
क्या हिंदू धर्म में होने वाली शादी में 'कन्यादान' जरूरी नहीं है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तो यही माना है. एक मामले पर फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदुओं में शादी संपन्न कराने के लिए कन्यादान जरूरी रस्म नहीं है.
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी संपन्न कराने के लिए सप्तपदी यानी सात फेरों की रस्म जरूरी है. इसमें कन्यादान को जरूरी नहीं माना गया है.
हाईकोर्ट ने ये फैसला आशुतोष यादव नाम के शख्स की याचिका पर सुनाया है. आशुतोष ने लखनऊ के एडिशनल सेशन जज की ओर से इस साल 6 मार्च को जारी आदेश को चुनौती दी थी. उन्होंने ट्रायल कोर्ट के सामने कहा था कि उनकी शादी के लिए 'कन्यादान' की रस्म जरूरी है, जो उनके मामले नहीं हुई थी.
ट्रायल कोर्ट में आशुतोष ने अपनी पत्नी और ससुर को गवाही देने के लिए बुलाने की मांग की थी ताकि वो आकर बता सकें कि कन्यादान हुआ था या नहीं. ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था.
हाईकोर्ट ने भी खारिज की याचिका
आशुतोष ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी शादी 27 फरवरी 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी. रीति-रिवाजों के हिसाब से कन्यादान जरूरी है. उसने मांग की थी कि उसकी शादी में कन्यादान हुआ या नहीं, इसका पता लगाने के लिए उसके ससुर को गवाही के लिए बुलाया जाए.
ट्रायल कोर्ट में अर्जी खारिज होने के बाद आशुतोष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने भी उनकी अपील को ठुकरा दिया है. आशुतोष ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत, गवाहों को गवाही के लिए समन जारी किया जाए.
हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि जिस बात को गवाहों को बुलाकर साबित करने की कोशिश की जा रही है, वो सही नहीं है.
हाईकोर्ट ने कहा, अदालत के पास सीआरपीसी की धारा 311 के तहत किसी भी गवाह को बुलाने का अधिकार है, लेकिन केवल वादी की अपील पर इस अधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है. इस अधिकार का इस्तेमाल तभी किया जाना चाहिए, जब किसी मामले के उचित फैसले के लिए गवाह को बुलाना जरूरी है.
अदालत ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 7 के तहत, हिंदू धर्म में शादी संपन्न करने के लिए 'सप्तपदी' यानी सात फेरे की रस्म ही जरूरी है. कन्यादान इसके लिए जरूरी नहीं है.
क्या कहता है कानून?
हिंदू धर्म के शादी और तलाक से जुड़े मामले 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट में आते हैं. इस कानून की धारा 5 में उन शर्तों का जिक्र है, जिसके तहत शादी को वैलिड माना जाता है.
सबसे जरूरी शर्त यही है कि शादी के वक्त लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए. दूसरी शर्त ये कि शादी के वक्त लड़का या लड़की में से कोई भी पहले से शादीशुदा नहीं होना चाहिए. दोनों की कोई रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए और दोनों सपिंड भी नहीं होने चाहिए.
इस कानून की धारा 7(2) के मुताबिक, हिंदू शादी को संपन्न तब माना जाएगा, जब सप्तपदी की रस्म पूरी हो जाएगी. यानी, सातवां फेरा होते ही शादी मान्य हो जाएगी.
तलाक को लेकर ये हैं नियम
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में तलाक का प्रावधान किया गया है. इसमें तलाक लेने के कुछ आधार बताए गए हैं.
इसके मुताबिक, अगर पति या पत्नी में से कोई भी एक अपनी मर्जी से किसी तीसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता हो तो इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है. इसके अलावा मानसिक या शारीरिक क्रूरता होती है या पति या पत्नी में से कोई एक मानसिक या संक्रामक यौन रोग से पीड़ित है तो भी तलाक लिया जा सकता है.
इतना ही नहीं, अगर पति या पत्नी में से कोई एक घर-परिवार छोड़कर संन्यास ले लेता है या फिर शादी के बाद पति को बलात्कार का दोषी पाया जाता है, तो भी तलाक मांगा जा सकता है.
सहमति से भी लिया जा सकता है तलाक
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक का जिक्र है. हालांकि, इस धारा के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए तभी आवेदन किया जा सकता है जब शादी को कम से कम एक साल हो गए हैं.
इसके अलावा, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए कम से कम 6 महीने का समय देता है और अगर फिर भी सुलह नहीं होती है तो तलाक हो जाता है.
हालांकि, पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ कर दिया था कि अगर पति-पत्नी के बीच रिश्ते इस कदर टूट चुके हैं कि ठीक होने की गुंजाइश न बची हो तो इस आधार पर वो तलाक की मंजूरी दे सकता है.