
इजरायल और हमास के बीच जंग को एक साल पूरा होने को है. अब भी काफी सारे इजरायली बंधक हमास की कैद में हैं. कथित तौर पर वे गाजा पट्टी की खुफिया सुरंगों में रखे गए हैं. उन्हें छुड़ाने की तमाम कोशिशें कर चुका यहूदी देश गाजा पर लगातार हमलावर है. इसी बीच यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली (यूएनजीए) ने उन्हें देश छोड़ने की चेतावनी दे दी. 124 सदस्य देशों ने इसपर मंजूरी भी दी है.
इसी बुधवार को यूएन ने एक रिजॉल्यूशन निकालते हुए इजरायल को 12 महीनों के भीतर ऑक्युपाइड पैलेस्टिनियन टेरिटरी (ओपीटी) से निकलने को कह दिया. यहां हम तीन सवालों के जवाब समझते हैं.
1. ओपीटी क्या है, क्या इसपर इजरायली कब्जा है.
2. यूएन का रिजॉल्यूशन असल में है क्या.
2. अगर इजरायल उसकी बात न माने तो क्या हो सकता है.
ऑक्युपाइड पैलेस्टिनियन टेरिटरी वो इलाका है, साठ के दशक के छह दिनों तक चले युद्ध के दौरान इजरायल ने जिसपर कब्जा कर लिया था. इसमें वेस्ट बैंक का एक हिस्सा आता है, हालांकि इसे इंटरनेशनल स्तर पर फिलिस्तीनी इलाके के तौर पर ही मान्यता मिली हुई है. पूर्वी यरुशलम भी वेस्ट बैंक का विवादित क्षेत्र रहा, जिसे इजरायल अपना मानता है.
गाजा पट्टी भी फिलिस्तीन में ही आता है. लड़ाई के बाद से 2005 तक यहां इजरायली आर्मी के कैंप रहे. इसके बाद सैनिकों ने अंदर का हिस्सा तो खाली कर दिया लेकिन बाहरी इलाके पर अब भी इजरायली कंट्रोल है. देखा जाए तो इजरायली सैनिकों ने गाजा को एक तरह से घेरकर रखा हुआ है.
क्या है यूएन का रिजॉल्यूशन
अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र की सालाना मीटिंग से ऐन पहले यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली ने एक प्रस्ताव दिया, जिसमें इजरायल के फिलिस्तीन से हटने की बात थी. कुल 124 देशों ने इस रिजॉल्यूशन को सपोर्ट किया, जबकि 14 देश इसके खिलाफ थे. रिजॉल्यूशन के विपक्ष में खड़े देशों में एक अमेरिका भी रहा, जो इजरायल का दोस्त माना जाता है. सदस्य देशों में 43 देश इससे गायब भी रहे, भारत भी इनमें एक था. उसने इस प्रस्ताव के खिलाफ या सपोर्ट में बोलने से दूरी बनाए रखी.
क्या कहा गया है इसमें
रिजॉल्यूशन के मुताबिक इजरायल को अगले 12 महीनों के भीतर फिलिस्तीन पर कब्जाए हुए हिस्सों से अपनी सेना और लोग हटाने होंगे, जो वहां साल 1967 से मौजूद हैं. साथ ही कब्जे के चलते हुए नुकसान की भरपाई के लिए भी इजरायल पैसे और रिसोर्स दे. इससे पहले इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने भी माना था कि ओपीटी पर इजरायल की अवैध मौजूदगी है. बता दें कि ये कोर्ट भी यूएन की ही एक शाखा है. जुलाई में कोर्ट की इस बात के बाद से ही यूएन लगातार इजरायल को चेताता रहा.
केवल सुझाव है, जिसे अनसुना भी कर सकते हैं
यूएन में रिजॉल्यूशन एक आधिकारिक फैसला होता है, जो किसी न किसी इंटरनेशनल मुद्दे पर होता है. फिलहाल आया रिजॉल्यूशन गैर-बाध्यकारी है, यानी ये केवल एक सुझाव है, जिसे मानने के लिए कोई बाध्य नहीं. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली नॉन-बाइंडिंग प्रस्ताव ही दे सकती है. उसके पास किसी देश पर ताकत आजमाने की पावर नहीं. वहीं सुरक्षा परिषद का रिजॉल्यूशन बाइंडिंग होता है, जिसे मानना जरूरी है.
वैसे हमास-इजरायल की जंग में यूएन की पावर कहीं काम आती नहीं दिख रही.
वो बार-बार कोई न कोई रिजॉल्यूशन लेकर आता है, लेकिन हर बार उसपर कोई कान नहीं देता. यहां तक कि पिछले साल सुरक्षा परिषद भी इसपर एक रिजॉल्यूशन ला चुका, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. दिसंबर में आए प्रस्ताव में गाजा में नागरिकों के जबरन विस्थापन को तुरंत रोकने और उन्हें मदद पहुंचाने के लिए कहा गया था. अलजजीरा की रिपोर्ट कहती है कि प्रस्ताव पर अमेरिका ने जमकर बखेड़ा किया था और पहले ड्राफ्ट में कई बदलाव किए थे. इसके बाद जो रिजॉल्यूशन आया, उसपर भी इजरायल ने खास ध्यान नहीं दिया था.
तो क्या रिजॉल्यूशन का कोई मतलब नहीं
फिलहाल तो यही लग रहा है. अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी, यहां तक कि यूक्रेन ने भी इसके विरोध में वोट किया. उनका कहना था कि वे ऐसे रिजॉल्यूशन को वोट नहीं कर सकते, जो इजरायल के खुद को डिफेंड करने के हक को कम करता हो. बता दें कि फिलिस्तीन केवल वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी तक सीमित नहीं, वो येरूशलम पर भी धार्मिक दावा करता रहा. इजरायल भी इस क्षेत्र पर अपना अधिकार मानता है. ये भी टकराव की वजह है.
वैसे भी यूएन ने इजरायल को कथित अवैध कब्जा हटाने के लिए पूरे एक साल का समय दिया है. अगर वो वाकई ऐसा चाहता तो ये मियाद छोटी होती, और सुरक्षा परिषद से पास कराई जाती.