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राम मंदिर के ध्वज पर दिखने जा रहे पेड़ की क्या है कहानी, बैंगनी फूलों वाला कोविदार क्यों है बेहद खास?

सोमवार 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इस बीच राम मंदिर पर लगाए जाने वाले ध्वज की चर्चा भी हो रही है. ध्वज पर सूर्य के साथ कोविदार वृक्ष बना हुआ होगा. कोविदार अयोध्या का राजवृक्ष था, जिसका जिक्र वाल्मीकि पुराण में भी है. माना जाता है कि ये दुनिया का पहला हाइब्रिड पेड़ है, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था.

प्राचीन अयोध्या में कोविदार वृक्ष का उल्लेख है. (Photo- Pixabay) प्राचीन अयोध्या में कोविदार वृक्ष का उल्लेख है. (Photo- Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 6:30 PM IST

हर देश के पास अपने संविधान के अलावा जो सबसे अहम चीज होती है, वो है उसका झंडा. नेशनल फ्लैग में हर चीज ऐसी होती है, जो देश की खासियत बताए. कुछ ऐसा ही अयोध्या काल में भी रहा होगा. उस दौर में अयोध्या का एक झंडा हुआ करता था. सूर्यवंशी कुल होने की वजह से उसपर सूर्य अंकित था. साथ ही कोविदार वृक्ष भी बना हुआ था. संभव है कि कुछ ऐसा ही ध्वज राम मंदिर पर भी फहरता दिखे. 

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हाल में कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि कोविदार और सूर्य अंकित ये ध्वज रीवा में तैयार हुआ है. इसके डिजाइन पर श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट के सदस्यों से अनुमति ली गई थी और लंबे समय से इसपर काम होता रहा. फिलहाल ये झंडा कैसा, किस आकार का और  साइज का होगा, ये साफ नहीं हो सका, लेकिन कोविदार पर बात होने लगी है.

रामायण कांड में नाम आता है

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महर्षि कश्यप ने कोविदार वृक्ष को बनाया था. वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है. जैसे राम के वन जाने के बाद भरत उन्हें मनाकर लौटाने के लिए निकलते हैं. वे लाव-लश्कर के साथ जंगल पहुंचे, जहां श्रीराम भारद्वाज मुनि के आश्रम में थे. शोर सुनकर लक्ष्मण को किसी सेना के हमले की आशंका हुई, लेकिन जब उन्होंने ऊंचाई पर जाकर देखा तो रथ पर लगे झंडे पर कोविदार पहचान गए. तब वे समझ गए कि अयोध्या से लोग आए हैं. 

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कुछ इस तरह का हो सकता है झंडा.

शोध पत्रिकाओं में भी नाम

वैज्ञानिकों के लिए बनी यूरोपियन सोशल नेटवर्किंग साइट 'रिसर्च गेट' में भी इसपर शोध छप चुका है.

'प्लांट एंड एनिमल डायवर्सिटी इन वाल्मीकि रामायण' नाम से प्रकाशित रिसर्च में राम के वन प्रवास के दौरान भी कई पेड़ों का जिक्र मिलता है. इसी में कोविदार का भी उल्लेख है. कोविदार कचनार की प्रजाति का वृक्ष होता है, जो श्रीराम के समय अयोध्या और आसपास के राज्यों में खूब मिलता था. इसकी सुंदरता और मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया. हालांकि कहीं ये साफ नहीं होता कि ध्वज को किसने डिजाइन किया होगा, या पेड़ उसमें कब आया होगा. 

ऋषि ने कैसे तैयार किया वृक्ष

अगर पौराणिक मान्यताओं को साइंस से जोड़ें तो कोविदार शायद दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट होगा. ऋषि कश्यप ने पारिजात के साथ मंदार को मिलाकर इसे तैयार किया था. दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास माने जाते हैं. इनके मेल से बना पेड़ भी जाहिर तौर पर उतना ही अलग था. 

रंग-रूप कैसा है

कोविदार का वैज्ञानिक नाम बॉहिनिया वैरिएगेटा है. ये कचनार की श्रेणी का है. संस्कृत में इसे कांचनार और कोविदर कहा जाता रहा. कोविदार की ऊंचाई 15 से 25 मीटर तक हो सकती है. ये घना और फूलदार होता है. इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, जो कचनार के फूलों से हल्के गहरे हैं. इसकी पत्तियां काफी अलग दिखती हैं, ये बीच से कटी हुई लगती हैं. इसके फूल, पत्तियों और शाखा से भी हल्की सुगंध आती रहती है, हालांकि ये गुलाब जितनी भड़कीली नहीं होती. 

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कहां मिलता है ये पेड़

कोविदार की प्रजाति के पेड़ जैसे कचनार अब भी हिमालय के दक्षिणी हिस्से, पूर्वी और दक्षिणी भारत में मिलते हैं. इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल की मानें तो कोविदार अब भी असम के दूर-दराज इलाकों में मिलता है. जनवरी से मार्च के बीच इसमें फूल आते हैं, जबकि मार्च से मई के बीच फल लगते हैं. 

इन बीमारियों में राहत

आयुर्वेद में इसके सत्व का उपयोग स्किन की बीमारियों और अल्सर में होता है. इसकी छाल का रस पेट की क्रॉनिक बीमारियां भी ठीक करने वाला माना जाता है. जड़ के बारे में कहा जाता है कि सांप के काटे का भी इससे इलाज हो सकता है. ये बातें फार्मा साइंस मॉनिटर के पहले इश्यू में बताई गई हैं.

इस बीच बता दें कि अयोध्या के राम मंदिर में गर्भगृह में स्थापित रामलला की तस्वीर सामने आ चुकी है. विधान के अनुसार अभी भगवान की आंखों पर पट्टी बांधी गई है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होगी, तब ये पट्टी खोली जाएगी. मंदिर में 23 जनवरी से आम लोग भी दर्शन कर सकेंगे.

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