
जम्मू-कश्मीर में पिछले 72 घंटों में 3 आतंकी हमले हो चुके. रियासी, कठुआ और डोडा में हुए अटैक्स तीर्थयात्रियों से लेकर सेना तक पर हुए. फिलहाल सेना और पुलिस का जॉइंट ऑपरेशन चल रहा है, जिसमें कई आतंकी मारे भी गए. कुछ ही समय में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं, जिसे देखते हुए मामला ज्यादा ही गंभीर माना जा रहा है. इस बीच कई रिपोर्ट्स इशारा कर रही हैं कि घाटी में मिलिटेंट्स की नई पौध इंटरनेट की मदद से काम कर रही है, जो कि ज्यादा खतरनाक हो सकता है.
नब्बे के दशक में कैसे काम करते थे आतंकी
पहले हमलों का पैटर्न अलग हुआ करता था. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती हैं कि लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार से आतंकी आते और हमलों को अंजाम देते थे. वे आमतौर पर गुरिल्ला रणनीति से चुपचाप अटैक करते और वापस घाटी के घने जंगलों में गुम हो जाते. कई बार वे स्थानीय लोगों को मदद से जम्मू-कश्मीर के भीतर ही छिपे रहते और नेटवर्क बढ़ाते थे. चूंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और हमारे कश्मीर के लोगों के चेहरे-मोहरे और भाषा में खास अंतर नहीं, इससे वे आसानी से पकड़ में नहीं आते थे.
अब वर्चुअल टैरर गुट एक्टिव हैं
ये जमीन के अलावा इंटरनेट पर काम करते और युवाओं को टारगेट करते हैं. साल 2017 में ये ट्रेंड पहली बार पकड़ में आया था. नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने तब 79 ऐसे वॉट्सएप ग्रुप का पता लगाया था, जिसमें साढ़े 6 हजार के लगभग कॉन्टैक्ट जुड़े हुए थे. इनमें से ज्यादातर युवा कश्मीरी थी, जिन्हें आतंकी पत्थरबाजी या छुटपुट हमलों के लिए उकसाते थे. दिलचस्प बात ये थी कि हजार से ज्यादा नंबर इनमें पाकिस्तान और गल्फ के थे.
उसी समय एनडीटीवी ने एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें आधिकारिक हवालों से कहा गया कि 3 सौ वॉट्सएप ग्रुप कश्मीर में अस्थिरता लाने पर ही फोकस कर रहे हैं. याद दिला दें कि साल 2017 वो समय था, जब वैली में एक के बाद एक कई एंटी-टैरर ऑपरेशन चले थे.
क्या कहते हैं थिंक टैंक
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन इन्हें ई-मिलिटेंट कहता है, जो इंटरनेट का इस्तेमाल करना अच्छी तरह जानते हैं. इसी हुनर का उपयोग वे युवाओं को उकसाने और अपने साथ मिलाने के लिए करते हैं. इस बात का पहला बड़ा प्रमाण पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकवादी संगठन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद दिखा था. देखते ही देखते नेट पर कई समूह बन गए थे, जो बुरहान को शहीद बताते और खुद भी उस रास्ते पर चलने की बात करते थे. ये आतंकवाद को रोमांटिसाइज कर रहे थे ताकि ज्यादा से ज्यादा नई पीढ़ी उस तरफ आए.
यंग जेनरेशन को ओवर-ग्राउंड वर्कर (OGW) कहा गया, जो आतंकियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देते या फिर उनके लिए रेकी करते थे. ओआरअफ की मानें तो लोगों को चरमपंथी बनाकर उनकी मदद लेने के अलावा फॉरेन फंडिंग का काम भी साइबर मिलिटेंसी में हो रहा है.
अभी क्या हो रहा है
घाटी में कई टैररिस्ट गुट एक्टिव हो चुके हैं जिनके आगे-पीछे कोई नहीं दिखता. यानी वे हाल ही में बने और खुद को इंडिपेंडेंट बताते हैं. टीआरएफ, जम्मू कश्मीर गजवनी फोर्स, कश्मीर टाइगर्स और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट इन्हीं में से हैं. TRF का अस्तित्व धारा 370 हटाने के बाद आया. ये संगठन भी ऑनलाइन शुरू हुआ था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, छह महीने केवल ऑनलाइन एक्टिविटी के बाद संगठन कई दूसरे बड़े आतंकी गुटों के साथ मिला हुआ दिखा. वैसे ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी है, यानी उसे कवर करने का काम करता है.
ये सारे ही साइबर आतंकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे एक्स, टेलीग्राम और फेसबुक के जरिए नैरेटिन सेट करते और अपना प्रचार-प्रसार करते हैं. इन्होंने शैडो वॉर चलाया हुआ है, जिसमें एक नैरेटिन पर काफी चर्चा होती रही- दे वर्सेज अस. चरमपंथियों के उकसावे में आ चुके लोग खुद को अस और बाकी देश समेत सेना को दे की श्रेणी में रखते जो कथित तौर पर उनके साथ नाइंसाफी कर रहे हैं.
अक्सर लगती रही 4G सेवा पर रोक
कश्मीर में इंटरनेट का गलत इस्तेमाल कैसे होता है, इसकी मिसाल इससे मिल जाएगी कि खुद इस यूनियन टैरिटरी के प्रशासन ने घाटी में 4G इंटरनेट सर्विस का विरोध किया था. कोविड के दौरान फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स ने एक याचिका लगाई थी कि वैली में 4G इंटरनेट सर्विस बहाल कर दी जाए. तब स्थानीय प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए कहा था कि इससे फेक न्यूज और साइकोलॉजिकल वॉर बढ़ने का खतरा है.
दुनियाभर के आतंकी साइबर वर्ल्ड में एक्टिव
टैररिज्म की दुनिया में इंटरनेट का उपयोग केवल घाटी तक सीमित नहीं, ग्लोबल टैररिस्ट संगठन यही काम कर रहे हैं. ग्लोबल टेररिज्म डेटाबेस (GTD) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2012 से 2019 के बीच कई आतंकी गुटों ने खुद को फैलाने के लिए इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया. सबसे ज्यादा लोगों ने यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर को खंगाला. ट्रेंड आतंकवादी इसके जरिए लोगों की भर्तियां और छुटपुट फंड रेजिंग किया करते. धीरे-धीरे वे ज्यादा संगठित होते गए. इसमें जैश, अलकायदा, बोको हराम, हिजबुल्लाह से लेकर तालिबानी ताकतें भी शामिल रहीं.