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Mossad Operation: लिस्ट बनाई, ढूंढा और मार दिया... इजरायल की मोसाद का वो ऑपरेशन, जिसमें चुन-चुनकर मारे गए थे आतंकी

1972 में फिलिस्तीन के चरमपंथी संगठन ब्लैक सेप्टेम्बर से जुड़े आतंकियों ने 11 इजरायली खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी. इसका बदला लेने के लिए मोसाद ने रैथ ऑफ गॉड ऑपरेशन शुरू किया था. इस ऑपरेशन के तहत, इजरायली एजेंटों ने चुन-चुनकर फिलिस्तीनी चरमपंथियों को मार गिराया था.

ऑपरेशन के तहत, इजरायली एजेंटों ने चुन-चुनकर आतंकियों को मार गिराया था. (फाइल फोटो- गेटी इमेजेस) ऑपरेशन के तहत, इजरायली एजेंटों ने चुन-चुनकर आतंकियों को मार गिराया था. (फाइल फोटो- गेटी इमेजेस)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 9:23 PM IST

इजरायल पर पचास साल के इतिहास में अब तक का सबसे घातक हमला हुआ है. सात अक्टूबर की सुबह-सुबह गाजा पट्टी से आतंकियों ने इजरायल पर पांच हजार रॉकेट दागे. ये रॉकेट हमास ने दागे थे. हमास को इजरायल फिलिस्तीन का आतंकी संगठन मानता है.

इजरायल की सेना ने बताया था कि रॉकेट दागने के बाद बड़ी संख्या में हमास के आतंकी घुस आए थे. आतंकियों ने जमीन, समंदर और आसमान से दक्षिणी इजरायल में घुसपैठ की. कई इजरायलियों को बंधक भी बना लिया. 

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इजरायल पर इतने बड़े आतंकी हमले के बाद उसकी खुफिया एजेंसी 'मोसाद' भी सवालों के घेरे में आ गई है. सवाल उठ रहे हैं कि हमास ने इतने बड़े हमले की प्लानिंग एक या दो दिन में तो की नहीं होगी, फिर क्यों मोसाद को इसकी भनक तक नहीं लगी? 

इस आतंकी हमले के बाद भले ही मोसाद पर सवाल उठ रहे हों, लेकिन ये वही एजेंसी है जिसकी गिनती दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी में होती है. मोसाद वही एजेंसी है जिसने आज से 50 साल पहले एक ऐसा ऑपरेशन चलाया था, जिसकी चर्चा आजतक होती है. उस ऑपरेशन में मोसाद ने 11 इजरायलियों की मौत का बदला लेते हुए फिलिस्तीनी आतंकियों को चुन-चुनकर मारा था.

क्या हुआ था?

बात 6 दिसंबर 1972 की है. जर्मनी के म्यूनिख में ओलंपिक गेम्स हो रहे थे. पांच सितंबर की रात को फिलिस्तीन के चरमपंथी संगठन 'ब्लैक सेप्टेम्बर' के आठ आतंकी खिलाड़ियों की वेशभूषा में अपार्टमेंट में घुस आए.

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ये वही अपार्टमेंट था, जहां इजरायली एथलीट ठहरे हुए थे. आतंकियों ने दो एथलीटों की उसी समय हत्या कर दी. बाकी नौ खिलाड़ियों को बंधक बना लिया.

इन आतंकियों ने खिलाड़ियों को छोड़ने की एवज में 200 फिलिस्तीनी चरमपंथियों को छोड़ने की मांग रखी. ये फिलिस्तीनी चरमपंथी इजरायल की जेलों में बंद थे. 

इजरायल में उस समय गोल्डा मेयर प्रधानमंत्री थीं. उन्होंने दो टूक जवाब दिया- 'इजरायल आतंकियों की कोई मांग नहीं मानता. चाहे कोई कीमत चुकानी पड़े.'

ब्लैक सेप्टेम्बर का आतंकी. (फाइल फोटो- getty images)

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बाकी नौ एथलीटों की भी हत्या

ब्लैक सेप्टेम्बर के आतंकियों ने बंधक बनाए गए इजरायली खिलाड़ियों को लेकर एयरपोर्ट चले गए. एयरपोर्ट पर जर्मन सुरक्षाबलों ने इजरायली खिलाड़ियों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहे.

जर्मन सुरक्षाबलों की कोशिश से आतंकी भड़क गए. उन्होंने एक-एक करके सभी नौ इजरायली खिलाड़ियों को मार डाला. 

जर्मन सुरक्षाबलों के साथ चले एनकाउंटर में आठ में से पांच आतंकी मारे गए. बाकी तीन आतंकियों- अदनान अल गाशे, जमाल अल गाशे और मोहम्मद सफादी जिंदा पकड़े गए.

तीनों जिंदा आतंकी छूट गए

इजरायली खिलाड़ियों की हत्या के दो दिन बाद ही इजरायल ने सीरिया और लेबनान में आतंकी संगठन के ठिकानों पर बमबारी की. इसमें 200 आतंकी मारे गए.

