Advertisement

क्या वाकई घट रहे क्रिश्चियैनिटी को मानने वाले, ईसाई धर्म छोड़ने वाले क्या कोई नया मजहब अपना रहे हैं?

साल 2019 में जब अमेरिकियों से धार्मिक जुड़ाव से बारे में पूछा गया तो लगभग 28 फीसदी ने खुद को 'नथिंग इन पर्टिकुलर' की श्रेणी में रखा. ये वे लोग थे, जो पहले कट्टर ईसाई थे. तीन हजार से ज्यादा लोगों पर प्यू रिसर्च सेंटर के इस सर्वे ने एक बार फिर ये सवाल उठा दिया कि क्या क्रिश्चियैनिटी का ग्राफ नीचे जा रहा है?

ईसाई धर्म को मानने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं. (Photo- Unsplash) ईसाई धर्म को मानने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं. (Photo- Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 4:50 PM IST

दुनिया में लगभग 2.38 बिलियन लोग किसी न किसी तरह से ईसाई धर्म से जुड़े हुए हैं. इसका मतलब ये कि संसार की एक-तिहाई आबादी क्रिश्चियन है. इसमें भी सबसे ज्यादा लोग कैथोलिक हैं. हालांकि सबसे बड़े धर्म का ग्राफ तेजी से गिर रहा है. इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग या तो इसके लिए न्यूट्रल हो रहे हैं, या कोई दूसरा मजहब अपना रहे हैं. जानें, कैसे बदल रही है दुनिया की धार्मिक जनसंख्या. 

Advertisement

वर्ल्ड रिलीजन डेटाबेस ने लगभग सात दशक का धार्मिक डेटा दिया. साल 1950 से 2015 तक के सेंसस में पता चला कि मुस्लिम आबादी 13 फीसदी से बढ़ते हुए 24 हो गई. ये है धार्मिक जनगणना का पहला हिस्सा. दूसरा पार्ट चौंकाने वाला है. इसके अनुसार इसी टाइम पीरियड में 35 प्रतिशत ईसाई आबादी घटते हुए 33 प्रतिशत रह गई. घटी हुई आबादी या तो किसी और धर्म की तरफ जा रही है, या फिर उसका किसी धर्म से कोई जुड़ाव नहीं दिख रहा. 

फिलहाल यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और रूस में सबसे ज्यादा कैथोलिक आबादी है. इसमें अमेरिका में ये धार्मिक जनसंख्या सबसे तेजी से कम हो रही है. प्यू रिसर्च अनुमान लगाती है कि धर्म का ये खांचा या तो खाली पड़ा है, या लोग किसी और सोच की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. किसी भी धर्म को न मानने वालों की भी एक कैटेगरी बन चुकी, जिसे रिलीजस नन्स कहा जा रहा है. अमेरिकी मीडिया संस्थान नेशनल पब्लिक रेडियो की एक रिपोर्ट दावा करती है कि साल 2024 में रिलीजियस नन्स सबसे बड़ा समूह है, जिसमें युवा आबादी ज्यादा है.  

Advertisement

शोध के दौरान प्यू ने लोगों से यह भी पूछा कि क्या धर्म या आस्था के बगैर वे खुश हैं. इसका जवाब हैरान करने वाला था. रिलीजियस नन बाकी लोगों की तुलना कम खुश और संतुष्ट लगे. वे सही-गलत का फैसला लेने में भी पहले से ज्यादा अटकते हैं क्योंकि उन्हें गाइड करने के लिए कोई धार्मिक सहारा नहीं होता. इसके बाद भी धर्म से दूरी बढ़ रही है. 

धर्म छोड़ने या दूसरा धर्म अपनाने को लेकर कई संस्थाएं अपनी-अपनी तरह से रिसर्च कर रही हैं इसलिए इसके डेटा पूरी तरह से पक्के नहीं. कई रिसर्च ये भी कहती हैं कि क्रिश्चियनिटी कम नहीं हो रही, बल्कि एक से दूसरे क्षेत्र में शिफ्ट हो रही है. वर्ल्ड क्रिश्चियन डेटाबेस की मानें तो बीते 120 सालों में इस धार्मिक आबादी में कोई खास कमी नहीं आई, बस इसकी डेमोग्राफी बदल रही है. यानी इस मानने वाले यूरोप और अमेरिका से भले घट रहे हों, लेकिन दूसरे देशों में बढ़ रहे हैं. धर्मांतरण के आधिकारिक आंकड़े चूंकि देश  जारी नहीं करते हैं, लिहाजा इसका सही डेटा पाना मुश्किल है

