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पिछले 50 सालों में Israel ने 6 बार किया लेबनान पर हमला, क्यों हर बार हटना पड़ा पीछे?

हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह को मिसाइल अटैक में मारने के बाद पिछले दो दिनों से इजरायली सेना लेबनान पर हमलावर है. मिडिल ईस्ट के इस देश पर इजरायल पहले भी कई बार अटैक कर चुका, खासकर उसके दक्षिणी हिस्से पर. लेकिन गाजा पट्टी के मुकाबले ये क्षेत्र कहीं अलग है. यहां हमास नहीं, बल्कि हिजबुल्लाह का हेड क्वार्टर है, जो पहले भी इजरायली फोर्स को बाहर कर चुका.

लेबनान पर इजरायली हमला जारी है. (Photo- AP) लेबनान पर इजरायली हमला जारी है. (Photo- AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST

कुछ ही दिनों बाद हमास और इजरायल के बीच जंग को एक साल होने वाले हैं. शुरुआत में लगा था कि लड़ाई थम जाएगी, लेकिन 12 महीनों के भीतर हमास के साथ-साथ कई आतंकी संगठन इजरायल पर हमलावर हो गए. अब वो एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहा है. साथ ही साथ लेबनान पर ग्राउंड अटैक भी कर चुका है. इजरायल की सीमा से सटा ये देश हमास और हिजबुल्लाह के जरिए तेल अवीव सरकार को अक्सर ही अस्थिर करने की कोशिश करता रहा. यही वजह है कि इजरायल पहले भी लेबनान पर हमले और घुसपैठ की कोशिश करता रहा ताकि हिजबुल्लाह का सफाया कर सके. 

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शुरुआत हुई साल 1948 से लेकर अगले लगभग एक साल तक. इजरायल ने जैसे ही अपनी आजादी का एलान किया, सारे अरब देश आक्रामक हो उठे. तेल अवीव चारों ओर से घिरा हुआ था. अटैक करने वालों में लेबनान भी था. हालांकि तब देश ने इसकी सीमा के भीतर घुसने की कोशिश नहीं की थी. 

पहली बार इजरायली डिफेंस फोर्स दक्षिणी लेबनान की सीमा पर साल 1978 में घुसी क्योंकि इस सीमा से फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन लगातार कुछ न कुछ बखेड़ा कर रहा था. बता दें कि साउथ लेबनान से इजरायल का उत्तरी भाग सटा हुआ है. इजरायली सेना के अभियान के बाद शांति के लिए यूनाइटेड नेशन्स ने पीसकीपिंग फोर्स भेजी. यूएन का मकसद था, सेना को देश से बाहर भेजना और लेबनान में राजनैतिक स्थिरता लाना.

इजरायल ने सेना पीछे तो कर ली लेकिन जाते हुए उसने एक खेल कर डाला. उसने एक लोकल मिलिशिया साउथ लेबनान आर्मी को सपोर्ट करना शुरू कर दिया ताकि वो इजरायल विरोधी ताकतों, खासकर फिलिस्तीनी लड़ाकों को चुप रखे. ये पहली बार था जब इजरायल को भीतर तक जाकर लेबनान छोड़ना पड़ा. 

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साल 1982 के जून में इजरायल ने ऑपरेशन पीस फॉर गैलिली छेड़ दिया. ये बहुत बड़ा सैन्य अभियान था, जिसमें आईडीएफ बेरूत तक पहुंच गई. उसका एक अकेला उद्देश्य था कि दक्षिणी लेबनान में फल-फूल रहे फिलिस्तीनी लड़ाके हार मान लें और इलाका खाली कर दें. यही हुआ भी. उसी साल सितंबर में फिलिस्तीनी मिलिशिया ने बेरूत छोड़ दिया. लेकिन इजरायल तब भी वहां बना रहा. इसपर नाराज स्थानीय लोगों ने सेना को परेशान करना शुरू कर दिया. आखिरकार साल 1985 में उसे बेरूत से बाहर निकलना पड़ा. 

फिलिस्तीनी लिबरेशन फोर्स (पीएलओ) के लेबनान से जाने के बाद दक्षिणी हिस्से में एक खालीपन पैदा हो चुका था. यही वो वक्त था, जब इस जगह हिजबुल्लाह आ गया. इस शिया ग्रुप को लेबनान ही नहीं, ईरान का भी सपोर्ट मिलने लगा. आज यही चरमपंथी समूह इजरायल को सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है. 

नब्बे की शुरुआत में लेबनान में लगभग डेढ़ दशक से चला आ रहा सिविल वॉर खत्म हुआ. लेबनान आर्म्ड फोर्स नए सिरे से तैयार होने लगी लेकिन अपने ही देश के दक्षिणी हिस्से को साधना उनके लिए मुश्किल था. अगले 10 सालों में इजरायल ने लेबनान में दो ऑपरेशन छेड़े. पीएलओ तो जा चुका था, लेकिन अब तेल अवीव नए दुश्मन हिजबुल्लाह को मजबूत होने से पहले ही कुचल देना चाहता था.

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इसके बाद भी हिजबुल्लाह खत्म नहीं हुआ, बल्कि दोगुनी ताकत से इजरायली सेना पर हमले करता रहा. एक और बात यहूदी सेना के खिलाफ जा रही थी कि दक्षिणी लेबनान के नागरिक भी उसपर नाराज थे. यहां तक कि इजरायल को अपनी पकड़ ढीली करनी पड़ी. 

साल 2000 से अगले 6 काफी उठापटक वाले रहे. हुआ ये कि हिजबुल्लाह ने इजरायली सैनिकों पर न केवल हमला कर दिया, बल्कि 2 सैनिकों का अपहरण भी कर लिया. इससे भड़के हुए देश ने पूरे दक्षिणी हिस्से पर हवाई और जमीनी हमले शुरू कर दिए. ये लड़ाई साल 2006 में फुल-स्विंग पर थी जो महीनेभर से ज्यादा चली. इसमें दोनों ही तरफ नुकसान हुआ. द कन्वर्शेसन की एक रिपोर्ट के अनुसार लड़ाई में 1300 से ज्यादा लेबनानी सैनिक, जबकि 61 इजरायली सैनिक मारे गए. लेबनान में पॉलिटिकल और सिविल स्ट्रक्चर चरमरा गया. लाखों लोग विस्थापित हुए. हालांकि इसी समय इजरायल ने दक्षिणी लेबनान खाली कर दिया. 

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