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कहने को तो बदला लिया जा चुका था. लेकिन इजरायल जिंदा पकड़े गए उन तीन आतंकियों को सौंपने की मांग कर रहा था. 

इस घटना के लगभग महीनेभर बाद अक्टूबर में एक फ्लाइट सीरिया से जर्मनी आ रही थी. इस फ्लाइट को दो आतंकियों ने हाईजैक कर लिया. उन आतंकियों ने जिंदा पकड़े गए तीनों आतंकियों की रिहा करने की मांग रखी. 

जर्मनी ने बात मान ली और तीनों को रिहा कर दिया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन तीनों को वहां से लीबिया ले जाया गया था.

म्यूनिख में जिंदा पकड़े गए तीन आतंकी (फाइल फोटो: Getty)

'ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड'

खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने एक कमेटी बनाई. कमेटी ने तय किया कि उन हत्याओं में शामिल हरेक की लिस्ट बनाई जाएगी और चुन-चुनकर मारा जाएगा.

बताया जाता है कि कमेटी ने 20 से 35 लोगों की एक लिस्ट तैयार की थी. ये लोग यूरोप और मध्य पूर्व तक फैले हुए थे. हरेक को ढूंढ-ढूंढकर मारना था. वो भी इस तरह से कि इजरायल का नाम न जुड़ पाए. इसका जिम्मा मिला मोसाद को. इस ऑपरेशन का नाम रखा- 'रैथ ऑफ गॉड' यानी 'ईश्वर का प्रकोप'.

इस ऑपरेशन को मोसाद के एजेंट माइकल हरारी लीड कर रहे थे. उन्होंने इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पांच अलग-अलग टीम बनाई थी. इन टीमों का इजरायल की सरकार से कोई संपर्क नहीं था. ये सब सीधे माइकल हरारी को ही रिपोर्ट करते थे.

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ढूंढ-ढूंढकर मौतें...

ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड की शुरुआत 16 अक्टूबर 1972 को हुई. इसी दिन पहली हत्या हुई. इटली की राजधानी रोम के एक होटल में वेल जेवेतर नाम के शख्स की हत्या हुई थी. रिपोर्ट्स बताती हैं कि जेवेतर ही रोम में ब्लैक सेप्टेम्बर का चीफ था.

दूसरी हत्या फ्रांस में ब्लैक सेप्टेम्बर के लीडर महमूद हमशारी की हुई. महमूद हमशारी फ्रांस में एक घर में छिपा हुआ था. एक रोज जब वो बाहर निकला तो इजरायली एजेंटों ने उसके टेलीफोन में बम लगा दिया. घर पहुंचते ही महमूद के पास एक फोन आया और जैसे ही उसने रिसीवर उठाया, वैसे ही ब्लास्ट हो गया. 8 दिसंबर 1972 को महमूद की मौत हो गई.

इसके बाद लगातार ऐसे ही हमले होते रहे. बताया जाता है कि इजरायली एजेंट्स टारगेट को कुछ दिन पहले एक गुलदस्ता भेजते थे. इस गुलदस्ते के साथ एक कार्ड भी होता था, जिसमें लिखा होता था- 'हम न भूलते हैं. न माफ करते हैं.'

लगातार हो रही हत्याओं से फिलिस्तीनी चरमपंथी घबरा गए थे. ऐसे ही तीन चरमपंथियों ने खुद को लेबनान के एक घर में कैद कर लिया था. उन्हें ढूंढते-ढूंढते इजरायली एजेंट बोट से बेरुत पहुंचे. इनमें कुछ एजेंट्स औरतों के भेष में भी थे. ये एजेंट रातोरात बिल्डिंग में घुसे और उन तीनों को मारकर लौट भी आए.

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उन तीन आतंकियों का क्या हुआ?

म्यूनिख में जिंदा पकड़े गए तीनों आतंकियों की मौत को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि 1972 के हमले के कुछ सालों बाद मोसाद एजेंट्स ने अदनान अल गाशे और मोहम्मद सफादी की हत्या कर दी थी. 

इजरायली लेखक आरॉन जे. क्लिन ने अपनी किताब में दावा किया था कि अदनान अल गाशे की मौत 1978 या 1979 में हार्ट फेल होने से हुई थी. 

वहीं, साल 2005 में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के नेता तौफिक तिरावी ने क्लिन से कहा था, 'जैसे आप जिंदा हैं, वैसे ही मोहम्मद सफादी भी जिंदा है.'

तीसरे हमलावर जमाल अल गाशे को आखिरी बार केविन मैकडॉनल्ड की डॉक्यूमेंट्री 'वन डे इन सेप्टेम्बर' में देखा गया था. ये डॉक्यूमेंट्री 1999 में आई थी. जमाल अल गाशे अभी जिंदा है या नहीं, इसकी कोई खबर नहीं है.

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