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अमेरिका ने क्यों ईरान को 'स्टेट-स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म' की लिस्ट में डाल दिया, कितने आतंकी गुट हैं इस देश में?

इजरायल पर ईरान की जिस फोर्स ने ड्रोन हमला किया, उसे काफी पहले ही कई देश आतंकी घोषित कर चुके. ईरान में इसके अलावा भी कई आतंकी समूह फलते-फूलते रहे हैं. यहां तक कि अमेरिका ने पूरे देश ही को स्टेट-स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म घोषित कर दिया. जानिए, किसी देश को इस तरह की उपाधि मिलने पर क्या होता है. और- सरकार क्यों खुद आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है.

ईरान में कई आतंकवादी संगठन फल-फूल रहे हैं. (Photo- Getty Images) ईरान में कई आतंकवादी संगठन फल-फूल रहे हैं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 10:00 AM IST

मिडिल ईस्ट में आई अस्थिरता एक बार फिर दुनिया को परेशान कर रही है. एनालिस्ट अंदेशा जता रहे हैं कि युद्ध की चिंगारी कहीं आग में न बदल जाए. इस बीच ईरान के कई ऐसे संगठनों का नाम आ रहा है, जो लगातार पड़ोसी देशों को परेशान करते रहे. इस संगठनों के साथ दिलचस्प बात ये है कि खुद ईरान की सरकार इन्हें बढ़ावा दे रही है. या फिर बढ़ावा न दे तो भी नकेल कसने जैसा कुछ नहीं कर रही. यही सब देखते हुए साल 1984 में यूएस ने ईरान को स्टेट-स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म कह दिया. 

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क्या हैं इसके मायने

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ये उपाधि देता है. फिलहाल ईरान के अलावा तीन और देश इस श्रेणी में हैं- क्यूबा, सीरिया और नॉर्थ कोरिया. ये चारों ही देश वे हैं, जिनसे अमेरिका का संबंध तनावभरा रहा. इस कारण से स्टेट डिपार्टमेंट विवादों में भी रहता आया है. बहुत से देश आरोप लगाते हैं कि अमेरिका हर उस देश की सरकार को आतंकवाद को पोसनेवाले की लिस्ट में डाल देती है, जिससे उसके रिश्ते खराब हों. मसलन, क्यूबा और उत्तर कोरिया की सरकारें टैररिस्ट ग्रुप्स की एक्टिव सपोर्टर नहीं, लेकिन सिर्फ अमेरिका के खिलाफ होने की वजह से वे लिस्ट में आ गए. 

क्या फर्क पड़ता है लिस्ट में आने पर

इस सूची में आने का सीधा मतलब है देश की इकनॉमी पर असर पड़ना. अमेरिका इसके बाद देश पर कई पाबंदियां लगा देता है. साथ ही वहां के बड़े उद्योगपतियों को भी बैन कर देता है ताकि वे व्यापार न बढ़ा सकें. बात यहीं खत्म नहीं होती. यूएस उन देशों पर भी पाबंदियां लगाता है जो इस लिस्ट में आए देशों से व्यापार करे. 

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ईरान का क्या है मसला

साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के चार सालों के भीतर ही अमेरिका ने ईरान की सरकार को टैररिज्म को बढ़ावा देने वाला घोषित कर दिया. स्टेट डिपार्टमेंट का कहना है कि देश खुद आतंकी गुटों को बनने और मजबूत होने में मदद दे रहा है. वो उन्हें आर्थिक मदद देता है, मिलिटेंट की ट्रेनिंग करवाता है और उन्हें हथियार भी मुहैया करवाता है. खासकर हिजबुल्लाह को. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के मुताबिक, अकेले साल 2020 में ईरान ने हिजबुल्लाह को 7 सौ मिलियन डॉलर से ज्यादा की सहायता की थी. 

कौन-कौन से आतंकी संगठन 

- हिजबुल्लाह लेबनान में शिया इस्लामी राजनीतिक पार्टी और अर्द्धसैनिक संगठन है जिसे ईरान से सीधा सपोर्ट मिला हुआ है. हिजबुल्लाह पर अक्सर इजरायली और अमेरिकी लोगों-ठिकानों पर बमबारी का आरोप लगता रहा. 

- हूती अल्पसंख्यक शिया जैदी समुदाय का एक हथियारबंद समूह है, जो यमन में रहता है. इसका मकसद है दुनिया से अमेरिका और इजरायल समेत पश्चिमी असर को खत्म करना.

- हमास को भी ईरान का सपोर्ट मिला हुआ है, जो सुन्नी मुस्लिमों का चरमपंथी गुट है. ये इजरायल की बजाए फिलिस्तीनी इस्लामिक देश बनाना चाहता है. ईरान इसे दुश्मन का दुश्मन दोस्त की तर्ज पर मदद देता है. 

- फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) ईरान-स्पॉन्सर्ड है. ये हमास के बाद गाजा में सबसे ताकतवर गुट है, जो ईरान के हित भी साधता है. 

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प्रॉक्सी सेनाएं भी चल रहीं

आतंकी गुटों के अलावा तेहरान के पास प्रॉक्सी आर्मी भी है. अमेरिकन यूनिवर्सिटी के अनुसार, इस देश में एक दर्जन से ज्यादा प्रॉक्सी सेनाएं हैं. ये इतनी ताकतवर हैं कि इनके पास खुद की पॉलिटिकल पार्टी भी है. ये धार्मिक विचारधारा, खासकर उसकी कट्टरता के आधार पर लोकल राजनीति में घुसपैठ किए हुए हैं. कुछ रोज पहले इजरायल पर हुए हमले में भी ऐसी ही प्रॉक्सी सेना- इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स का हाथ माना गया. यह पैरामिलिट्री गुट है, जिसके बैनर तले कई और मिलिटेंट गुट पनपते रहे. विदेश में भी ताकत बढ़ाने के लिए IRGC ने एक अलग फोर्स बना रखी है, जिसे कुर्द्स फोर्स कहते हैं. इसका काम लेबनान से इराक और सीरिया तक को साधना है.

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