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इटली की बॉक्सर को चंद पलों में हराने वाली Imane महिला हैं या पुरुष, क्यों खेलों में दशकों से हो रही जेंडर टेस्टिंग?

अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ ने पलों में इटली की महिला बॉक्सर को रिंग से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद से इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (IOC) की फजीहत हो रही है. लेकिन इसमें फजीहत जैसा क्या? बात ये है कि अल्जीरिया की इसी बॉक्सर को पिछले साल इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने से रोक दिया था क्योंकि वे जेंडर टेस्ट में फेल हो गईं.

अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ विवादों में हैं. (Photo- Reuters) अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ विवादों में हैं. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 02 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 7:06 PM IST

पेरिस ओलंपिक 2024 शुरुआत से ही विवादों में घिरा हुआ है. इस बार मुद्दा है बॉक्सिंग रिंग में उतरी वो अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ, जो खुद को महिला आइडेंटिफाई करती है, लेकिन जिनमें क्रोमोजम्स पुरुषों जैसे हैं, यहां तक उनमें मेल हॉर्मोन का स्तर भी काफी ज्यादा है. यानी देखा जाए तो बायोलॉजिकली वे पुरुष हैं, लेकिन खुद को महिला आइडेंटिफाई करती हैं. अब इसे लेकर दो खेमे हो चुके. एक तबका अल्जीरियाई महिला के सपोर्ट में है, तो दूसरा तबका मांग कर रहा है कि महिलाओं के खेल में जेंडर क्राइसिस से जूझते किसी भी शख्स को एंट्री न मिले. 

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क्या हुआ था बॉक्सिंग रिंग में 

गुरुवार को इटली की एंजेला कैरिनी और अल्जीरिया की इमान खलीफ के बीच मुकाबला था. हालांकि दूसरे पंच के बाद ही इटालियन बॉक्सर कैरिनी ने मुकाबले से हाथ खींच लिया. वे घुटनों पर बैठते हुए रो पड़ी थीं. साथ ही उन्हें कोच को ये कहते सुना जा रहा था कि ये सही नहीं है. बाद में प्रेस के लोगों के सामने कैरिनी ने बयान दिया कि उन्हें अपने पूरे करियर में इतना ताकतवर मुक्का नहीं पड़ा था.

गरमाया हुआ है मामला

कैरिनी की कंपीटिटर इमान खलीफ वही खिलाड़ी हैं, जिन्हें साल 2023 में इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने जेंडर टेस्ट में फेल करते हुए मुकाबले में हिस्सा नहीं लेने दिया था. अब ओलंपिक में वे शामिल हो सकीं लेकिन पहले ही मुकाबले के बाद सवाल उठ रहा है कि महिला से टक्कर के लिए पुरुष को उतार दिया गया. सोशल मीडिया पर बड़े इंफ्लूएंसर से लेकर एलन मस्क तक यही बात कह रहे हैं. यहां तक कि बॉक्सिंग एसोसिएशन ने भी जेंडर टेस्ट के हवाले से ओलंपिक कमेटी पर सवाल उठाए. 

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इमान खलीफ इस बीमारी का शिकार

बार-बार खलीफ को ट्रांसजेंडर कहा जा रहा है, जबकि ऐसा है नहीं. जन्म के समय उन्हें महिला ही माना गया जो कि उनके यौनांगों की बनावट को देखकर तय हुआ था. उनके बर्थ सर्टिफिकेट पर यही लिखा हुआ है.

महिला के तौर पर जन्म लेने और खुद को महिला ही मानने वाली खलीफ उस समस्या से जूझ रही हैं, जिसे डिफरेंसेस ऑफ सेक्स डेवलपमेंट (DSD) कहते हैं. इसमें न केवल महिला में पुरुष हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर काफी ज्यादा हो जाता है, बल्कि उसमें पुरुष क्रोमोजोम XY होते हैं. बता दें कि महिलाओं में XX क्रोमोजोम पाए जाते हैं. इस बीमारी के लिए पहले एक टर्म था- इंटरसेक्स. अब इसे डीएसडी कहा जाता है. 

होता है क्रोमोजोमल हेरफेर

डीएसडी यानी वो शख्स जिसमें मेल शरीर में फीमेल क्रोमोजोम हों, या फीमेल शरीर में पुरुष क्रोमोजोम. उन्हें सीधे-सीधे बायोलॉजिकल मेल या फीमेल कहने से भी परहेज किया जाता है क्योंकि मामला वाकई जटिल है. स्त्री शरीर में पुरुष हॉर्मोन और क्रोमोजोम के चलते ताकत भी महिलाओं की तुलना में कुछ ज्यादा हो सकती है. 

भारत में भी दिख चुका है ऐसा मामला

प्रोफेशनल धावक दुती चंद को खेलों के दौरान काफी विवाद झेलने पड़े. दरअसल चंद उस बीमारी का शिकार हैं, जिसमें मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर इतना बढ़ जाता है कि वे इंटरनेशनल पैमाने पर पुरुष धावकों की कैटेगरी में आ जाए. हाइपरएंड्रोजेनिज्म नाम की इस समस्या के चलते चंद से कहा गया कि वे महिलाओं के साथ तभी दौड़ सकती हैं, जब उनमें हॉर्मोन लेवल कम हो जाए. 

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लंबे समय से हो रहा जेंडर टेस्ट

ऐसे वाकये काफी समय से घटते रहे. मेल-फीमेल कंपीटिशन में पारदर्शिता के लिए ओलंपिक समेत सभी बड़े इंटरनेशनल कंपीटिशन्स में जेंडर टेस्ट होने लगा. इसमें किसी खिलाड़ी में मेल या फीमेल हॉर्मोन का स्तर जांचा जाता है. साइंटिफिक अमेरिकन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेक्स टेस्टिंग पॉलिसी खेलों में 100 साल के आसपास पुरानी है. 

मजबूत महिलाओं को देखकर हुआ शक

सा्ल 1928 में पहली बार महिला खिलाड़ियों को ओलंपिक में दौड़ने का मौका मिला था. इसपर लोगों को शक होता था कि इतनी तेजी से भागने-दौड़ने वाली एथलीट महिला हो ही नहीं सकती. आठ सालों के भीतर ही वर्ल्ड एथलीट्स (तत्कालीन इंटरनेशन एमैच्योर एथलीट फेडरेशन) ने तय किया कि वे संदिग्ध लगने वाली महिलाओं की जांच के बाद ही उन्हें कंपीटिशन में भाग लेने देंगे. यही जेंडर टेस्टिंग थी.

हुआ करती थी न्यूड परेड

शुरुआत में जांच के उतने पक्के तरीके न होने से एथलीट को न्यूड करके भी उसे परखा जाता था. साल 1966 तक ये न्यूड परेड सारी महिलाओं की होने लगी. ये परेड कमेटी के पैनल के सामने होती थी. दो साल बाद जाकर हल्ला-गुल्ला मचने पर क्रोमोजोम्स की जांच होने लगी. इसके बाद इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी हाइपरएंड्रोजेनिज्म की जांच करने लगी, यानी क्रोमोजोम के अलावा हॉर्मोन्स का टेस्ट. 

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साल 1999 में मेंडेटरी टेस्टिंग पर रोक लग गई लेकिन संदिग्ध लगने वाले एथलीट्स की ये जांच अब भी की जाती है. 

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