
भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच पड़ने वाले फिलिस्तीन को यहूदी, मुसलमान और ईसाई धर्म के लोग पवित्र मानते थे. इस इलाके पर ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा था. ऑटोमन साम्राज्य ने चार सदी से भी ज्यादा लंबे वक्त तक यहां राज किया.
19वीं सदी के आखिर में पूर्वी यूरोप से फिलिस्तीन में यहूदियों का पलायन शुरू हुआ. इसे 'पहला आलिया' कहा जाता है. आलिया यहूदियों के दूसरे देशों से पलायन को कहा जाता है. ये पलायन साल 1881 में पूर्वी यूरोप में हो रहे नरसंहार से बचने के लिए हुआ था.
इसके बाद 1904 से 1914 के बीच 'दूसरा आलिया' शुरू हुआ. ये पलायन भी नरसंहार से बचने के लिए हुआ था. हजारों की संख्या यहूदी फिलिस्तीन में आकर बसने लगे.
एक चिट्ठी ने बदली तस्वीर!
दुनियाभर के मुल्कों से जब यहूदियों का पलायन चल रहा था, तभी 1896 में ऑस्ट्रिया-हंगरी के पत्रकार थियोडर हर्जल ने एक आर्टिकल लिखा. इसमें यहूदियों के लिए अलग देश की बात कही गई थी.
20वीं सदी की शुरुआत में जब यहूदियों का पलायन तेज हुआ तो 1909 में पहले यहूदी शहर 'तेल अवीव' की स्थापना हुई.
इन सबके बीच ही पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया. विश्व युद्ध चल ही रहा था कि उस दौरान 1917 में ब्रिटेन के विदेश सचिव आर्थर बाल्फोर ने ब्रिटेन के यहूदी नेता लॉर्ड रॉथचाइल्ड को एक चिट्ठी लिखी. इसे 'बाल्फोर डिक्लेरेशन' के नाम से जाना जाता है. इस चिट्ठी में बाल्फोर ने यहूदियों को फिलिस्तीन में 'राष्ट्रीय घर' देने की बात मान ली थी. इसके साथ ही फिलिस्तीन इलाके में यहूदी राज्य की नींव पड़ी.
ऑटोमन साम्राज्य का पतन...
पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमन साम्राज्य का पतन हो गया. फिर ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर मध्य पूर्व का बंटवारा कर लिया. सीरिया पर फ्रांस तो इराक और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया. ये सबकुछ लीग ऑफ नेशंस (संयुक्त राष्ट्र से पहले की अंतरराष्ट्रीय संस्था) की निगरानी में हुआ था.
पहले विश्व युद्ध के बाद अगले दस साल में लगभग एक लाख यहूदी फिलिस्तीन में बसते चले गए.
नतीजा ये हुआ कि 1936 से 1939 के बीच अरब में विद्रोह हो गया. ये विद्रोह यहूदियों के पलायन के खिलाफ था. इस संघर्ष में हजारों-लाखों लोग मारे गए.
आखिरकार 1939 में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन में यहूदियों के आने पर रोक लगा दी. इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध भी शुरू हो गया. दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के खिलाफ जमकर अत्याचार हुए. चुन-चुनकर यहूदियों को मारा जाने लगा. ये अत्याचार एडोल्फ हिटलर की नाजी सेना कर रही थी. हिटलर की नाजी सेना से बचने के लिए यहूदियों ने भागना तो शुरू किया, लेकिन दुनिया के बाकी मुल्क उन्हें अपने यहां शरण देने से बच रहे थे.
जब ये सब हो रहा था, तब गुपचुप तरीके से 'आलिया बेट' नाम से आंदोलन भी चल रहा था. इसके जरिए यहूदियों को गुपचुप तरीके से फिलिस्तीन में बसाया जाने लगा. एक अनुमान के मुताबिक, दूसरे विश्व युद्ध के आखिर तक फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा हो गई थी.
अलग यहूदी राष्ट्र की मांग
यहूदियों के लिए अलग देश की मांग तो लंबे समय से हो ही रही थी. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध और नाजियों के हाथों यहूदियों के नरसंहार के बाद ये मांग और तेज हो गई.
