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भूपेंद्र हुड्डा की जिद, कुमारी सैलजा की नाराजगी... हरियाणा में कांग्रेस की लुटिया कैसे डूबी?

एग्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस की वापसी और बीजेपी की विदाई का अनुमान लगाया गया था. मगर नतीजों में इसका उल्टा हुआ. कांग्रेस सत्ता से फिर दूर रह गई और बीजेपी ने पहली बार 48 सीटें जीतीं. मगर ये सब क्यों हुआ? आखिर कांग्रेस पर कौनसे दो बड़े फैक्टर हावी पड़ गए? जानते हैं...

हरियाणा में कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई. हरियाणा में कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 9:48 AM IST

हरियाणा के चुनावी नतीजों ने हैरान कर दिया. जीत की उम्मीद लगाकर बैठी कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई. वहीं, एग्जिट पोल में बीजेपी की विदाई का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उसने 48 सीटें जीत लीं. हरियाणा के चुनावी इतिहास में ये पहली बार है जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है.

कांग्रेस को हरियाणा से बहुत उम्मीद थी. यही वजह है कि नतीजों से पहले ही पार्टी में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर भी खींचतान शुरू हो गई थी. 

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अपनी जीत को लेकर कांग्रेस पूरी तरह कॉन्फिडेंट थी. शुरुआती रुझानों में तो कांग्रेस आगे निकल भी गई थी, लेकिन जब तस्वीर साफ होनी शुरू हुई तो बीजेपी ने बाजी मार ली. कांग्रेस की इस हार के कई फैक्टर्स पर बात हो रही है. लेकिन माना जा रहा है कि इस हार के दो बड़े फैक्टर हैं. पहला- भूपिंदर हुड्डा पर बहुत ज्यादा भरोसा. और दूसरा- कुमारी सैलजा की नाराजगी.

ब्रांड हुड्डा पर फोकस!

लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस 9 में से 8 उम्मीदवार भूपेंद्र हुड्डा की पसंद के थे. यही विधानसभा चुनाव भी दिखा. ऐसा लगा कि कांग्रेस का पूरा अभियान पिता-बेटे की जोड़ी- भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा के ईर्द-गिर्द ही रहा. कांग्रेस के 90 में से 72 उम्मीदवार हुड्डा परिवार के समर्थक थे.

भूपेंद्र हुड्डा दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं. कांग्रेस का बड़ा जाट चेहरा हैं. हुड्डा को आगे करके कांग्रेस ने जाटों को साधने की कोशिश की. क्योंकि हरियाणा के 58 साल के इतिहास में 33 मुख्यमंत्री जाट समुदाय से रहे हैं. हरियाणा में जाटों की आबादी 27 फीसदी के आसपास है और कम से कम 35 सीटों पर ये निर्णायक भूमिका में हैं. 72 समर्थकों को टिकट देकर कांग्रेस ने मैसेज देने की कोशिश की कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो हुड्डा राज की वापसी होगी.

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बीजेपी ने 'बापू-बेटी की पार्टी' का नारा दिया. इस पर कांग्रेस ने प्रतिक्रिया दी, जिस कारण जाट बनाम गैर-जाट का नैरेटिव सेट हो गया.

इतना ही नहीं, कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष उदय भान और कुमारी सैलजा के बीच तीखी बहस भी हुई. तब राहुल गांधी ने दखल देते हुए कहा कि ये सही जगह नहीं है. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने आपस में मामला सुलझाने की सलाह दी. 

इसलिए जब हुड्डा खेमे की रणदीप सुरजेवाला और कुमारी सैलजा के गुट से अनबन खुलकर सामने आई तो दरार और बढ़ गई. और फिर तीनों कभी एक मंच पर साथ नहीं दिखे.

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कुमारी सैलजा की नाराजगी

कुमारी सैलजा कांग्रेस का बड़ा दलित चेहरा हैं. भले ही कुमारी सैलजा का दलित समुदाय में उतना प्रभाव न हो, जितना हुड्डा का जाटों के बीच है. सैलजा खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार मान रही थीं. इसी साल सिरसा लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बनीं सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन कांग्रेस ने मना कर दिया. 

इसके बाद, सैलजा ने 30 से 35 समर्थकों के लिए टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने सिर्फ 9 समर्थकों को ही टिकट दिया. इसने सैलजा की नाराजगी को बढ़ा दिया.

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आग में घी डालने का काम एक कांग्रेस कार्यकर्ता की सैलजा पर अभद्र टिप्पणी ने कर दिया. इस कांग्रेस कार्यकर्ता को हुड्डा का करीबी बताया गया. बीजेपी ने इसे दलित अपमान से जोड़ने में जरा भी देर नहीं की. इतना ही नहीं, पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो कुमारी सैलजा को बीजेपी में आने तक का ऑफर दे दिया.

ये सब तब हुआ जब कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी दलित वोट मिलने की उम्मीद थी. इससे दलितों के बीच ये संदेश गया कि कांग्रेस ने अपने जाट नेताओं के आगे घुटने टेक दिए. 

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इसका नतीजा क्या हुआ?

कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पर भरोसा रखा. कांग्रेस को उम्मीद थी कि हुड्डा के बूते वो जाटों को लामबंद कर सकेगी. इसके साथ ही कांग्रेस ने जातिगत जनगणना की बात कहकर ओबीसी को भी साधने की कोशिश की. हालांकि, कांग्रेस को इन दोनों से ही कुछ खास चुनावी फायदा नहीं मिला.

हुड्डा हरियाणा में जाटों का बड़ा चेहरा हैं. जाटों की आबादी 27 फीसदी के आसपास है और वो कम से कम 35 सीटों पर निर्णायक की भूमिका में हैं. लेकिन इस बार जाट भी बीजेपी के साथ चले गए. जाट बेल्ट की ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास गई.

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जाटों के साथ-साथ दलितों का वोट भी बीजेपी को मिला. सैलजा की नाराजगी की वजह से दलित कांग्रेस से नाराज थे और बीजेपी के साथ चले गए. बीजेपी ने अनुसूचित जाति (एससी) के लिए रिजर्व 17 सीटों में से 8 पर जीत दर्ज की. जबकि, पिछले चुनाव में पांच ही सीटें जीती थीं.

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