
जम्मू-कश्मीर में अब आतंकियों की मदद करने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करने की तैयारी की जा रही है. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी आरआर स्वैन ने कहा कि जो स्थानीय लोग विदेशी आतंकियों की मदद करते हुए पाए जाएंगे, उनपर एनीमी एजेंट्स ऑर्डिनेंस (Enemy Agents Act) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.
डीजीपी ने कहा कि अगर कोई स्थानीय विदेशी आतंकियों की मदद करते हुए पकड़ा जाता है तो उससे एनीमी एजेंट्स ऑर्डिनेंस से निपटा जाएगा.
उन्होंने बताया कि इस कानून को 1948 में पाकिस्तानी आतंकियों और घुसपैठियों से निपटने के लिए बनाया गया था. ये कानून UAPA से भी ज्यादा सख्त है और इसमें उम्रकैद से लेकर फांसी की सजा तक का प्रावधान है.
उन्होंने कहा कि आतंकियों को जांच के दायरे में नहीं लाया जा सकता, उन्हें सीधे गोली मार देनी चाहिए. लेकिन जो लोग उनकी मदद करते हैं, उनके साथ दुश्मन के एजेंट की तरह बर्ताव किया जाएगा.
क्या है ये कानून?
ये कानून पहली बार 1917 में आया था. तब डोगरा के तत्कालीन महाराजा ने इसे लागू किया था. उस समय कानून को 'ऑर्डिनेंस' ही कहा जाता था, इसलिए आज भी इस कानून को 'एनीमी एजेंट ऑर्डिनेंस' कहा जाता है. 1947 में बंटवारे के बाद इसमें संशोधन किया गया.
ये कानून कहता था कि जो कोई भी दुश्मन का एजेंट है या दुश्मन की मदद करने के इरादे से किसी व्यक्ति के साथ मिलकर ऐसी साजिश रचता है जिससे भारतीय सेना के अभियानों में बाधा आए या फिर बाधा आने की संभावना हो तो ऐसे व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उम्रकैद से लेकर मौत की सजा दिए जाने का प्रावधान है.
इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर कम से कम 10 साल की कठोरतम सजा मिलती है. इसके अलावा इसमें उम्रकैद और फांसी की सजा का प्रावधान भी है.
अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया, तो जम्मू-कश्मीर के कानूनी ढांचे में भी बड़े बदलाव हुए. राज्य के कई कानूनों को खत्म कर दिया गया तो कुछ लागू रहे. जो कानून लागू रहे, उनमें एनीमी एजेंट ऑर्डिनेंस भी शामिल है.
इस ऑर्डिनेंस की धारा 4 कहती है कि दुश्मन के एजेंट के रूप में या उसकी मदद करने के इरादे से कोई भी कृत्य 22 अक्टूबर 1947 के बाद किया गया हो तो उसपर इस कानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.
क्यों सख्त है ये कानून?
इस कानून के तहत आरोपी का मुकदमा स्पेशल जज के सामने सुना जा सकता है. आरोपी अपने बचाव के लिए तब तक वकील भी हायर नहीं कर सकता, जब तक अदालत इसकी इजाजत न दे.
इस कानून के तहत सजा के खिलाफ अपील का भी प्रावधान नहीं है. स्पेशल जज के फैसले के खिलाफ तभी अपील की जा सकती है जब उम्रकैद या मौत की सजा मिली हो. लेकिन यहां भी एक पेच है. सजा का रिव्यू हाईकोर्ट के आदेश पर नियुक्त कोई सरकारी अधिकारी करेगा और उसका फैसला ही आखिरी माना जाएगा.
इतना ही नहीं, इस कानून के तहत चलने वाले मुकदमे से जुड़े किसी भी रिकॉर्ड की कॉपी सिर्फ आरोपी और उसके वकील को ही मिलती है. आरोपी और उसका वकील किसी तीसरे व्यक्ति रिकॉर्ड की कॉपी नहीं दिखा सकता. इसके अलावा सरकार की अनुमति के बिना अगर कोई व्यक्ति मुकदमे या आरोपी से जुड़ी किसी भी जानकारी का खुलासा करता है या प्रकाशित करता है तो दोषी पाए जाने पर दो साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
मकबूल बट को हुई थी फांसी
इसी कानून के तहत आतंकी मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई गई थी. उसे सीआईडी इंस्पेक्टर अमर चंद की हत्या के मामले में दोषी पाया गया था. मकबूल बट ने 21 बार चाकू घोपकर अमर चंद की हत्या कर दी थी. 1966 में स्पेशल जज नीलकंठ गंजू ने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी. उसे 11 फरवरी 1984 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी.