
NCRB हर साल डेटा जारी करता है, जिसमें दिखाया जाता है कि देश में सबसे सुरक्षित और असुरक्षित शहर कौन-कौन से हैं. क्राइम इन इंडिया 2022 नाम से रिलीज हुई रिपोर्ट में देश के सभी 36 राज्यों और यूनियन टैरिटरी से डेटा लिया गया. इसमें ये देखा गया कि प्रति लाख आबादी पर कितने अपराध दर्ज हो रहे हैं. इसी में दिखा कि कोलकाता में हर एक लाख पर एक सैकड़ा से भी कम क्राइम हुए. ये वैसे अपराध थे, जिन्हें सीआरपीसी में गंभीर श्रेणी में रखा जाता है और गिरफ्तारी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होती. यानी पुलिस को फटाफट एक्शन लेना होता है.
क्या कहता है डेटा
क्राइम ब्यूरो के मुताबिक प्रति लाख में कोलकाता में 86.5 क्राइम ही दर्ज हुए. वहीं पुणे में 280, जबकि हैदराबाद में 299 अपराध हुए. ये रिपोर्टेड क्राइम हैं, जिनका लेखाजोखा पुलिस के पास है. कोलकाता के बारे में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला पैटर्न ये रहा कि वहां हो रहे इस तरह के अपराधों में लगातार कमी हो रही है. जैसे साल 2021 की तुलना में 2022 में करीब 16% की कमी आई.
महिला थानों की पर्याप्त संख्या
कोलकाता की तुलना 18 दूसरे बड़े शहरों से की गई, जिनकी आबादी 20 लाख से ज्यादा थी, और जहां हर तबके और धर्म के लोग रह रहे थे. कोलकाता के लगातार तीसरी बार सबसे सुरक्षित कहलाने के पीछे कुछ बेसिक कारण हैं. जैसे इस शहर में कुल 83 पुलिस स्टेशन हैं, जिनमें से 9 महिला थाने हैं. साइबर क्राइम को देखने-भालने के लिए भी दो थाने बने हुए हैं.
कोलकाता के सेफ होने के पीछे वहां की पारंपरिक सोच को भी वजह माना जाता है. इस शहर में परंपरा और आधुनिकता दोनों ही एक साथ हैं. साथ ही एडमिनिस्ट्रेशन भी काफी चौकस है. वो लगातार निगरानी रखता है कि कहीं कोई संगठित अपराध जैसे किसी तरह का माफिया तो बढ़ नहीं रहा. इसकी भनक भी लगते ही तुरंत कार्रवाई होती है. ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की कमी से बाकी अपराधों की दर भी अपने-आप कम हो जाती है.
पहले से ही विकसित हो चुका शहर
ये शहर अंग्रेजों के समय ही काफी विकसित रहा. यहां सड़कों से लेकर मेडिकल और स्कूल भी बने. इसे ब्रिटिशकाल में लंदन के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो मिलती थी. यहां तक कि सोसायटी का उच्चशिक्षित तबका यहां बसने लगा. इसका असर अब तक बाकी है. लोग आमतौर पर पढ़ने-लिखने से जुड़े रहते हैं और अपराध की तरफ कम जाते हैं.
एक कारण है बिजनेस
कई सदियों से यहां से व्यापार होता रहा. तटीय इलाकों से मसालों, कपड़ों के खेप दुनिया के कई देशों तक आती-जाती रही. व्यापारिक क्रेंद होने की वजह से भी यहां प्रशासन चुस्त रहा. वो किसी भी ऐसी बात को बढ़ने से रोकता, जिसका असर बिजनेस पर पड़े. अब भी कोलकाता से लेकर पूरे पश्चिम बंगाल में ही दुनियाभर के लोग अलग-अलग वजहों से आते हैं और ज्यादातर सुरक्षित महसूस करते हैं.
कम खर्च की वजह से भी क्राइम कम
कोलकाता दूसरे बड़े शहरों की तुलना में कम खर्चीला है. यहां रहने, खाने पर बहुत कम खर्च में भी ठीक इंतजाम हो जाता है. बाहर से आए लोग भी कम खर्च में जीवन चला पाते हैं. इसका सीधा असर क्राइम रेट पर दिखता है.
टैरर अटैक के बाद से मुंबई की इमेज बदली
अब बात करते हैं मुंबई की. इसे जागता हुआ शहर माना जाता था. यहां तक कि लड़कियों के लिए इसे सेफेस्ट शहर तक कहा गया. लेकिन सर्वे में इसकी रैंकिंग लगातार कम हो रही है. सेफ सिटी इंडेक्स (SCI) ने मुंबई को 60 शहरों में सुरक्षा के मामले में 50वें नंबर पर रखा. इसके लिए 70 से ज्यादा मानक रखे गए थे, जिनमें हेल्थ से लेकर पर्सनल सेफ्टी भी शामिल रही.
SCI का ये सर्वे हालांकि साल 2021 में रिलीज हुआ था, लेकिन इसमें सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि दिल्ली को भी सेफ्टी के मामले में मुंबई से ज्यादा नंबर मिले.
माना जा रहा है कि मुंबई टैरर अटैक के बाद से इंटरनेशनल स्तर पर इसे असुरक्षित देखा जाने लगा. इसका असर बाकी चीजों पर भी हुआ. वैसे लोकल सर्वे में ये बातें भी मायने रखती हैं कि ट्रांसपोर्ट कितना स्मूद है, या फिर सड़कें कितनी चौड़ी और खुली हुई हैं. मुंबई इस मामले में निचले पायदान पर सरक आता है.