
लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले चुनाव आयुक्त के दो पदों को भरने की कवायद तेज हो गई है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली एक सर्च कमेटी ने चुनाव आयोग में दोनों रिक्तियों को भरने के लिए पांच कैंडिडेट्स का एक पैनल तैयार करने के लिए बुधवार शाम को बैठक की. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन कमेटी दो कैंडिडेट्स के नामों को फाइनल करने के लिए आज दोपहर बैठक करेगी. चयन कमेटी की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू नियुक्ति पर अंतिम मुहर लगाएंगी. फिलहाल, अधिसूचना जारी होने के बाद नए कानून के तहत यह पहली नियुक्तियां होंगी. आइए जानते हैं नए कानून के तहत चुनाव आयुक्तों के चयन से लेकर नियुक्ति की प्रोसेस क्या है?
बता दें कि अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को रिटायर हो गए हैं. इस बीच, 8 मार्च को अरुण गोयल ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया है. जिसके बाद चुनाव आयुक्त (EC) के दोनों पद खाली हो गए हैं और अब इन पदों को भरने की कवायद की जा रही है. गोयल का इस्तीफा 9 मार्च को अधिसूचित किया गया था. चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) राजीव कुमार एकमात्र सदस्य रह गए हैं.
क्या होता है चुनाव आयोग, क्या होती है पावर?
संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग के बारे में जिक्र किया गया है. देश में केंद्रीय चुनाव आयोग है, फिर हर प्रदेश के लिए राज्य चुनाव आयोग होते हैं. इनमें भी एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है. चुनाव आयोग ही लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा से लेकर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए जिम्मेदार संस्था है. सबसे बड़ा अधिकारी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) होता है और उनके अंडर में चुनाव आयुक्त (EC) होते हैं. लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव का ऐलान होने के बाद आचार संहिता लागू होती है और फिर पूरे प्रशासनिक मशीनरी की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के हाथों में आ जाती है. ट्रांसफर से लेकर पोस्टिंग तक चुनाव आयोग के आदेश पर होती है. राज्य में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं.
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अनुच्छेद 324 में नियुक्तियों के लिए क्या प्रावधान?
CEC और EC की नियुक्ति (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 के प्रावधानों के तहत की जाती है. इस अधिनियम ने पुराने चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज का संचालन) अधिनियम 1991 की जगह ली है. संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड 2 में प्रावधान किया गया है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और उतने ही संख्या चुनाव आयुक्त (EC) होंगे, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकेंगे. अनुच्छेद 324 का खंड (5) कहता है कि संसद CEC और EC की सेवा और कार्यकाल की शर्तों को निर्धारित कर सकती है. चुनाव आयोग के पास पहले सिर्फ एक मुख्य चुनाव आयुक्त था, लेकिन वर्तमान में इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं. इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 साल की आयु, जो भी पहले हो तक होता है.
क्या होती है पूरी प्रोसेस
हाल ही में CEC और EC की नियुक्ति पर नया कानून लागू हुआ है. नया कानून के मुताबिक, सबसे पहले कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी होती है कि वो मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों को शॉर्ट लिस्ट करे. ये नाम वो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी के पास भेजेगा. चयन कमेटी के पास अधिकार हैं कि वो शॉर्ट लिस्ट उम्मीदवार या उससे अलग किसी अन्य कैंडिडेट के नाम की सिफारिश भी कर सकती है. चयन कमेटी अपनी सिफारिश के नाम को राष्ट्रपति के पास भेजेगी. उसके बाद राष्ट्रपति इस कैंडिडेट के नाम पर अंतिम मुहर लगाएंगे और नोटिफिकेशन जारी किया. बाद में नियुक्ति CEC या EC निर्वाचन आयोग में शपथ लेगा और अपने कामकाज को संभालेगा. चयन कमेटी की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता और पीएम की ओर से नामित केंद्रीय मंत्री सदस्य के रूप में शामिल होते हैं.
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पहले चयन कमेटी के पैनल में कौन था?
पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भी चयन कमेटी में शामिल थे. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से दिसंबर 2023 में नया कानून लाया गया है. इसके मुताबिक, सीजेआई की जगह पैनल में केंद्रीय मंत्री को रखा गया है. इससे पहले सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती थी और परंपरा के अनुसार, सबसे वरिष्ठ अधिकारी को CEC के रूप में नियुक्त किया जाता था.
नए कानून में और क्या-क्या है?
- यदि संसद के निचले सदन में कोई LoP नहीं है तो लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को LoP माना जाएगा.
- कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक सर्च कमेटी में चुनाव से संबंधित मामलों में ज्ञान और अनुभव रखने वाले सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे. नियुक्तियों के लिए चयन समिति द्वारा पांच उम्मीदवारों के पैनल पर विचार किया जाएगा.
- मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वेतन 2.50 लाख रुपये प्रति माह है, लेकिन सीईसी और ईसी अब कैबिनेट सचिव के बराबर हैं, ना कि सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर.
- वरीयता क्रम में सीईसी और ईसी को राज्य मंत्री से नीचे स्थान दिया जाएगा. चूंकि सीईसी और ईसी कैबिनेट सचिव के समकक्ष होंगे, ना कि सुप्रीम कोर्ट के जज के, इसलिए उन्हें नौकरशाह माना जा सकता है.
- मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति उन व्यक्तियों में से की जाएगी जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या रह चुके हैं और ईमानदार व्यक्ति होंगे, जिन्हें चुनाव के प्रबंधन और संचालन के अनुभव के बारे में जानकारी होगी.
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क्या है भारत के चुनाव आयोग का पूरा स्ट्रक्चर?
निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के प्रावधानों के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों (ECs) से मिलकर बनता है. राष्ट्रपति सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर करते/करती हैं. भारतीय निर्वाचन आयोग 1950 में गठित हुआ था. तब से लेकर 15 अक्टूबर, 1989 तक आयोग सिर्फ मुख्य निर्वाचन आयुक्त वाला एकल-सदस्यीय निकाय होता था. फिर 16 अक्टूबर, 1989 से 1 जनवरी, 1990 तक यह तीन-सदस्यीय निकाय रहा. इस दौरान आरवीएस शास्त्री मुख्य निर्वाचन आयुक्त, एसएस धनोवा और वीएस सहगल निर्वाचन आयुक्त के रूप में आयोग के तीन सदस्य रहे. 2 जनवरी, 1990 से 30 सितंबर, 1993 तक यह फिर एकल-सदस्यीय निकाय बन गया और एक बार फिर 1 अक्टूबर, 1993 से यह तीन-सदस्यीय निकाय बन गया. तब से भारत के निर्वाचन आयोग में सीईसी और 2 ईसी सहित तीन सदस्य होते हैं.
CEC और EC का कितना होता है कार्यकाल?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दोनों निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष के लिए होता है. सीईसी की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष और चुनाव आयुक्तों की 62 वर्ष होती है. चुनाव आयुक्त का पद और वेतनमान भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है. मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है. या फिर वह स्वयं अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं.
चुनाव आयोग में नियुक्ति में राजनीतिक दखल
- 16 अक्टूबर 1989 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब कानून में संशोधन किया गया और चुनाव आयुक्त के पद बनाए गए. ये सब आम चुनाव की घोषणा से कुछ समय ही हुआ. लिहाजा इसकी आलोचना हुई और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता करने का आरोप लगा.
- 2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने नियमों में फिर बदलाव किया और चुनाव आयोग को एक सदस्यीय संस्था बना दिया.
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- इसके बाद 1 अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने फिर नियम बदले और एमएस गिल और जीवीजी कृष्णमूर्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया. - इसी तरह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) कानून 1991 को अध्यादेश के जरिए संशोधित किया गया था. कानून का नाम भी बदल दिया गया था. इसके जरिए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को बराबरी का दर्जा दिया गया और रिटायरमेंट की उम्र 65 साल तय की गई.
- कांग्रेस सरकार के इस कदम को तब के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने सुप्रीम कोर्ट में ये दलील देते हुए चुनौती दी कि ये चुनाव आयोग की शक्तियों को कम करने की कोशिश है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस अर्जी को खारिज कर दिया था.
चुनाव आयोग को लेकर क्या विवाद?
- 2021 में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स और डेमोक्रेट्स ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि कैसे एक संस्था आज विश्वनीयता के संकट से जूझ रही है.
- 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग के कामकाज पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी चुनाव आयोग पर सवाल उठे थे क्योंकि बगैर कोविड प्रोटोकॉल का पालन किए धड़ल्ले से चुनावी रैलियां हो रही थीं.
- अप्रैल 2021 में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी ने चुनाव आयोग पर सख्त टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, कोरोना की दूसरी लहर के लिए एकमात्र जिम्मेदार चुनाव आयोग है. हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि इसके लिए चुनाव आयोग पर मर्डर का केस चलाना चाहिए. मई 2019 में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मीटिंग में हिस्सा लेना भी बंद कर दिया था.
नेता विपक्ष ने मांगी शॉर्ट लिस्ट किए गए कैंडिडेट्स की जानकारी
दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में लोकसभा में नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने विधायी विभाग के सचिव राजीव मणि को पत्र लिखा है और चुनाव आयुक्त के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की पूरी जानकारी, उनके बायोडेटा समेत भेजने के लिए कहा है. उन्होंने कहा, चुनाव आयुक्तों, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीआईसी) और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चुनाव प्रक्रिया का स्पष्टता से पालन होना चाहिए. चौधरी ने कहा, मैं आपसे मीटिंग से पहले पूरा ब्योरा उपलब्ध कराने का आग्रह करता हूं.
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