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दिमाग का ये हिस्सा सिकुड़ा होता है साइकोपैथ्स में, एक जीन भी मिसिंग, क्या जुर्म से पहले हो सकती है संभावित हत्यारे की पहचान?

कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के रेप और बर्बर हत्या से पूरा देश उबल रहा है. आरोपी का आपराधिक रिकॉर्ड रह चुका है. हाल ही में एक और मामला आया, जिसमें बरेली के साइकोपैथ ने 13 महीनों के भीतर कई महिलाओं की हत्या कर दी. शोध कहते हैं कि पूरी प्लानिंग के साथ मर्डर करने वाले ऐसे अपराधियों का ब्रेन स्ट्रक्चर अलग होता है.

क्रिमिनल माइंड अलग तरह से काम करता है. (Photo- Getty Images) क्रिमिनल माइंड अलग तरह से काम करता है. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 9:52 AM IST

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर की हत्या और रेप करने वाले आरोपी के बारे में बताया जा रहा है कि वो आदतन क्रिमिनल था, जो शराब पीकर मारपीट करने और पोर्न देखने का भी आदी था. इससे भी बर्बर केस बरेली से आया, जहां एक सीरियल किलर ने अधेड़ उम्र की कई महिलाओं की हत्या कर दी. इसमें कातिल का दिमाग आम लोगों या गुस्से में आकर एकाएक मर्डर कर देने वालों से अलग तरह से काम करता है. 

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साइंस के पास भी नहीं हैं सारे जवाब

साल 1928 में सबसे पहले क्रिमिनल माइंड शब्द लिखा गया. जर्नल ऑफ एबनॉर्मल एंड सोशल साइकोलॉजी में इसका जिक्र करते हुए लिखा गया कि क्रिमिनल माइंड लोग सबसे खतरनाक होते हैं. ये एक या दो इंसानों नहीं, पूरी की पूरी इंसानियत के लिए खतरा होते हैं. इस टर्म को आए लगभग 100 साल हो चुके, लेकिन अब भी ये बात न्यूरोसाइंटिस्ट्स से लेकर मनोवैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी हुई है. तमाम तरक्की के बाद भी साइंस इसपर उलझा हुआ है कि क्या आदतन हत्यारों को पहले से समझा जा सकता है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एकाध लक्षण को देखकर ये कतई पता नहीं लगता कि कौन आगे चलकर खूंखार हत्यारा बन सकता है. कई बार इंसान आवेग में आकर कुछ गलत कर जाता है. बाद में उसे छिपाने की कोशिश में और गलत करता जाता है. ये कोल्ड ब्लडेड मर्डर नहीं. ऐसे लोगों को पहचानने के लिए दिमाग के स्कैन के साथ साइकोलॉजिकल थ्योरीज को भी खंगाला गया. 

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ब्रेन का ये भाग अलग रहता है 

नब्बे की शुरुआत में न्यूरोक्रिमिनोलॉजिस्ट एड्रियन रायन अमेरिकी जेलों में कोल्ड-ब्लडेड मर्डर करने वालों पर स्टडी करने पहुंचे. शुरुआत कैलिफोर्निया से हुई. ये राज्य इस तरह की हत्याओं के लिए बदनाम था. 40 से ज्यादा कैदियों की पीईटी (पोजिट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी) हुई, ताकि दिमाग के भीतर बायोकेमिकल फंक्शन को समझा जा सके. स्कैन में दिखा कि हत्यारों के ब्रेन के कई हिस्से सिकुड़े हुए हैं. खासकर प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स. बता दें कि ये मस्तिष्क का वो भाग है, जो सेल्फ-कंट्रोल सिखाता है. कातिल दिमाग रखने वालों में यही प्री-फ्रंटल काफी छोटा दिख रहा था.

स्टडी सामने आने पर लोगों ने वैज्ञानिक की तारीफ करने की बजाए उसे पागल कहना शुरू कर दिया. काफी बाद में द अनाटॉमी ऑफ वायलेंस नाम से किताब आई, जिसमें डॉक्टर रायन ने क्रिमिनल्स के दिमाग पर अपने 35 साल के तजुर्बे को लिखा था. 

ब्रेन के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में ये सिकुड़न आती क्यों है

वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जो जेनेटिक भी हैं, और कई बार सिर पर गहरी चोट लगना भी कारण बनता है. बचपन में एब्यूज झेलने वालों के साथ भी ये हो सकता है. अक्सर देखा गया है कि मुश्किलों वाली जिंदगी जी चुके, खासकर रिश्तों में उलझन देख चुके लोग अलग दिमाग रखते हैं. हालांकि वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि जरूरी नहीं कि सिकड़े हुए कॉर्टेक्स वाले लोग क्रिमिनल ही हों.

