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कश्मीर में आतंकी हमलों का बदल रहा पैटर्न, कौन हैं हाइब्रिड मिलिटेंट, कैसे करते हैं काम?

बीते कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले एकदम से बढ़े. इसके अलावा सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में भी तेजी दिख रही है. इसी रविवार को लाल चौक में ग्रेनेड हमला हुआ, जिसमें 12 लोग घायल हुए. इन हमलों में एक खास पैटर्न है, जो पहले से काफी अलग है. नए दौर में ऐसे लोग आतंकवाद फैला रहे हैं, जिनका जुर्म का पिछला रिकॉर्ड नहीं.

पहचान छिपाने के लिए आतंकवादी नए तौर-तरीके अपना रहे हैं. (Photo- Getty Images) पहचान छिपाने के लिए आतंकवादी नए तौर-तरीके अपना रहे हैं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:44 AM IST

श्रीनगर के लाल चौक में रविवार को एक आतंकी हमला हुआ. संडे मार्केट पर हुए हमले में दुकानदारों और खरीदारों समेत 12 लोग जख्मी हैं. इससे एक रोज पहले खायनेर में आर्मी और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई थी. टैरर अटैक और मुठभेड़ की घटनाएं बीते कुछ ही समय में तेजी से बढ़ीं. अक्टूबर में हुए हमलों के बीच कई आतंकी समूहों का नाम आया. कश्मीर में इन दिनों कई छोटे-मोटे कई संगठन बन चुके, जो प्रतिरोध के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं. 

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पहले से अब में क्या फर्क आया

काम करने का इनका तरीका, आतंक के पुराने ढंग से एकदम अलग है. पहले हमलों का पैटर्न अलग हुआ करता था. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती हैं कि लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार से आतंकी आते और हमलों को अंजाम देते थे. वे आमतौर पर गुरिल्ला रणनीति से चुपचाप अटैक करते और वापस घाटी के घने जंगलों में गुम हो जाते. कई बार वे स्थानीय लोगों को मदद से जम्मू-कश्मीर के भीतर ही छिपे रहते और नेटवर्क बढ़ाते थे. चूंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और हमारे कश्मीर के लोगों के चेहरे-मोहरे और भाषा में खास अंतर नहीं, इससे वे आसानी से पकड़ में नहीं आते थे.

आतंकवादियों की नई पौध ज्यादा शातिर

अब इनकी जगह हाइब्रिड मिलिटेंट्स ने ले ली है. ये रैंडम कश्मीरी युवा होते हैं, जिनकी कोई क्रिमिनल हिस्ट्री नहीं होती. वे ऑनलाइन माध्यम से रेजिस्टेंस ग्रुप से जुड़ते हैं. उनकी ट्रेनिंग होती है, टागरेट तय होता है. इसके साथ रेकी की जाती है और फिर तय समय पर वारदात को अंजाम देने के साथ आतंकी गायब हो जाते हैं. चूंकि इनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता, लिहाजा उन्हें पकड़ना भी आसान नहीं. ये रैंडम लोग वापस अपने गांव-शहर जाकर आम जिंदगी में रम जाते हैं. इन्हें ही हाइब्रिड मिलिटेंट कहा जा रहा है. 

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अभी क्या हो रहा है

घाटी में कई टैररिस्ट गुट एक्टिव हो चुके हैं जिनके आगे-पीछे कोई नहीं दिखता. यानी वे हाल ही में बने और खुद को इंडिपेंडेंट बताते हैं. टीआरएफ, जम्मू कश्मीर गजवनी फोर्स, कश्मीर टाइगर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इन्हीं में से हैं. TRF का अस्तित्व धारा 370 हटाने के बाद आया. ये संगठन भी ऑनलाइन शुरू हुआ था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, छह महीने केवल ऑनलाइन एक्टिविटी के बाद संगठन कई दूसरे बड़े आतंकी गुटों के साथ मिला हुआ दिखा. वैसे ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी है, यानी उसे कवर करने का काम करता है.

क्या है द रेजिस्टेंस फ्रंट का इतिहास 

- टीआरएफ जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है. ये एक तरह से लश्कर-ए-तैयबा की ब्रांच है. 

- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था. 

- इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा. 

- ये इसलिए बनाया गया ताकि भारत में होने वाले आतंकी हमलों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम न आए और वो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ब्लैक लिस्ट में आने से बच जाए.

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कैसे काम करता ये समूह

पहले इन गुटों समेत मिलिटेंट्स भी अपने कामों का काफी हल्ला-गुल्ला करते. अब वे आम लोगों के बीच से होते हैं और घटना का अंजाम देकर वापस मेनस्ट्रीम हो जाते हैं. 

ऊपर से देखने पर ये ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे नए बने गुट हैं, जिनका कोई पिछला इतिहास नहीं. इन सबका मकसद एक ही है- कश्मीर के स्थानीय लोगों के लिए गैर-कश्मीरियों के मन में डर और गुस्सा पैदा करना. साथ ही आतंक से कश्मीर को अस्थिर बनाए रखना. टीआरएफ के अलावा जम्मू कश्मीर गजनवी फोर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इनमें मुख्य हैं. सबकी फंडिंग अलग-अलग ग्लोबल टैररिस्ट गुट करते हैं. जैसे जम्मू कश्मीर गजनवी फोर्स को जैश-ए-मुहम्मद से फंडिंग मिलती है. ये सीधे आतंकी हमला करने की बजाए सोशल प्लेटफॉर्म पर नैरेटिव सेट करता और भड़काता है. कुछ का काम केवल ओवरग्राउंड वर्करों को जोड़ना है.

सोशल मीडिया का अलग ढंग से इस्तेमाल

वैसे तो हाइब्रिड मिलिटेंट स्मार्ट फोन का इस्तेमाल नहीं करते लेकिन सोशल मीडिया पर अलग पहचान के साथ जरूर सक्रिय रहते हैं. इन्हीं के जरिए वे नैरेटिव सेट करते और अपना प्रचार-प्रसार करते हैं. इन्होंने शैडो वॉर चलाया हुआ है, जिसमें एक नैरेटिव पर काफी चर्चा होती रही- दे वर्सेज अस. चरमपंथियों के उकसावे में आ चुके लोग खुद को 'अस' और बाकी देश समेत सेना को 'दे; की श्रेणी में रखते जो कथित तौर पर उनके साथ नाइंसाफी कर रहे हैं. हालांकि ताजा हमलों में ये दिख रहा है कि आतंकी घात लगाकर आम लोगों पर हमले कर रहे हैं, खासकर नान-कश्मीरियों पर. इसका सीधा मतलब ये है कि वे लोगों के जरिए सत्ता को परेशान करना चाह रहे हैं. 

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दरार लाने की हो रही साजिश

आम नॉन-कश्मीरियों के अलावा तीर्थयात्रियों पर भी हमले बढ़े. आतंकी चुन-चुनकर उन बसों या वाहनों पर हमला कर रहे हैं जो तीर्थयात्रियों के हैं. इससे वे डर का माहौल तो बना ही रहे हैं, साथ ही केंद्र के इस दावे को भी झुठलाना चाह रहे हैं कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में टैरर की जगह टूरिज्म ने ले ली. इससे ऐसा इंप्रेशन भी जाएगा कि कश्मीर के स्थानीय लोग ही बाहरियों पर हमले करते हैं. ये एक तरह से सद्भाव को खत्म करने की कोशिश जैसा भी है.

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