
चीन से लगातार उइगर मुसलमानों पर हिंसा की खबरें आती रहती हैं. कुछ समय पहले वहां मस्जिदों का सिनिसाइजेशन होने लगा, यानी उनकी गुंबद और मीनारें तोड़कर चीनी शैली की इमारत बनाई जाने लगी. कम्युनिस्ट पार्टी साफ कहती है कि चीन में हरेक को चीनी दिखना और बोलना होगा. दूसरी तरफ, इसी देश में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है. माना जा रहा है कि रफ्तार यही रही तो साल 2030 तक चीन सबसे ज्यादा क्रिश्चियन जनसंख्या वाला देश बन जाएगा.
कितने ईसाई हैं चीन में?
इसपर सबका अलग-अलग कहना है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना इसकी संख्या को सबसे कम, 44 मिलियन बताती है. हालांकि इंटरनेशनल संस्थाओं का दावा है कि फिलहाल चीन में जितने ईसाई हैं, वो अमेरिका के अलावा किसी भी देश में नहीं होंगे. फ्रीडम हाउस का कहना है कि यहां लगभग 80 मिलियन कैथोलिक, जबकि 12 मिलियन प्रोटेस्टेंट हैं.
कम्युनिस्ट पार्टी सपोर्टरों से ऊपर पहुंची संख्या
अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने यहां तक कह दिया कि चीन में ईसाइयों का प्रतिशत 130 मिलियन क्रॉस कर चुका. ये नंबर वहां के 23 मिलियन मुस्लिमों और यहां तक कि कम्युनिस्ट पार्टी पर भी भारी है. बता दें कि कम्युनिस्ट पार्टी पर यकीन रखने वाले लोगों की संख्या लगभग 90 मिलियन है. ये वह लोग हैं, जो खुद को नास्तिक मानते हैं. सत्तासीन इस पार्टी का देश में अलग ही दबदबा है. उसकी बातों को चुनौती नहीं दी जा सकती. और खासकर धर्म के मामले में पार्टी काफी सख्त है.
तब किस तरह से ये आबादी बढ़ रही है?
ईसाई आबादी में बहुत से लोग वे हैं, जो नियमित तौर पर चर्च नहीं जाते, बल्कि घरों में ही पूजा-पाठ करते हैं. ये अंडरग्राउंड आस्था वाले लोग हैं, यानी जो सार्वजनिक तौर पर कभी ये नहीं जताते कि वो किस मजहब को मानते हैं. लगभग 30 मिलियन चीनी लोग ही चर्चों में रजिस्टर्ड हैं. यहां बता दें कि जिनपिंग सरकार वैसे तो पूरी धार्मिक आजादी देने की बात करती है, लेकिन एथीस्ट या बौद्ध धर्म को मानने वालों के अलावा बाकी सबपर कोई न कोई बंदिश है.
हाउस चर्च बनने लगे
साल 2018 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश में सभी धर्मों के चीनीकरण का खुला एलान कर दिया. इसके बाद मस्जिदों को तोड़ा या नए सिरे से बनाया जाने लगा. चर्च चूंकि अंडरग्राउंड हैं, इसलिए इस तोड़फोड़ से बचे हुए रहे. ज्यादातर लोग अपने लिविंग रूम में चर्च बनाए हुए हैं क्योंकि वे आधिकारिक तौर पर खुद को नास्तिक बताते हैं. सरकार में रजिस्टर्ड चर्चों को भी पार्टी के निर्देश मानने होते हैं, जैसे चीनी भाषा में ही प्रेयर करना, और स्थानीय प्रशासन की मदद से ही पादरी अपॉइंट करना.
इसी साल मार्च में पार्टी ने स्मार्ट रिलीजन की बात की
इसके तहत कहीं भी प्रेयर करने जाने वालों को ऑनलाइन रिजर्वेशन कराना होगा, साथ ही ये भी लिखना होगा कि वे कहां रहते हैं और कहां पूजा करने जाना चाहते हैं. प्रशासन के मुताबिक, ये एक धर्मस्थान पर भीड़भाड़ से बचने के लिए हुई कोशिश हैं, हालांकि इसका दूसरा मतलब भी निकलता है. इस तरह से ऑनलाइन अपना धर्म डिक्लेयर करने पर डर है कि लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है.
लगता है भारी जुर्माना
अगर कोई चर्च लोकल प्रशासन को बताए बिना कोई इवेंट रख ले तो उसपर 1 से 3 लाख युआन तक जुर्माना लगता है. साथ ही चर्च को बंद भी कराया जा सकता है. यहां तक कि घर में पूजापाठ भी खतरे से खाली नहीं. अमेरिका स्थित क्रिश्चियन राइट्स ग्रुप चाइना एड का दावा है कि जिनपिंग के आने के बाद से धार्मिक आजादी खत्म होती गई. हाउस चर्च चलाने वाले सैकड़ों लीडर्स को गिरफ्तार कर लिया गया. चर्चों से क्रॉस का साइन तक हटा लिया गया.
क्यों बढ़ने लगा ईसाई धर्म?
ए स्टार इन द ईस्ट: राइज ऑफ क्रिश्चियेनिटी इन चाइना नाम की किताब में चीनी को-ऑथर शिन्हुआ वैंग ने माना कि चीन का तेजी से विकास इसकी बड़ी वजह रही. शिन्हुआ के अनुसार, अस्सी के दशक में चीन में मुश्किल से 10 मिलियन ईसाई थे. 2007 में ये 60 मिलियन हो गए. और अब हर साल 7 प्रतिशत की तेजी से बढ़ रहे हैं. ये दुनिया के किसी भी देश से कहीं ज्यादा रफ्तार है.
इसकी वजह ये है कि इंडस्ट्रीज बनने के बीच चीनी लोग ट्रैडिशनल कल्चर और टेक्नोलॉजी के बीच खुद को फंसा हुआ महसूस करने लगे. वे मॉडर्न सोच वाले धर्म की खोज में थे, जो उन्हें क्रिश्चियेनिटी में दिखी.
उस समय भी चीन की तत्कालीन माओ सरकार ने ईसाई धर्म को बढ़ने से रोकने की कोशिश की थी. इसे मानने वाले लोगों की नौकरियां जाने लगीं. चर्चों को अवैध जमीन पर बना बताकर हटाया जाने लगा. यही वो दौर था, जब हाउस चर्च और अंडरग्राउंड चर्च बनने लगे. अब भी यही ट्रेंड चल रहा है.