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जम्मू-कश्मीर में सरकार तो बन गई, पर पूर्ण राज्य का दर्जा कब? जानें- उमर अब्दुल्ला क्या कर सकते हैं और क्या नहीं

केंद्र शासित प्रदेश बनने के पांच साल बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव भी हो गए और सरकार भी बन गई. उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बन गए हैं. उनकी पार्टी ने चुनाव में 370 और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया था. ऐसे में जानते हैं कि क्या उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलवा सकते हैं?

उमर अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर को सीएम पद की शपथ ली थी. (फोटो-PTI) उमर अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर को सीएम पद की शपथ ली थी. (फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:37 AM IST

जम्मू-कश्मीर में सरकार बन गई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को मुख्यमंत्री पद संभाल लिया. उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री हैं. अब्दुल्ला इससे पहले जनवरी 2009 से जनवरी 2015 तक भी मुख्यमंत्री रहे हैं.

2014 में जब जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए थे, तब नेशनल कॉन्फ्रेंस 15 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, इस बार पार्टी ने 42 सीटों पर जीत हासिल कर ली. नेशनल कॉन्फ्रेंस की इस जीत के लिए उसके वादों ने बड़ी भूमिका निभाई. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाने और अनुच्छेद 370 को बहाल करने का वादा किया था.

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बुधवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद उमर अब्दुल्ला के पिता और पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि ये राज्य चुनौतियों से भरा है और मुझे उम्मीद है कि ये सरकार वो करेगी जो उसने घोषणापत्र में वादा किया था. ये 'कांटो भरा ताज' है और अल्लाह उन्हें (उमर) कामयाब करे और वो लोगों की उम्मीदें पूरा करें.

वहीं, उमर अब्दुल्ला के बेटे जाहिर ने कहा कि नई सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता पूर्ण राज्य की बहाली है. जाहिर ने कहा, पूर्ण राज्य का दर्जा लेने के बाद हम अनुच्छेद 370 की बहाली की लड़ाई लड़ेंगे. अनुच्छेद 370 हमेशा हमारी प्राथमिकता है.

उमर अब्दुल्ला ने क्या कहा?

कुछ महीने पहले उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. उनका मानना था कि वो ऐसे राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते, जहां उन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए उपराज्यपाल से पूछना पड़े.

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हालांकि, बाद में उमर अब्दुल्ला ने अपना मन बदला और दो सीटों- बड़गाम और गांदरबल से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीते भी. 

चुनाव में अनुच्छेद 370 और पूर्ण राज्य की बहाली बड़ा मुद्दा बनी. बुधवार को शपथ से पहले उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर बहुत लंबे समय तक केंद्र शासित प्रदेश नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया है और हमें उम्मीद है कि ऐसा जल्दी होगा.

डिप्टी सीएम सुरिंदर सिंह चौधरी ने भी कहा कि उम्मीद है कि केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के लोगों से जो वादा किया था, उसे पूरा किया जाएगा और जल्द ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होगा.

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पर ये सब कैसे होगा?

चुनाव नतीजे आने के बाद अगले दिन उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर प्रस्ताव पास किया जाएगा.

वहीं, नतीजे साफ होने के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा था, एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बहुत सी चीजें की जा सकती हैं और बहुत सी नहीं. लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि जम्मू-कश्मीर हमेशा के लिए केंद्र शासित प्रदेश नहीं रहेगा. हम उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करेंगे.

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उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया है और मेरा मानना है कि इसे जल्द से जल्द किया जाना चाहिए.

क्या प्रस्ताव पास होने से दर्जा मिल जाएगा?

नहीं. उमर अब्दुल्ला अगर पहली कैबिनेट मीटिंग में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर प्रस्ताव पास कर भी देती है तो ये सिर्फ और सिर्फ केंद्र पर दबाव बनाने की कोशिश होगी, लेकिन इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा.

