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चुनाव कश्मीर का और वोटिंग दिल्ली में... जानिए सिर्फ कश्मीरी पंडितों को ही क्यों मिलती है ये खास सुविधा?

जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे. जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में रहने वाले कश्मीरी प्रवासियों के लिए 24 पोलिंग स्टेशन बनाए जाएंगे. यहां जाकर कश्मीरी प्रवासी कश्मीर के चुनाव के लिए वोट डाल सकेंगे.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 9:54 PM IST

जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में ये पहले चुनाव होंगे. ये चुनाव इसलिए भी खास हैं, क्योंकि इस बार विधानसभा सीटों की संख्या भी बढ़ गई है. साथ ही अब जम्मू-कश्मीर में लद्दाख भी नहीं रहा.

तीन चरणों में होने वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में 88.66 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं. इनमें से लाखों वोटर्स ऐसे भी हैं, जो जम्मू-कश्मीर से बाहर रहते हैं. कश्मीरी प्रवासी भी वोट डाल सकें, इसके लिए चुनाव आयोग दिल्ली में भी पोलिंग बूथ बनाता है.

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जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव आयुक्त पीके पोले ने बताया कि विस्थापित कश्मीरियों के लिए जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में 24 स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए जा रहे हैं. उन्होंने ये भी बताया कि जम्मू और उधमपुर में रह रहे प्रवासी कश्मीरी पंडितों को फॉर्म-M भरना भी जरूरी नहीं होगा. 

कश्मीरी प्रवासी कौन?

कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाता है जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो. इनमें बड़ी संख्या कश्मीरी पंडितों की है. कश्मीरी प्रवासी वोटरों की संख्या सवा लाख के करीब होने का अनुमान है.

घाटी से पलायन के बाद ज्यादातर कश्मीरी प्रवासी जम्मू, उधमपुर और दिल्ली आकर बस गए थे. तब से ही ये यहां रह रहे हैं. लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ये कश्मीरी प्रवासी वोट डाल सकें, इसके लिए जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए जाते हैं.

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1996 में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में ये सिस्टम लाया गया था. तब से ही हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कश्मीरी प्रवासियों के लिए पोलिंग बूथ बनाए जा रहे हैं.

इस बार जो 24 पोलिंग बूथ बनाए जाएंगे, उनमें से 19 जम्मू में, 1 उधमपुर में और 4 दिल्ली में होंगे.

यह भी पढ़ें: 83 की बजाय 90 सीटें, कश्मीरी पंडितों के लिए भी रिजर्वेशन... जानें- 10 साल बाद हो रहे जम्मू-कश्मीर चुनाव में क्या-क्या बदलेगा?

सिर्फ J-K के प्रवासियों को ही मिलती है ये सुविधा

सिर्फ जम्मू-कश्मीर के प्रवासियों के लिए ही इस तरह की सुविधा है. बाकी देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे दूसरे प्रवासियों को इस तरह की सुविधा नहीं मिलती.

पीपुल्स ऑफ रिप्रेजेंटेशन एक्ट, 1951 की धारा 20A कहती है कि वोट देने के लिए व्यक्ति को पोलिंग स्टेशन जाना होगा. जिस विधानसभा में आपका नाम दर्ज होगा, आप वहीं के पोलिंग बूथ में जाकर वोट दे सकते हैं.

इसी कारण अपना घर छोड़कर दूसरे शहर या राज्य में बसे प्रवासी चुनावों में वोट नहीं डाल पाते. अगर उन्हें वोट डालना है, तो अपनी विधानसभा में जाना होगा. लेकिन जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में रहने वाले कश्मीरी प्रवासी वोट डाल सकते हैं.

कश्मीरी पंडितों को ही ये सुविधा क्यों?

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1987 के विधानसभा चुनाव कश्मीर के लिए टर्निंग प्वॉइंट साबित हुए. इन चुनावों के बाद घाटी में आतंकवाद तेजी से पनपा. 

साल 1990 में जब घाटी में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ तो कश्मीरी पंडितों को उनकी जगह से भगा दिया गया. दो साल पहले सरकार ने संसद में बताया था कि उस दौर में घाटी छोड़ने वाले कश्मीरी प्रवासी परिवारों की संख्या 44 हजार 684 थी, जिनमें 1.54 लाख से ज्यादा लोग शामिल हैं.