क्या है कारण रिलीजस नन्स के बढ़ने का

बीते कुछ दशकों में चर्चों में यौन शोषण और करप्शन की कई घटनाएं हुईं. यहां तक कि बच्चों को भी एब्यूज किया गया. बोस्टन के कैथोलिक चर्च में पादरी दशकों से बच्चों का यौन शोषण कर रहे थे, जिसकी खबर पहली बार आज से 20 साल पहले आई. इसके बाद तो सिलसिला चल निकला.

Advertisement

कई देशों के चर्चों से इसी तरह की घटनाएं खुलने लगीं. आयरलैंड में भी काफी बड़ा स्कैंडल हुआ था, जहां चर्च से चलने वाले अनाथालयों में हजारों बच्चों के साथ रेप हुआ. ऑस्ट्रेलिया से लेकर जर्मनी और फ्रांस यानी उन सारे देशों में ऐसे केस आए, जो ईसाई-बहुल हैं. चर्च अधिकारियों ने हालांकि इसके लिए माफी मांगी और अरबों डॉलर का मुआवजा भी दिया लेकिन इससे चर्चों और खासकर धर्म की साख को धक्का लगा. पश्चिम में चर्च जाने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई. यही लोग आगे चलकर रिलीजियस नन्स में बदलने लगे. 

रिचर्ड डॉकिंस और सैम हैरिस जैसे नास्तिकों की किताबें आईं, जिसके बाद धर्म पर खुली बहस होने लगी. सोशल मीडिया ने इसे बढ़ावा दिया. लोग तर्क करने लगे और दलील गले उतरने पर धर्म से दूर भी होने लगे. LGBTQ+ की ईसाई धर्म में जगह नहीं है. वेस्ट में इस जीवनशैली से जुड़े लोग, या इस विचारधारा को सपोर्ट करने वाले लोग बढ़ रहे हैं. धर्म इसमें आड़े न आए, इसलिए वे धर्म से ही दूरी बना रहे हैं. 

क्या कोई मजहब फैल भी रहा है

साल 1900 में मुस्लिमों की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 12% थी. लेकिन अगली सदी के दौरान ये पॉपुलेशन तेजी से बढ़ी. अब प्यू रिसर्च सेंटर दावा कर रहा है कि साल 2050 तक ये धार्मिक पॉपुलेशन 30 फीसदी हो जाएगी. बता दें कि साल 2010 में ही इस्लाम 1.6 बिलियन अनुयायियों के साथ दुनिया का दूसरा बड़ा धार्मिक मजहब बन गया. प्यू रिसर्च में साल-दर-साल आंकड़े देते हुए बताया गया कि इनकी धार्मिक आबादी तेजी से बढ़ रही है, जो साल 2050 तक क्रिश्चियेनिटी को हटाकर दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक आबादी होगी.

Advertisement

वैसे इसका मतलब ये नहीं कि इस्लाम को अपनाने वाले बढ़े हैं. प्यू रिसर्च सेंटर की ही स्टडी कहती है कि अमेरिका में जन्मे 20 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वयस्क होने पर अपनी धार्मिक पहचान से दूर रहने लगते हैं.

धार्मिक आबादी बढ़ने की वजह फिलहाल मुस्लिम परिवारों की बर्थ रेट ज्यादा होना भी है. अगर केवल मुस्लिम बहुल देशों की बात करें तो कई आंकड़े साफ दिखते हैं. जैसे मुस्लिम देश नाइजर में एक महिला औसतन 7 संतानों को जन्म देती है. इसके बाद टॉप 10 में जितने भी देश हैं, उनमें फर्टिलिटी रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है. इसमें कांगो, माली, चड, युगांडा, सोमालिया, साउथ सूडान, बुरुंडी और गिनी हैं. इनमें से अधिकतर अफ्रीकी देश हैं, जहां इस्लाम फैल चुका. अगर अरब देशों को देखें तो वहां औसत फर्टिलिटी रेट 3.1 है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement