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कैसे फिलिस्तीन का ये मामूली स्कार्फ बन गया बागियों की पहचान, इजरायल भी कर रहा कॉपी

इजरायल और हमास की लड़ाई में गाजा पट्टी बुरी तरह से तबाह हो चुकी. ये वो जगह है, जहां से हमास अपने आतंकी कारनामों को अंजाम देता है. वो एक तरह से गाजावासियों को ह्यमन शील्ड की तरह इस्तेमाल कर रहा है. इस बीच दुनियाभर के लोग एक खास तरह की स्कार्फ पहनकर गाजा को सपोर्ट कर रहे हैं, जिसे 'केफिया' कहते हैं.

फिलिस्तीनी स्कार्फ केफिया. सांकेतिक फोटो (AFP) फिलिस्तीनी स्कार्फ केफिया. सांकेतिक फोटो (AFP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:45 PM IST

अमेरिका के वर्मोंट में कुछ ही रोज पहले तीन फिलिस्तीनी छात्रों को गोली मार दी गई. उनका जुर्म ये था कि उन्होंने ब्लैक-एंड-वाइट केफिया पहना हुआ था. इसके बाद शूटर पकड़ा भी गया और उसपर कार्रवाई भी हुई होगी, लेकिन सवाल ये है कि स्कार्फ में ऐसा क्या है, जिसने किसी को भड़का दिया. 

सदियों से पहना जा रहा फिलिस्तीन में

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केफिया का इतिहास काफी पुराना है. जब अरब में ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा हो चुका था. तब गांव में रहने वाले, और खेती-किसानी करने वाले लोग इसे पहनते. ये उन्हें तेज धूप से बचाता था. बहुत हल्के सूती कपड़े से बने केफिया पर सफेद काले या सफेद लाल रंग की धारियां बनी होतीं. ये एक तरह का मछली पकड़ने का जाल है, जो फिलिस्तीनियों के भूमध्य सागर से गहरे रिश्ते को दिखाता है. 

अंग्रेजों को लगाना पड़ा था बैन

साल 1930 में ये स्कार्फ सिर्फ धूप से बचाने की चीज नहीं रहा, बल्कि पहली बार ये विद्रोह के प्रतीक के तौर पर आया. ये पहले विश्व युद्ध के बाद का समय था, जब ब्रिटिश हुकूमत ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया था. लोग केफिया पहनकर अंग्रेजों के खिलाफ अपनी एकता और गुस्सा दिखाने लगे. आम लोगों के स्कार्फ को अमीर भी पहनने लगे. इससे पहले वे तरबूश नाम का कपड़ा सिर पर डालते थे, जो टोपी की तरह था, और नीचे फुंदना-सा लटकता रहता. केफिया ने किसी झंडे की तरह ही सबको एक साथ ला दिया. 

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बस, इसमें एक बदलाव आया. पहले लोग इसे सिर पर लपेटते थे, जबकि अब इससे चेहरा भी कवर करने लगे. ये वे लोग थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन या फिर बमबारी किया करते थे. चेहरा पहचान में न आए, इसके लिए केफिया सबसे सस्ती और आसानी से मिलने वाली चीज थी. फिलिस्तीन में जबकि हर कोई यही स्कार्फ पहनने लगा, सरकार किसी एक पर कार्रवाई भी नहीं कर सकती थी. 

परेशान अंग्रेजों ने केफिया के बनने और बेचने पर बैन लगा दिया. लेकिन ये बनता-बिकता रहा. तब हालात ये थे कि बच्चे भी केफिया पहनकर घूमा करते. अरब-इजरायल युद्ध के दौरान केफिया एक बार फिर अलमारियों से निकला और जमकर छा गया.

फिलिस्तीन से भागे हुए लोग, और इजरायल में रहते फिलिस्तीनी दोनों ही यहूदियों के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाने के लिए केफिया बांधकर चलते. 

बगावत का ग्लोबल ब्रांड बन गया

सत्तर के दशक में इसे बगावत का ग्लोबल प्रतीक मान लिया गया. असल में तब फिलिस्तीनी नेता यासेर अराफात इसे पहनकर यूनाइटेड नेशन्स की बैठक में चले गए थे. तभी यासेर ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) की नींव डालते हुए केफिया को फिलिस्तीन एकता और विद्रोह से जोड़ दिया. तब इंटरनेशनल मीडिया ने इस कपड़े को फिलिस्तीन का अनाधिकारिक झंडा कहना शुरू कर दिया. 

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फिलहाल फिलिस्तीन से एकता जताने वाले सारे देश, जैसे, जॉर्डन, इजिप्ट, लेबनान, सीरिया, इराक, मोरक्को और यमन समेत दुनियाभर के लोग सिर और गले पर केफिया लपेटने लगे हैं. इस बीच एक दिलचस्प बात ये हुई कि फिलिस्तीन अथॉरिटी ने इजरायल पर अपने स्कार्फ की चोरी का आरोप लगाया. 

फिलिस्तीन-इजरायल के बीच जबानी जंग

इजरायल के लोग केफिया की तरह ही स्कार्फ पहन रहे हैं, जिसमें सफेद कपड़े पर ब्लू धारियां हैं. फिलिस्तीन के आरोप पर इजरायल का कहना है कि ये असल में उनका ही स्कार्फ है, जिसे ऑटोमन एंपायर के दौरान अरब लोगों ने चुरा लिया था, और उनपर इसे पहनने की पाबंदी लगा दी. बता दें कि तब अरब मालिकों ने यहूदियों पर काफी रोक लगाई थी. यहां तक कि उनका घोड़े पर बैठने तक पर पाबंदी लगा दी थी ताकि उनका कद मालिकों से ज्यादा न दिखे. 

अब इजरायल के लोग स्कार्फ पर हिब्रू में कुछ लिखवा भी रहे हैं ताकि उसपर अपना पुराना दावा जता सकें. 

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