गृह मंत्रालय के मुताबिक, घाटी में शुरू हुए आतंकवाद में 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी.

यही वजह है कि कश्मीरी प्रवासियों के लिए वोटिंग के लिए अलग से सुविधा की जाती है. क्योंकि ये लोग अब भी जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में रह रहे हैं.

वोट डालने की क्या होगी प्रक्रिया?

इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू और उधमपुर में बसे कश्मीरी प्रवासियों के लिए फॉर्म-M की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया था. विधानसभा चुनाव में भी जम्मू और उधमपुर में रह रहे प्रवासी वोटरों को फॉर्म-M भरने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, दिल्ली में रहे प्रवासियों को फॉर्म-M भरना होगा.

जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव आयुक्त पीके पोले ने बताया कि कश्मीरी प्रवासी वोटरों का ड्राफ्ट रोल जल्द ही जारी किया जाएगा. इसमें किसी भी तरह के बदलाव या सुधार के लिए सात दिन का वक्त होगा. इसके बाद फाइनल इलेक्टोरल रोल जारी होगा.

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उन्होंने बताया कि फाइनल डेटा आने के बाद कश्मीरी प्रवासियों को वोटर आईडी कार्ड जारी किया जाएगा. इसके जरिए प्रवासी वोटर स्पेशल पोलिंग बूथ जाकर वोट डाल सकेंगे.

यह भी पढ़ें: BJP ने J-K के लिए जारी की नई लिस्ट, पहले चरण के 15 उम्मीदवारों का ऐलान, कोई बदलाव नहीं

बाकी प्रवासियों के लिए क्या?

अभी सिर्फ कश्मीरी प्रवासियों या कश्मीरी पंडितों के लिए ही स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए जाते हैं. लेकिन बाकी प्रवासियों के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं है.

दूसरे शहर या राज्यों में रह रहे प्रवासी भी वोट डाल सकें, इसके लिए चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग मशीन पर काम कर रहा है. पिछले साल जनवरी में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग मशीन का प्रस्ताव रखा था. रिमोट वोटिंग मशीन का प्रस्ताव अगर पास होता है और चुनावों में इसका इस्तेमाल होता है, तो दूसरे शहरों या राज्यों में रह रहे प्रवासी उसी जगह से वोट डाल सकेंगे.

प्रवासी वोटरों के लिए अगर इस तरह की सुविधा होती है तो इससे चुनावों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने की भी उम्मीद है. 2011 में पांच एनजीओ ने प्रवासी वोटर्स पर एक स्टडी की थी, जिसमें सामने आया था कि 60% लोग ऐसे थे जो वोट डालने के लिए अपने घर नहीं लौटे, क्योंकि उनके लिए घर लौटकर आना काफी महंगा था. भारत में दूसरे राज्यों में रह रहे ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो गरीब हैं और ऑटो-रिक्शा चलाकर या छोटे-मोटे काम करके अपना गुजर-बसर करते हैं. ऐसे में उनके लिए वोट डालने के लिए घर लौटना काफी महंगा पड़ जाता है.

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2019 के लोकसभा चुनाव में 67.4 फीसदी वोटिंग ही हुई थी. चुनाव आयोग के मुताबिक, 30 करोड़ से ज्यादा वोटर्स ऐसे थे जिन्होंने वोट नहीं दिया था. और इसकी सबसे बड़ी वजह प्रवासी ही थे.

जम्मू-कश्मीर में कब हैं चुनाव?

जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरणों में वोटिंग होगी. पहले चरण में 24 सीटों पर 18 सितंबर, दूसरे चरण में 26 सीटों पर 25 सितंबर और तीसरे चरण में 40 सीटों पर 1 अक्टूबर को वोटिंग होगी. चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.

जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे. यहां की 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं. बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. 

जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया. करीब चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा. बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला. 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया. राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया. अभी वहां राष्ट्रपति शासन लागू है. 

पिछले साल आर्टिकल-370 को हटाने के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया है.

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