
सैकड़ों साल पहले खाप पंचायतों ने जब हरियाणा में काम शुरू किया ताकि अपने लोगों को बाहरी हमलों से बचा सकें. ये एक तरह के सैन्य संगठन हुआ करते थे लेकिन धीरे से यह ताकत सामाजिक बंदोबस्त तक भी पहुंच गई. खाप पंचायतें बन गईं जो अदालतों की तर्ज पर फैसले सुनाने लगीं. खाप तो अब भी हैं, लेकिन वे पुरानी सख्ती छोड़ रही हैं. हाल में धनखड़ खाप ने सदियों से चली आ रही एक परंपरा खत्म कर दी, जिसके तहत पड़ोसी गांवों के लोग आपस में रिश्तेदारी नहीं कर सकते थे.
आमतौर पर नाते-रिश्तेदारियां तभी बंद की जाती हैं, जब दो घरों, बिरादरी या तबके में कोई खटास आ जाए लेकिन झज्जर का मसला इससे बिल्कुल अलग है. जिले के छह गांवों में 100 या फिर शायद 200 सालों से इतनी घनिष्ठता थी कि आपस में शादी-ब्याह ही बंद हो चुके थे. इसके पीछे कई कहानियां रहीं, जिसे गांववाले लोककथा की तरह आपस में सुनाते.
इस बारे में हमने धनखड़ खाप के प्रधान युद्धवीर सिंह से फोन पर बात की.
वे बताते हैं, ये शायद सौ साल पुरानी बात होगी, या उससे भी ज्यादा वक्त रहा होगा, जब आबादी कम थी. पांच पड़ोसी गांवों के लोग हाट-बाजार करने जाते तो बीच में गवालीसन गांव में आराम करते थे. वे वहीं रोटी खाते. धीरे-धीरे पांचों गांवों ने गवालीसन गांव से भाईचारा मान लिया. ये वो संबंध है, जहां विवाह नहीं हो सकते.
एक और कहानी भी है. इसमें पांच गांवों से ताल्लुक रखने वाली एक युवती सफर पर थी, जहां उससे छेड़खानी की कोशिश हुई. ऐसे में गवालीसन गांव के लोगों ने उसे बचाया. इसके बाद से गांवों में भाईचारा हो गया.
इसी 2 फरवरी को गवालीसन समेत अछेज, मलिकपुर, गोधड़ी, पहाड़ीपुर और सैफिपुर गांवों की सामाजिक महापंचायत हुई, जिसमें सारे समाज की रजामंदी से तय किया गया कि अब गांवों के भाईचारे को रिश्तेदारी में बदल दिया जाए. बकौल खाप अध्यक्ष, इस निर्णय की एक वजह ये भी थी कि बच्चों की शादियां तय करते हुए इन गांवों को छोड़ना पड़ता था चाहे रिश्ता कितना ही अच्छा क्यों न हो.
ना-नुकर से रजामंदी तक आने में खाप को पूरा एक साल लग गया. यह तब है कि जबकि सूबे में लड़के-लड़कियों का रेश्यो असमान होने की वजह से शादियां नहीं हो पा रही हैं. बीच-बीच में कई रिपोर्ट्स आती रहीं कि लड़कियों की कमी की वजह से लड़कों को शादी के लिए दूसरे राज्यों से लड़कियां खरीदकर लानी पड़ रही हैं. खरीदी हुई इन लड़कियों को मोलकी या पारो भी कहा जाता रहा.
अब अपने ही गांवों की स्थिति संभालने के लिए खाप पंचायतें उदार हो रही हैं. या फिर ये भी हो सकता है कि बदलते वक्त में खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए वे अपग्रेड हो रही हों.
इससे पहले खाप से अलग चलने वालों के लिए कड़ी सजाएं थी, जिसमें बिरादरी बाहर होने से लेकर कथित तौर पर ऑनर किलिंग भी शामिल है. बता दें कि खाप पंचायतों ने एक गांव, एक गोत्र या दूसरे धर्म में रिश्ते पर कई बार नाराजगी दिखाई. यहां तक कि सूबे से ऑनर किलिंग के मामले भी आते रहे.
साल 2007 में हरियाणा के एक गांव में दो स्वजातीय प्रेमियों की शादी खाप को नागवार गुजरी. उनके गुस्से से बचने के लिए लड़की के परिजनों ने कपल को अगवा किया और दोनों की हत्या कर दी. तब भी खाप पंचायतों का तर्क था कि एक ही गांव और गोत्र में लोग भाई-बहन हो जाते हैं और इसमें शादी मुमकिन नहीं.
गांववाले हत्या करने वाले परिवार के साथ थे. हालांकि मामला इस बार कोर्ट तक जा पहुंचा और पहली बार ऑनर किलिंग में सजा सुनाई गई. खाप पंचायत के मुखिया को भी दोषी ठहराया गया. इसके बाद पहली बार खापों की जरूरत पर सवाल उठने लगे. ऑनर किलिंग के मामले वैसे अब भी आते हैं, लेकिन ऐसे केस को उकसावा देने वाले संगठनों जैसे खाप की भूमिका जरूर बदल रही है. सामाजिक पंचायतें वक्त के साथ बदल रही हैं.
आज के दौर में खाप पंचायतें विवादों से इतर सामाजिक मुद्दों पर काम कर रही हैं. मसलन, कई पंचायतों ने लड़कियों को बचाने और पढ़ाने पर जमकर काम किया, जो कि पहले कम ही होता था. साल 2018 में कई खापों ने ऑनर किलिंग के खिलाफ बयान देते हुए कहा कि लड़कियों को अपनी मर्जी से चुनाव का हक मिलना चाहिए. सामाजिक तानेबाने पर काम करने के बाद भी कई बार इनका पारंपरिक नजरिया विवाद की वजह बन जाता है.