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जब लक्षद्वीप को हड़पने निकले थे पाकिस्तानी जहाज, फिर कैसे बन गया भारत का हिस्सा, क्यों भारतीय टूरिस्टों को लेना पड़ता है परमिट?

पीएम मोदी के लक्षद्वीप दौरे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. अरब सागर में पन्ने की तरह हरा दिखता ये द्वीप समूह वैसे तो भारत का हिस्सा है, लेकिन इसपर बात कम ही हुई. कहा जाता है कि महात्मा गांधी की हत्या के हफ्तों बाद लक्षद्वीप तक इसकी खबर पहुंची. देश के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान की नजर इसपर भी थी. फिर कैसे बना लक्षद्वीप भारत का हिस्सा?

लक्षद्वीप को लेकर मालदीव ने रेसिस्ट टिप्पणी कर दी थी. (Photo- Unsplash) लक्षद्वीप को लेकर मालदीव ने रेसिस्ट टिप्पणी कर दी थी. (Photo- Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 10:48 AM IST

भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान जिन्ना चाहते थे कि हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ मुस्लिम-बहुल होने की वजह से उनके देश में शामिल हो जाएं. सरदार पटेल की हिम्मत और सूझबूझ ने इन रियासतों को भारत से अलग होने से रोक लिया. जब ये बड़े सूबे भारत में मिलाए जा रहे थे, उस दौरान लक्षद्वीप बचा हुआ था. 

असल में दूरदराज होने की वजह से उसपर दोनों में से किसी देश का ध्यान तुरंत नहीं गया था. दोनों अपनी-अपनी तरह से मेनलैंड रियासतों को अपने साथ करने की कोशिश में थे. सरदार पटेल ने अपनी दूरदर्शिता से साढ़े 5 सौ के करीब रियासतों को भारत में मिला लिया था. 1947 में अगस्त का आखिर-आखिर रहा होगा, जब दोनों ही देशों की इसपर नजर पड़ी. व्यापार-व्यावसाय से लेकर सेफ्टी के लिहाज से भी ये द्वीप समूह काफी जरूरी था. 

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लगभग एक साथ ही गया ध्यान

पाकिस्तान ने सोचा कि मुस्लिम-मेजोरिटी होने की वजह से क्यों न लक्षद्वीप पर कब्जा कर लिया जाए. करीब-करीब उसी समय सरदार पटेल का भी इसपर ध्यान गया. उन्होंने दक्षिणी रियासत के मुदालियर भाइयों से कहा कि वे सेना लेकर फटाफट लक्षद्वीप की ओर निकल जाएं. रामास्वामी और लक्ष्मणस्वामी मुदालियर वहां पहुंचे और तिरंगा फहरा दिया.

अलग-अलग वेबसाइट्स में जिक्र है कि भारत के पहुंचने के कुछ देर बाद ही पाकिस्तानी युद्धपोत भी वहां पहुंचा, लेकिन भारतीय झंडे को फहरता देख वापस लौट गया. इस तरह से लक्काद्वीप, मिनिकॉय और अमीनदीवी द्वीपसमूह भारत से जुड़ गया. 

पहले भी रह चुका मैसूर रियासत का अंग

लक्षद्वीप के मिनिकॉय हिस्से पर मैसूर के टीपू सुल्तान का भी साम्राज्य रह चुका है. साल 1799 में टीपू की हत्या के बाद ये द्वीप ब्रिटिश हुकूमत के अधीन चला गया. भारत का झंडा फहराने के बाद साल 1956 में इसे यूनियन टेरिटरी का दर्जा मिला. भाषा के आधार पर पहले इसे मद्रास रेजिडेंसी ऑफ इंडिया से जोड़ा गया था क्योंकि द्वीप पर ज्यादा लोग दक्षिणी भाषाएं बोलते थे. साल 1971 में इन आइलैंड्स का सम्मिलित नाम पड़ा- लक्षद्वीप. 

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बौद्ध और हिंदू आबादी ने अपनाया इस्लाम

सबसे पहले लक्षद्वीप का जिक्र ग्रीक घुमंतुओं ने किया था. वे इस द्वीप को बेहद खूबसूरत और अनछुआ बताते हुए कहते थे कि वहां समुद्री कछुए का शिकार आराम से हो सकता है. सातवीं सदी के आसपास यहां ईसाई मिशनरी और अरब व्यापारी दोनों ही आने लगे, और धार्मिक रंगरूप बदलने लगा. इसके पहले यहां बौद्ध और हिंदू आबादी हुआ करती थी. 11वीं सदी में डेमोग्राफी बदली और ज्यादातर ने इस्लाम अपना लिया. फिलहाल यहां की 95 प्रतिशत पॉपुलेशन मुस्लिम है. 

भारत के लिए क्यों जरूरी है लक्षद्वीप

36 छोटे-छोटे द्वीपों का ये समूह देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम है. भारतीय सुरक्षा थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के अनुसार, जैसे अंडमान और निकोबार द्वीप प्रशांत से हिंद महासागर में एंट्री और एग्जिट पॉइंट हैं, उतना ही अहम रोल लक्षद्वीप का भी है. ये अरब सागर में वेंटेज पॉइंट की तरह काम करते हैं. मतलब, यहां से दूर-दूर तक के जहाजों पर नजर रखी जा सकती है. चीन के बढ़ते समुद्री दबदबे के बीच भारत लक्षद्वीप में मजबूत बेस तैयार कर रहा है ताकि समुद्र में हो रही एक्टिविटी पर नजर रखी जा सके. 

क्यों चाहिए होता है परमिट

लक्षद्वीप भले ही भारत का हिस्सा है, लेकिन यहां जाने के लिए भारतीयों को भी परमिट की जरूरत होती है. लक्षद्वीप टूरिज्म की वेबसाइट के मुताबिक, ऐसा वहां मौजूद आदिवासी समूहों की सुरक्षा और उनके कल्चर को बचाए रखने की दृष्टि से किया जा रहा है. वेबसाइट के अनुसार, द्वीप पर 95% आबादी एसटी है. 

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यूनियन टेरिटरी एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ लक्षद्वीप में साफ है कि सिर्फ सेना के जवान, जो यहां काम कर रहे हों, उनके परिवार, और सरकारी अधिकारियों को इस परमिट में छूट मिलती है.

ई- परमिट लिया जा सकता है

इसके लिए एक फॉर्म भरना होता है, जिसकी फीस 50 रुपए है. इसके अलावा ID की सेल्फ-अटेस्टेड कॉपी और पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट चाहिए होता है. परमिट मिलने के बाद ट्रैवलर को लक्षद्वीप पहुंचकर पुलिस थाने में उसे सबमिट करना होता है. ट्रैवल एजेंट की मदद से कोच्चि से भी परमिट बनाया जा सकता है.

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