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सामान्य इंसान और सीरियल किलर के दिमाग में कुछ अंतर हो सकते हैं जो उनके सोचने-समझने पर असर डालते हैं. हालांकि  जरूरी नहीं कि सभी आम लोगों या सभी सीरियल किलर्स का ब्रेन एक जैसा हो. 

ये हो सकता है फर्क

- सीरियल किलर्स के एमिगडाला का आकार सामान्य से छोटा या सिकुड़ा हुआ हो सकता है. इससे इमोशनल रिस्पॉन्स में कमी आ जाती है, या किलर केवल अपने बारे में ही सोच पाता है. 

- ब्रेन का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, जो सेल्फ कंट्रोल और नैतिकता सिखाता है, किलर के भीतर उसमें असामान्यता दिख सकती है.

- बचपन में मिले खराब व्यवहार की वजह से भी ब्रेन की संरचना पर असर पड़ता है, जो आगे चलकर हिंसक व्यवहार ला सकता है. 

कुछ साइकोलॉजिकल लक्षण भी हैं, जो ऐसे लोगों को अलग बनाते हैं. जैसे ये लोग आमतौर पर बुरी तरह से सेल्फ-ऑब्सेस्ड होते हैं. वे अपने अलावा किसी की चिंता नहीं करते. ऐसे लोगों आहत होने पर बाकायदा पूरी प्लानिंग के साथ कत्ल कर सकते हैं. इनमें गिल्ट भी नहीं होता. अमूनन किसी जुर्म के बाद अपराधी भी सहम जाते हैं, लेकिन कोल्ड ब्लडेड मर्डरर बड़ी शांति से अपराध कुबूल करता है.

हत्या करते हुए दिमाग में क्या चलता है? 

जब कोई गुस्से में आकर एकदम से ऐसा जुर्म करता है, तब उस मिनट उसे कोई डर नहीं होता. इसकी बजाए वो खुद को ताकतवर और कंट्रोल में महसूस करता है. उसके ब्रेन में हैप्पीनेस हार्मोन्स डोपामिन और एड्रेनेलिन बढ़ जाते हैं. ये उसे हत्या करने के लिए उकसाते हैं. लेकिन ये उफान थोड़ी ही देर में उतर जाता है. फिर इसकी जगह डर और शर्म ले लेते हैं.

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एक श्रेणी डिफेंसिव डिसमेंबरमेंट की है. ये गलती को छिपाने की कोशिश है, जो डरे हुए लोग करते हैं. इसमें अपराधी गुस्से में आकर गलत कर तो जाता है, लेकिन फिर डर से सबूत खत्म करने में जुट जाता है.

मिसिंग जीन भी कुछ हद तक जिम्मेदार 

एक खास जीन भी है, जिसका मिसिंग होना किसी भी आदमी को हत्यारा बना सकता है. इसे MAOA (मोनोअमीन ऑक्सीडेज ए) कहते हैं. ये न्यूरोट्रांसमीटर मॉलीक्यूल्स जैसे सेरेटोनिन और डोपामिन पर कंट्रोल रखता है. इनका सीधा ताल्लुक मूड, भावनाओं, नींद और भूख से है. अगर ये गड़बड़ाए तो इंसान के गड़बड़ाते देर नहीं लगती. ऐसे में अगर इनपर काबू करने वाला जीन ही गायब हो जाए या कम पड़ जाए तो नतीजा खतरनाक हो सकता है.

यही वजह है कि MAOA को वॉरियर जीन या सीरियल किलर जीन भी कहा गया. 

पुरुषों में ज्यादा है खतरा

इस मिसिंग जीन का खतरा भी पुरुषों को ज्यादा होता है, जबकि महिलाएं इसके लिए कैरियर का काम करती हैं, यानी एक से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने का. ज्यादातर मामलों में इस जीन की कमी परिवार के प्यार, अच्छे खानपान के बीच पता नहीं लग पाती. जिन घरों में माता-पिता एब्यूसिव रिश्ते में हों, जहां मारपीट या गाली गलौज हो, उन घरों के बच्चों में अगर ये जीन कम है, तो गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो जाता है. यही बच्चे बड़े होते-होते क्रिमिनल बिहैवियर दिखाने लगते हैं, और आगे चलकर हत्या भी कर सकते हैं.

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