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20 साल, साढ़े 900 बिलियन डॉलर...Trump सत्ता में लौटे तो क्या वाकई घुसपैठिए अमेरिका से हो जाएंगे बाहर, कितना मुश्किल?

अमेरिकी चुनाव को अब कुछ ही दिन बाकी हैं. रिपब्लिकन्स के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के कई वादों में मास डिपोर्टेशन सबसे ऊपर है. उन्होंने दावा किया कि वाइट हाउस लौटने पर वे अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा डिपोर्टेशन ऑपरेशन चलाएंगे, जिसमें लाखों घुसपैठिए बाहर निकाल दिए जाएंगे. हालांकि, ये वादा बड़ी कीमत मांगता दिख रहा है. अंदाजा है कि इसमें 960 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा.

राष्ट्रपति चुनाव में घुसपैठियों की वापसी बड़ा मुद्दा है. (Photo- Getty Images) राष्ट्रपति चुनाव में घुसपैठियों की वापसी बड़ा मुद्दा है. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकियों की कमजोर नस पकड़ चुके हैं. चुनावी रैलियों में उन्होंने लगातार मास डिपोर्टेशन की बात की. वादे के मुताबिक, अगर वे सत्ता में लौटे तो पहले ही दिन से इसपर काम शुरू हो जाएगा. ट्रंप ही नहीं, उनकी पार्टी ने भी यही बयान दिए. लेकिन इस प्लान को अमली जामा पहना सकना कितना मुमकिन है, और कौन सा समूह या किस देश के अवैध शरणार्थी इसमें पहला टारगेट हो सकते हैं?

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जनता चाह रही इमिग्रेंट्स पर सख्ती

अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव इन दिनों सबसे बड़ा मुद्दा है. दुनिया के ज्यादातर देशों की दशा-दिशा इसके नतीजों से तय होगी. अगर ट्रंप लौटे तो वे घुसपैठियों को अमेरिका की सीमा से बाहर कर सकते हैं. ये बात वे बार-बार दोहरा रहे हैं, जो कि स्थानीय अमेरिकियों को लुभा भी रही है. जुलाई में हुए गैलप पोल के मुताबिक, 55% अमेरिकी आबादी ने इमिग्रेशन पर सख्ती की इच्छा जताई. ये दो दशकों में पहली बार है, जब जनता बाहरियों के बसने पर नाखुश है. अब यही बात ट्रंप की पार्टी के लिए ट्रम्प कार्ड बन सकती है. 

पूर्व राष्ट्रपति के मुख्य सलाहकार स्टीफन मिलर ने कहा कि आने वाली सरकार अमेरिका इतिहास में सबसे बड़ा डिपोर्टेशन शुरू करेगी, जिसमें सैन्य बलों का भी इस्तेमाल होगा. उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वांस ने भी कहा कि बाहर जाने वालों में पहली लेयर क्रिमिनल्स की होगी. कुल मिलाकर ट्रंप समेत पूरी पार्टी यही बात कर रही है. लेकिन असल में ये कितना मुश्किल या मुमकिन है. 

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क्या कहते हैं डेटा

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान लगभग डेढ़ मिलियन लोगों को देश से बाहर किया. हालांकि ये उनके टागरेट प्रॉमिस से आधा था. याद दिला दें कि रिपब्लिकन्स ने तब 3 मिलियन इललीगल इमिग्रेंट्स को देश से निकालने की बात कही थी. चुनाव से ठीक पहले साल 2019 में बड़ी कार्रवाइयां और अवैध लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन खास फर्क नहीं पड़ा. इससे इतना तो साफ हो जाता है कि इमिग्रेशन के वादे चाहे कितने ही हों, उन्हें लागू कर पाना काफी मुश्किल है. 