इस तरह का प्रस्ताव पास होने के बाद उसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा. ये सबकुछ केंद्र पर निर्भर करेगा कि वो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा अभी बहाल करती है या नहीं.

2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून पास कर ही जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. अगर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाना है तो इस कानून में संशोधन करना होगा और ये सब संसद में ही हो सकता है.

पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से होगा क्या?

2019 के बाद जम्मू-कश्मीर का संवैधानिक ढांचा पूरी तरह से बदल गया है. अब वहां सरकार से ज्यादा बड़ी भूमिका उपराज्यपाल की हो गई है.

2019 का जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून कहता है कि पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर बाकी सभी मामलों में विधानसभा कानून बना सकती है. लेकिन एक पेच भी है. अगर राज्य सरकार राज्य सूची में शामिल किसी विषय पर कानून बनाती है तो उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि इससे केंद्रीय कानून पर कोई असर न पड़े.

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इसके अलावा, इस कानून में ये भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी बिल या संशोधन विधानसभा में तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक उपराज्यपाल ने उसे मंजूरी न दे दें.

कुल मिलाकर, अब जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल ही एक तरह से सबकुछ है. सरकार को भले ही पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर बाकी मामलों में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन उसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी.

अगर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलता है तो सारी शक्तियां सरकार के पास आ जाएगी. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा हर मामले पर कानून बना सकती है. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद बस किसी कानून को लागू करने के लिए राज्यपाल के हस्ताक्षर की जरूरत होगी.

इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में अभी कुल विधायकों की संख्या के 10% ही मंत्री बनाए जा सकते हैं. अगर पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होता है, तो 15% विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है.

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तो क्या फिर चुनाव करवाने पड़ेंगे?

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाता है तो क्या फिर से चुनाव करवाने की जरूरत पड़ेगी. 

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एक्सपर्ट इससे इनकार करते हैं. संविधान विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी बताते हैं कि विधानसभा को भंग करना जरूरी नहीं होगा. सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण भी कहते हैं कि राज्य का दर्जा बहाल करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि विधानसभा का गठन हो चुका है.

राकेश द्विवेदी बताते हैं कि विधानसभा को भंग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. विधानसभा अपना काम करती रहेगी. संसद को बस संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून में बदलाव करना होगा. 

केंद्र सरकार का क्या है रुख?

पिछले साल 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को सही ठहराया था. हालांकि, कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाने और उसका पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश भी दिया था. 

तब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जितनी जल्दी हो सकेगा, उतनी जल्दी पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा.

केंद्र सरकार संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कह चुकी है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में 370 को खत्म करने की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला अस्थायी है. केंद्र ने कहा था कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर को जल्द ही राज्य बना दिया जाएगा.

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लोकसभा चुनाव के दौरान उधमपुर में चुनावी रैली में पीएम मोदी ने वादा किया था कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. यही बात उन्होंने सितंबर में डोडा में एक रैली में भी दोहराई. गृह मंत्री अमित शाह ने भी कई रैलियों में कहा कि चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस कर दिया जाएगा.

हाल ही में केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने भी कहा है कि सही समय आने पर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर विचार किया जाएगा. किशन रेड्डी जम्मू-कश्मीर चुनाव में बीजेपी के प्रभारी थे.

आगे क्या...?

जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की पूरी शक्ति केंद्र सरकार के पास है. केंद्र सरकार ही संसद में 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून को संशोधन कर पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर सकती है.

इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर एक नई याचिका दायर हो गई है. नई याचिका जहूर अहमद भट और खुर्शिद अहमद मलिक की ओर से दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश दिया था और इसे तय समय में हो जाना चाहिए था. इस याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच सुनवाई करने को राजी हो गई है.

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वहीं, कुछ दिन पहले भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी, जिसमें मांग की गई थी कि अदालत केंद्र सरकार को दो महीने के भीतर राज्य का दर्जा लौटाने का आदेश दे.

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