदारवादी नेता की है. ऐसे में हो सकता है कि ईरान के भीतर भी अस्थिरता आ जाए. बता दें कि पेजेशकियान लगातार यूरोप और अमेरिका के साथ ठीक आर्थिक संबंधों की बात करते रहे लेकिन कट्टरपंथियों के दबाव में आकर उन्हें ये फैसला बदलना पड़ सकता है.
इजरायली पीएम की इमेज हुई मजबूत
इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के लिए यह हत्या लाइफलाइन साबित हो सकती है. असल में 7 अक्टूबर की घटना और सैकड़ों इजरायली नागरिकों को हमास के बंधक बनाए जाने के बाद से नेतन्याहू की इमेज कमजोर हो रही थी. माना जा रहा था कि वे अपने देश और अपने लोगों को बचाने में उतने असरदार नहीं रहे. लेकिन अब की घटना के बाद एक बार फिर उनकी छवि मजबूत हुई.
अमेरिका भी नहीं रहेगा अछूता
कुछ ही महीनों में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं. इसमें जो बाइडेन को रिप्लेस करते हुए डेमोक्रेट्स की तरफ से कमला हैरिस आ चुकीं. वे नेतन्याहू समेत इजरायल को लेकर सख्त लगती रहीं. लेकिन अब राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी करते हुए रणनीति बदल भी सकती है. असल में अमेरिकी युवाओं में बड़ा वर्ग ऐसा है, जो इजरायल को सपोर्ट करता है.
ये बात भी है कि अमेरिका में मिडिल ईस्ट समेत मुस्लिम-बहुल देशों से आए लोग भी बड़ा वोट बैंक बन चुके, जिनका मन सीधे तौर पर हमास से जुड़ा हुआ है. वहीं रिपब्लिकन्स के कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप खुले तौर पर इजरायल के साथ रहे. कुल मिलाकर, ताजा घटनाक्रम अमेरिका पर भी असर डालेगा.
अगर ईरान और हमास शांत नहीं रहे तो इसका असर पूरे मिडिल ईस्ट पर सीधे होगा. कतर, तुर्की समेत यमन के हूतियों ने हत्या पर पहले ही आक्रामक बयान दे दिया. टॉप प्लेयर्स जैसे यूएई और सऊदी अरब भले ही शांत हैं, लेकिन भीतर कुछ हलचल हो रही हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
भारत पर क्या हो सकता है असर
देश ने अभी इस मामले पर कोई रिएक्शन नहीं दिया है. लेकिन अगर युद्ध बढ़े तो मामला गंभीर हो सकता है. मिडिल ईस्ट में लगभग 90 लाख भारतीय काम के सिलसिले में रह रहे हैं. ऐसे में वहां अस्थिरता का मतलब भारत का सीधा इनवॉल्वमेंट है.
इसके अलावा हमारी क्रूड ऑयल सप्लाई का दो-तिहाई हिस्सा इन्हीं इलाकों से आता रहा. हालांकि कुछ समय पहले ही तेल आयात की रणनीति बदली गई, जिसमें भारत रूस से ज्यादा तेल खरीद रहा है, लेकिन मध्यपूर्व पर निर्भरता अब भी है. युद्ध शुरू होने पर तेल की सप्लाई पर भी असर होगा. यहां तक कि भारत व्यापारिक मामले को कूटनीतिक मामले से अलग रख सके, ऐसा मुश्किल हो सकता है.