
राज्यसभा चुनाव में बड़ा खेला हो गया है. वो भी हिमाचल प्रदेश में. एक सीट के लिए दो उम्मीदवार खड़े थे. कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी की जीत लगभग तय मानी जा रही थी. लेकिन हुआ इसका उल्टा. क्रॉस वोटिंग हो गई और बीजेपी के हर्ष महाजन चुनाव जीत गए.
हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट पर चुनाव हुआ था. 68 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 40 विधायक थे. बीजेपी के 25 विधायक थे. इसलिए कांग्रेस उम्मीदवार की जीत लगभग-लगभग तय थी. लेकिन कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर बीजेपी उम्मीदवार को वोट दिया. साथ ही दो निर्दलीय समेत तीन विधायकों का समर्थन भी बीजेपी को मिल गया. इससे कांग्रेस और बीजेपी, दोनों को ही 34-34 वोट मिले.
जब दोनों उम्मीदवारों में टाई हो गया तो ड्रॉ निकाला गया, जिसमें बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन की जीत हुई.
नतीजों के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने हार मानते हुए कहा कि मैं उन 9 विधायकों का भी धन्यवाद देना चाहता हूं, जो कल तक साथ बैठे थे, उनमें से तीन आज सुबह हमारे नाश्ते पर भी साथ थे. मुझे उनसे सीख मिली है.
राज्यसभा चुनाव में जिस तरह से क्रॉस वोटिंग हुई है, उससे अब कांग्रेस सरकार पर भी खतरा मंडराता नजर आ रहा है.
बहरहाल, जब कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी के बजाय किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को वोट दे देता है, तो उसे क्रॉस वोटिंग कहा जाता है. ऐसे में जानते हैं कि क्या क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कुछ एक्शन ले सकती है या नहीं? और क्या कांग्रेस एक्शन लेनी की स्थिति में है?
क्या हो सकता है बागियों का?
हिमाचल में कांग्रेस के 6 विधायकों पर क्रॉस वोटिंग का आरोप है. इस बात का पहले से डर भी था. इसलिए कांग्रेस ने व्हिप भी जारी किया था.
व्हिप जारी करने का मतलब है कि अगर कोई विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है, तो उसे निकाला भी जा सकता है. लेकिन विधायक की सदस्यता बरकरार रहती है.
क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों का पता भी चल जाता है, क्योंकि राज्यसभा और राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पार्टी का एक प्रतिनिधि मौजूद होता है, जिसे बताना होता है कि वोट किस उम्मीदवार को दिया जा रहा है. इसके विरोध में लेखक और पत्रकार कुलदीप नैयर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जो खारिज हो गई थी.
तो क्या पार्टी से निकाले जा सकते हैं बागी?
साल 2022 में हुए राज्यसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी. कांग्रेस ने उन्हें निष्कासित कर दिया था. बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए थे.
उसी चुनाव में राजस्थान में बीजेपी विधायक शोभारानी कुशवाहा ने भी क्रॉस वोटिंग कर दी थी, उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया गया था.
इससे पहले 2016 के राज्यसभा चुनाव में भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 6 विधायकों ने बीजेपी के लिए क्रॉस वोटिंग की थी. कांग्रेस ने सभी छह विधायकों को निष्कासित कर दिया था.
इसके बाद 2017 में गुजरात में कांग्रेस ने क्रॉस वोटिंग करने वाले 14 विधायकों को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.
लिहाजा, हिमाचल में कांग्रेस चाहे तो क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को पार्टी से बर्खास्त कर सकती है और अगर उन्हें पार्टी में कोई पद दिया हो, तो उससे भी हटा सकती है.
लेकिन क्या ऐसा कर सकती है कांग्रेस?
फिलहाल इसकी गुंजाइश नहीं है. उसकी अपनी वजह भी है. हिमाचल में कांग्रेस अभी इस स्थिति में नहीं है कि वो अपने बागी विधायकों के खिलाफ कोई एक्शन ले.
दरअसल, हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले थे. इस हिसाब से विधानसभा में अब दोनों ही पार्टियां बराबर की स्थिति पर आ गई हैं. कल तक बीजेपी के पास 25 विधायक ही थे. लेकिन आज के नतीजे बताते हैं कि उसके पास 34 विधायकों का समर्थन है.
68 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 35 है. क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक अभी भी कांग्रेस में ही हैं और एक तरीके से विधानसभा में कांग्रेस अब भी बहुमत में है. लेकिन अंदेशा है कि पार्टी इन बागी विधायकों पर कोई एक्शन लेती है, तो बात बिगड़ सकती है.
जानकार मानते हैं कि अगर बागियों पर एक्शन लिया जाता है तो कांग्रेस सरकार पर खतरा भी खड़ा हो सकता है. बागियों पर एक्शन के बाद और दूसरे विधायक भी पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस बहुमत खो सकती है और उसकी सरकार गिर सकती है.
क्रॉस वोटिंग आखिर रुकती क्यों नहीं?
साल 1998 में राज्यसभा चुनाव हुए थे, तबसे ही क्रॉस वोटिंग का इतिहास शुरू होता है. माना जाता है कि वो पहली बार था, जब राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई थी.
तब महाराष्ट्र में कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर अपने ही उम्मीदवार को हरवा दिया था. उसके बाद ही ओपन बैलेट का नियम लाया गया था. यानी, वोटिंग से पहले विधायक को अपना वोट पार्टी के मुखिया या एजेंट को दिखाना होता है. हालांकि, उसके बाद भी क्रॉस वोटिंग होती रही है.
क्रॉस वोटिंग करना इसलिए भी आसान होता है, क्योंकि ऐसा करने वाले विधायकों की सदस्यता पर कोई आंच नहीं आती. हां, पार्टी जरूर कोई एक्शन ले सकती है. ऐसे विधायकों पर दल-बदल कानून भी लागू नहीं होता. दल-बदल कानून तब लागू होता है, जब कोई विधायक अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है.