कितने लोगों पर कितना खर्च 

लाखों लोगों को डिपोर्ट करने पर भारी पैसे तो खर्च करने ही होते हैं, साथ ही लॉजिस्टिक्स पर भी काम करना होता है. जैसे साल 2016 में, यू.एस. इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (आईईसी) ने अनुमान लगाया था कि एक अवैध प्रवासी को गिरफ्तार करने, हिरासत में रखने और डिपोर्ट करने की लागत लगभग 11 मिलियन डॉलर होती है. इस हिसाब से अगर लाखों अवैध प्रवासियों को भेजा जाए तो केवल 1 मिलियन पर ही 10.9 बिलियन डॉलर खर्च करना होगा. अनुमान है कि फिलहाल यूएस में 11 मिलियन अवैध प्रवासी है, उन्हें डिपोर्ट करने की लागत 100 बिलियन डॉलर से ऊपर जा सकती है. थिंक टैंक अमेरिकन एक्शन फोरम ने डेटा देते हुए यह भी माना कि इसमें खर्च के बावजूद 20 साल लगेंगे. 

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लॉजिस्टिक दिक्कतें अलग हैं

अमेरिका में अभी इतने डिटेंशन सेंटर नहीं, जहां लाखों अवैध शरणार्थियों को रखा जा सके. इन्हें बनाने और मेंटेनेंस के लिए अलग खर्च होगा, साथ ही वक्त भी लगेगा.

एक केस हजार दिन चलता है

अलावा, डिपोर्टेशन से पहले हर मामले पर अदालती कार्रवाई होती है. दोनों पक्षों की बात सुनी जाती है. इसके लिए जज, वकील और बाकी कानूनी जरूरतें पूरी करते हुए प्रोसेस अपने-आप ही कमजोर हो सकती है. इमिग्रेशन कोर्ट में चलने वाला हरेक केस लगभग 1000 दिन चलता है. बाइडेन प्रशासन के दौरान बैकलॉग ही साढ़े तीन मिलियन केस से ऊपर चला गया. यानी इतने मामले अभी पेंडिंग हैं. मामले का फैसला न होने तक वे यहीं रहेंगे, जिसका खर्च अमेरिकी सरकार को देना होगा. 

कई देश डिपोर्टीज को नहीं अपनाते

कई ऐसे भी देशों से लोग भागकर आए, जिनके साथ अमेरिका का ठीक-ठाक डिप्लोमेटिक रिश्ता नहीं, जैसे क्यूबा, वेनेजुएला और रूस. ऐसे में वे देश अपने ही लोगों को अपनाने से इनकार कर सकते हैं. तब अमेरिका के पास उन्हें रखने के अलावा कोई चारा नहीं होगा. ट्रंप सरकार के दौर में दबाव बनाने की कोशिश भी की गई, लेकिन देशों ने भागकर गए लोगों को अपनाने से इनकार कर दिया. 

परिवार टूटने का खतरा

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डिपोर्टेशन का अमेरिका की इकनॉमी ही नहीं, परिवारों पर भी असर होगा. प्यू रिसर्च सेंटर की मानें तो करीब 4.4 मिलियन अमेरिकी जो 18 साल से कम उम्र के हैं, उनके पेरेंट्स में से कम से कम एक अवैध प्रवासी है. अगर उनके परिवार में से किसी सदस्य को अलग कर दिया जाए तो इसका असर कभी खत्म नहीं होता.

साल 2019 में ऐसा ही एक मामला चर्चा में रहा था. तब मिसिसिपी में इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट ने लगभग सात सौ लोगों को गिरफ्तार किया, जिनके बच्चों ने स्कूल से लौटने पर अपने माता या पिता में से किसी को मिसिंग पाया. इसके अलावा अवैध प्रवासी वर्कफोर्स का भी हिस्सा हैं. प्यू की ही रिसर्च कहती है कि वहां फिलहाल कुल वर्कफोर्स में 5 फीसदी अवैध प्रवासियों से है. ऐसे में डिपोर्टेशन से बात काफी बिगड़ सकती है. 

इस देश में वैसे तो सारी दुनिया के लोग आ रहे हैं. लेकिन जो बाइडेन प्रशासन के दौरान इसमें तेजी आई. एशियाई देशों के अलावा मिडिल ईस्ट लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसी जगहों से भी काफी लोग अमेरिका में शरण ले रहे हैं. हालांकि सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी मैक्सिको से हैं. इसके बाद अल-सल्वाडोर और फिर मिडिल ईस्ट के लोग हैं. हालांकि अवैध प्रवासियों की कुल आबादी, कहां से है, इसका कोई आंकड़ा नहीं मिलता. 

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