ब्रिटेन ने यहूदी और अरब प्रतिनिधियों के साथ बाचतीच कर मसले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. यहूदी फिलिस्तीन को यहूदी और अरब देश में बाटने की मांग पर अड़े थे. जबकि, अरब इसके खिलाफ था.
15 मई 1947 को ब्रिटेन ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के पास भेज दिया. सितंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव रखा गया. प्रस्ताव में एक अरब मुल्क और एक यहूदी देश की बात थी. जबकि, येरूशलम पर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण की बात कही गई थी.
दिसंबर 1947 में गृहयुद्ध शुरू हो गया. इस बीच ब्रिटेन ने ऐलान किया कि 15 मई 1948 को वो यहां से चले जाएंगे.
इस ऐलान के बाद अरब विद्रोहियों ने यहूदी इलाकों पर हमले शुरू किए. जवाब में हगानाह, लेही और इरगुन जैसी यहूदी संगठनों ने भी हमला कर दिया. अनुमान है कि यहूदी विद्रोही संगठनों की कार्रवाई में ढाई लाख से ज्यादा अरबों ने फिलिस्तीन छोड़ दिया.
और फिर बना इजरायल
ब्रिटिश शासकों के लौटने से एक दिन पहले 14 मई 1948 को यहूदी नेता डेविड बेन-गुरियों ने एक अलग यहूदी राष्ट्र का ऐलान किया. उन्होंने इसे 'इजरायल' नाम दिया.
इजरायल के गठन के एक दिन बाद ही मिस्त्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक ने हमला कर दिया. ये पहला अरब-इजरायल संघर्ष था.
अरब और इजरायली सेना के बीच लगभग एक साल तक संघर्ष चला. आखिरकार 1949 में सीजफायर का ऐलान हुआ और इजरायल-फिलिस्तीन के बीच अस्थाई बॉर्डर बनी. इसे 'ग्रीन लाइन' के नाम से जाना जाता है.
सीजफायर की घोषणा से पहले तक जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया था, जिसमें पूर्वी येरूशलम का हिस्सा भी शामिल था. जबकि, मिस्र ने गाजा पट्टी कब्जा ली थी.
वेस्ट बैंक येरूशलम और जॉर्डन के पूर्वी इलाके में पड़ता है. फिलिस्तीन और इजरायल, दोनों ही इसे अपनी राजधानी बताते हैं. गजा पट्टी की 50 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी सीमा इजरायल से लगती है.
1967 की लड़ाई में इजरायल ने गजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था. लेकिन साल 2005 में अपना दावा छोड़ दिया. इसके उलट वेस्ट बैंक पर अभी भी फिलिस्तीनियों का कब्जा है. गजा पट्टी फिलहाल हमास के नियंत्रण में है. इजरायल हमास को फिलिस्तीन का आतंकी संगठन मानता है.
इजरायल UN का सदस्य, लेकिन फिलिस्तीन नहीं
1948 में बने इजरायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगले ही साल मान्यता मिल गई थी. 11 मई 1949 से इजरायल संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है. इसके इतर फिलिस्तीन अब तक एक मुल्क नहीं बन पाया है.
फिलिस्तीन असल में दो हिस्सों में बंटा है. एक है- वेस्ट बैंक और दूसरा- गाजा पट्टी. वेस्ट बैंक पर महमदू अब्बास फतह की राजनीतिक पार्टी का नियंत्रण है. जबकि, गाजा पट्टी पर इस्लामिक चरमपंथी संगठन हमास का दबदबा है.
फिलिस्तीन येरूशलम को अपनी राजधानी बताता है. जबकि, 1967 में छह दिन तक चली जंग में इजरायल ने येरूशलम पर कब्जा कर लिया था. और इसे अपनी राजधानी घोषित कर दिया था.
हालांकि, इजरायल को भले ही संयुक्त राष्ट्र के ज्यादातर सदस्यों ने अलग देश के तौर पर मान्यता दे रखी हो. लेकिन अब भी ज्यादातर देश येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता नहीं देते हैं.