
आमतौर पर दो देशों के बीच तभी ठनती है, जब उनके बीच सीमा विवाद हो. वे बॉर्डर को लेकर भिड़ते रहते हैं. कई बार घुसपैठिए भी आग में घी डालने का काम करते हैं. हालांकि ईरान और इजरायल के तनाव में ये फैक्टर मिसिंग है. दोनों के बॉर्डर एक-दूसरे से नहीं सटते. न ही दोनों के बीच व्यापारिक या राजनैतिक रिश्ते हैं. इसके बाद भी उनके बीच शैडो वॉर चला आ रहा था. अब ये लड़ाई खुलकर दिख रही है. ये तब है जबकि एक समय पर दोनों मित्र राष्ट्र हुआ करते थे.
शुरू करते हैं मित्रता की कहानी से
साल 1948 में निर्माण के बाद से इजरायल काफी उठापटक झेलता रहा. ज्यादातर देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार कर दिया, खासकर मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देशों ने. वहीं ईरान ने उसे मान्यता दे दी. उस दौर में पूरे वेस्ट एशिया में ईरान यहूदियों के लिए सबसे बड़ा ठिकाना था. नया-नया यहूदी देश इजरायल ईरान को हथियार और तकनीक देता और बदले में तेल लिया करता था. दोनों के बीच रिश्ते इतने अच्छे थे कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के इंटेलिजेंस सावाक को खुफिया कामों की ट्रेनिंग तक दी.
इस्लामिक मुल्क ने बदली तस्वीर
दोनों के बीच दुश्मनी की नींव डली ईरान की इस्लामिक क्रांति की वजह से. साठ के दशक से ही ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ईरान को मुस्लिम देश बनाने की बात करने लगे थे. तब इस देश पर राजा शाह रजा पहलवी का शासन था, जिनके अमेरिका और इजरायल से बढ़िया रिश्ते थे. खुमैनी इन दोनों ही देशों को शैतानी देश कहा करते और मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठाते रहे.
धीरे-धीरे हवा खुमैनी के पक्ष में आ गई. क्रांति से पहले लाखों लोग शाह के खिलाफ प्रोटेस्ट करने लगे थे. हालात इतने बिगड़े कि राजा को देश छोड़कर भागना पड़ा, और साल 1979 में ईरान इस्लामिक देश घोषित हो गया. इसके बाद ही उसने अमेरिका समेत सहयोगी देश यानी इजरायल से खुलकर नफरत दिखानी शुरू कर दी.
कैसे बदले दोनों के रिश्ते
- इस्लामिक रिवॉल्यूशन के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच यात्राएं बंद हो गई. एयर रूट पूरी तरह से रोक दिया गया.
- दोनों के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते भी खत्म हो गए और तेहरान स्थित इजरायली एंबेसी को फिलिस्तीन के दूतावास में बदल दिया गया.
- एक जो सबसे बड़ी बात हुई वो ये कि दोनों ने ही एक दूसरे को मान्यता देने से इनकार कर दिया.
- ईरान ने इजरायल को पहले तो मान्यता दी थी, लेकिन खुमैनी के आने पर माना गया कि यहूदियों ने फिलिस्तीनियों का हक मारा है.
- वहीं इजरायल ने भी अमेरिका की देखादेखी इस्लामिक रिपब्लिक को मानने से मना कर दिया.
ईरान पर इजरायल में अस्थिरता पैदा करने का आरोप
रहे-सहे रिश्ते भी तब खत्म हो गए, जब इजरायल को इस बात की भनक लगी कि ईरान उसके विरोधी देशों को हथियार सप्लाई कर रहा है. फर्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने लगातार सीरिया, यमन और लेबनान को न केवल हथियार दिए, बल्कि वहां लड़ाके संगठन भी बनाए ताकि वे इजरायल को डरा सकें. अस्सी के दशक में इस्लामिक जिहाद वो पहला आतंकी गुट था, जो फिलिस्तीन की मांग को लेकर इजरायल को परेशान कर रहा था. उसे ईरान का खुला सपोर्ट था. इसी समय ईरान ने हिजबुल्लाह को भी तैयार किया, जो इजरायल में लगातार अस्थिरता लाता रहा है.
इजरायल का आरोप है कि हिजबुल्लाह ने न केवल उसके यहां, बल्कि दूसरे कई देशों में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया. वो उन जगहों को टारगेट करता, जहां यहूदी समुदाय हो, या उसका दूतावास हो. अर्जेंटिना में साल 1994 के ऐसे ही हमले में 85 यहूदी मारे गए थे.
काफी समय से चल रहा है शैडो वॉर
दोनों के बीच तनाव बढ़ता ही चला गया. यहां तक कि ईरानी नेताओं ने इजरायलियों के नरसंहार तक को झूठ बता डाला. तब से ही दोनों देशों के बीच प्रॉक्सी वॉर चल रहा है. इसे शैडो वॉर भी कहा गया. जैसा कि नाम से समझ आ रहा है, इसमें दोनों देश सीधे-सीधे लड़ाई का एलान नहीं करते थे, बल्कि छिप-छिपाकर हमला कर रहे थे. यानी परदे की ओट थी. हमला किसी लोकल आतंकी संगठन के जरिए किया जाता. ईरान उन सारे देशों को फिलिस्तीन के नाम पर उकसाता रहा, जो इजरायल को घेरे हुए हैं. लेकिन अब शैडो वॉर खुलकर युद्ध में बदलता दिख रहा है.
एक-दूसरे पर ताजा हमले
- इजरायल ने आरोप लगाया कि ईरान उसके जहाजों पर हमले कर रहा है.
- ईरान के मुताबिक उसके यूरेनियम प्लांट की तबाही में इजरायल का हाथ था.
- इजरायल पर सीरिया में ईरानी आबादी पर टारगेट अटैक का आरोप.
- 1 अप्रैल को दमस्कस में हुई इजरायली एयरस्ट्राइक में ईरान की स्पेशल फोर्स के सीनियर अधिकारी मारे गए.
- 13 अप्रैल को ईरान ने इजरायल पर ड्रोन अटैक कर दिया.