
जम्मू-कश्मीर के रियासी इलाके में टैररिस्ट्स ने श्रद्धालुओं को लेकर जा रही एक बस पर हमला कर दिया, जिसमें 10 मौतें हो चुकीं. लगभग महीनेभर पहले ही पहलगाम में भी एक टूरिस्ट बस पर आतंकी हमला हुआ. विपक्षी दल इन घटनाओं को लेकर सत्ता पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं. इस बीच एक संगठन ने आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेते हुए गैर-कश्मीरियों के लिए चेतावनी भी दे दी.हालांकि कश्मीर में आतंकवाद की सक्रियता बढ़ने के बाद भी कैजुअलिटी घटी है.
आतंकियों की भर्ती ज्यादा लेकिन पकड़ाई भी ज्यादा
अगस्त 2019 में धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ीं. कुछ सिक्योरिटी इंडिकेटर ये इशारा करते हैं, जैसे आतंकवादियों की नियुक्त बढ़ना. लेकिन यहां एक पेंच है. आतंकियों और ओवरग्राउंड वर्कर्स की गिरफ्तारियां भी बेहद तेजी से हो रही थीं. काउंटर-इनसर्जेंसी ऑपरेशन में अगस्त 2019 से लेकर जून 2023 के बीच लगभग ढाई सौ आतंकवादी और उनकी मदद करने वाले लोग पकड़े गए. ये साल 2015 से धारा 370 हटने तक हुए अरेस्ट से 71 गुना ज्यादा रहा.
डेकन हेराल्ड में छपी रिपोर्ट में आधिकारिक डेटा के हवाले से धारा 370 हटने से चार साल पहले और पोस्ट 370 सालों की तुलना है. इसके मुताबिक, टैरर रिक्रूटमेंट 13 प्रतिशत से सीधे 39 प्रतिशत बढ़ा. वहीं आठ ग्रेनेड और 13 आईईडी अटैक हुए. 370 लागू रहते हुए ये चार सालों में 4 ग्रेनेड और 7 आईईडी हमले हुए थे.
कम हो चुकी कैजुअलिटी
आतंकियों की नियुक्ति और हमले बढ़ते तो दिख रहे हैं लेकिन कैजुएलिटी में काफी कमी आई. सिक्योरिटी फोर्स और आम जनता दोनों के ही मारे जाने की घटनाएं कम हुईं. सिविलियन्स की बात करें तो धारा 370 के दौरान 11 नागरिक आतंकी हमलों में मारे गए थे. वहीं पोस्ट आर्टिकल 370 इसमें 63 प्रतिशत गिरावट आई. पुलिस और बाकी सुरक्षा बलों के हताहत होने में भी 13 फीसदी कमी आई.
स्टोन पेल्टिंग में 80 फीसदी कमी
पत्थरबाजी की घटनाएं जम्मू-कश्मीर में आम थीं. अक्सर सुरक्षाबलों से लेकर आम लोगों पर भी स्टोन पेल्टिंग हुआ करती. साल 2010 में 112 सिविलयन्स पत्थरबाजी के चलते मारे गए, जबकि 6 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए. इसमें भी 80 फीसदी गिरावट दर्ज की गई. चार सालों में केवल 19 स्टोन-पेल्टिंग की घटनाएं सामने आईं. यहां तक कि साल 2023 में लाल चौक से लेकर पूरे कश्मीर में पत्थरबाजी की कोई घटना संज्ञान में नहीं आई. खुद गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद 70% तक कम हो चुका है.
अब क्या नया हो रहा है
तीर्थयात्रियों की गाड़ियों पर हमले बढ़ते दिख रहे हैं. आतंकी ये अटैक पूरी प्लानिंग के साथ घात लगाकर कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा हताहत हों और डर पैदा हो सके.
इसी रविवार को रियासी पहाड़ी पर शिवखोड़ी गुफा से दर्शन करके लौट रहे तीर्थयात्रियों की बस पर आतंकियों ने हमला कर दिया जिसमें 10 मौतें हो चुकीं.
मई 2022 में वैष्णो देवी जा रहे तीर्थयात्रियों की बस में बम प्लांट कर दिया गया, जिसमें 4 मारे और 24 घायल हुए.
श्रद्धालुओं पर हमले की सबसे बड़ी घटना अगस्त 2000 में हुई थी, जब अमरनाथ यात्रा के पड़ाव पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, जिसमें 32 मौतें हुई थीं और 60 लोग गंभीर रूप से घायल थे.
कश्मीरियों और नॉन-कश्मीरियों के बीच दूरी बढ़ाने की साजिश
माना जा रहा है कि तीर्थयात्रियों पर हमला आतंकियों की सोची-समझी साजिश है. वे चुन-चुनकर उन बसों या वाहनों पर हमला कर रहे हैं जो तीर्थयात्रियों के हैं. इससे वे डर का माहौल तो बना ही रहे हैं, साथ ही केंद्र के इस दावे को भी झुठलाना चाह रहे हैं कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में टैरर की जगह टूरिज्म ने ले ली. उनकी कोशिश है कि कश्मीर में एक बार फिर नब्बे के दशक वाला माहौल लौट आए. कुछ समय से हो रहे हमले सुरक्षाबलों की बजाए नॉन-कश्मीरियों, खासकर श्रद्धालुओं और रोजगार के लिए कश्मीर पहुंचे लोगों पर ज्यादा दिखे. इससे ऐसा इंप्रेशन भी जाएगा कि कश्मीर के स्थानीय लोग ही बाहरियों पर हमले करते हैं. ये एक तरह से सद्भाव को खत्म करने की कोशिश जैसा भी हैं.
तो क्या स्थानीय कश्मीरी कर रहे हमला
रविवार को हुए हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान के आतंकी गुट द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली. लश्कर से जुड़े टैरर संगठन ने साथ में चेतावनी दी कि वो और सैलानियों और नॉन-लोकल्स को नुकसान पहुंचाएगा. नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने इसी जांच शुरू कर दी है. स्थानीय लोग इस संगठन के साथ ओवर ग्राउंड वर्कर की तरह जुड़े होते हैं, जिनका काम रेकी करना और जानकारी देना होता है. हमले का काम पाकिस्तान से ट्रेंड होकर आए आतंकी या चरमपंथी लोग ही करते आए हैं.
क्या है द रेजिस्टेंस फ्रंट का इतिहास
- टीआरएफ जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है. ये एक तरह से लश्कर-ए-तैयबा की ब्रांच है.
- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था.
- इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा.
- ये इसलिए बनाया गया ताकि भारत में होने वाले आतंकी हमलों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम न आए और वो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ब्लैक लिस्ट में आने से बच जाए.
कई और संगठन भी खड़े हो चुके
जम्मू-कश्मीर में टीआरएफ की तरह ही कई टैरर ग्रुप बन चुके. ऊपर से देखने पर ये ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे नए बने गुट हैं, जिनका कोई पिछला इतिहास नहीं. इन सबका मकसद एक ही है- कश्मीर के स्थानीय लोगों के लिए गैर-कश्मीरियों के मन में डर और गुस्सा पैदा करना. साथ ही आतंक से कश्मीर को अस्थिर बनाए रखना.
टीआरएफ के अलावा जम्मू कश्मीर गजनवी फोर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इनमें मुख्य हैं. सबकी फंडिंग अलग-अलग ग्लोबल टैररिस्ट गुट करते हैं. जैसे जम्मू कश्मीर गजनवी फोर्स को जैश-ए-मुहम्मद से फंडिंग मिलती है. ये सीधे आतंकी हमला करने की बजाए सोशल प्लेटफॉर्म पर नैरेटिव सेट करता और भड़काता है. कुछ का काम केवल ओवरग्राउंड वर्करों को जोड़ना है.
जाते हुए ये भी जानते चलें कि हमले पर विपक्ष ने क्या कहा. कांग्रेस लीडर मल्लिकार्जुन खड़गे ने तीर्थयात्रियों की बस पर आतंकी हमले पर सत्ता पर ही अटैक करते हुए आरोप लगाया कि कश्मीर में शांति का प्रचार पूरी तरह से खोखला साबित हुआ. राहुल गांधी ने भी इसे जम्मू-कश्मीर के चिंताजनक हालातों की असली तस्वीर बताया.