Advertisement

ED और CBI चीफ चुनने में हाथ से लेकर कई बड़ी कमेटियों की सदस्यता, अपोजिशन लीडर के पास कितनी ताकत, क्यों 10 सालों से खाली पड़ा है पद?

लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने वाली कांग्रेस अब संसद में विपक्ष के नेता पद के लिए तैयार दिख रही है. राहुल गांधी इलेक्शन कैंपेन का सबसे खास चेहरा रहे, जिनके नाम पर चुनाव लड़ा गया. हो सकता है कि वही अपोजिशन लीडर (LoP) बनें. वैसे साल 2014 से पार्लियामेंट का ये बेहद दमदार पद खाली पड़ा हुआ है.

राहुल गांधी का नाम नेता प्रतिपक्ष के तौर पर लिया जा रहा है. राहुल गांधी का नाम नेता प्रतिपक्ष के तौर पर लिया जा रहा है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2024,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST

18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके, और भाजपा की अगुवाई में NDA नई सरकार बनाने को तैयार है. इसपर पिछले दो चुनावों की अपेक्षा विपक्ष भी काफी मजबूती से उभरा, भले ही वो सरकार बनाने लायक जादुई आंकड़ा नहीं छू सका. अब उम्मीद की जा रही है कि नई सरकार में अपोजिशन लीडर का ओहदा भी भर सकेगा जो साल 2014 से खाली पड़ा है. राहुल गांधी इसके सबसे स्ट्रॉन्ग दावेदार माने जा रहे हैं. 

Advertisement

सबसे पुरानी पार्टी के इस बार बढ़िया प्रदर्शन का श्रेय राहुल गांधी को देते हुए ज्यादातर नेता मांग कर रहे हैं कि वही लोकसभा में नेता विपक्ष बनें. जानिए, क्या है इस पद का मतलब, और क्यों विपक्ष होने के बाद भी पिछली दो लोकसभाओं से यह खाली पड़ा हुआ है. 

कितना अधिकार और सुविधाएं

लीडर ऑफ अपोजिशन एक कैबिनेट स्तर की पोस्ट है, जो काफी ताकतवर मानी जाती रही. शुरुआत में ये कोई औपचारिक पोस्ट नहीं थी. साल 1969 में अपोजिशन लीडर को आधिकारिक सहमति दी गई और उसके अधिकार तय हुए. इस पद पर बैठा नेता कैबिनेट मंत्री के बराबर वेतन, भत्ते और बाकी सुविधाओं का हकदार है. 

इन मजबूत एजेंसियों के लीडर चुनने में सहयोग

LoP केवल संसद में विपक्ष का चेहरा नहीं रहता, बल्कि कई अहम कमेटियों का वो सदस्य होता है. कमेटियां कई सेंट्रल एजेंसियों के प्रमुख को चुनने का काम करती हैं. जैसे ईडी, और सीबीआई. सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन और सेंट्रल विजिलेंस कमीशन के चीफ के चुनाव में भी अपोजिशन के लीडर का सहयोग रहता है. 

Advertisement

क्यों साल 2014 से नहीं है LoP

10 साल पहले हुए चुनाव में यूपीए को भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए से करारी शिकस्त मिली थी. वो लोकसभा में केवल 44 सीटों तक सिमटकर रह गई. नियम कहते हैं कि विपक्ष का नेता बनने के लिए किसी पार्टी के पास लोकसभा में 10 प्रतिशत सीटें होनी ही चाहिए. कांग्रेस को इसके लिए 54 सांसदों की जरूरत थी. यही कारण है कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि कांग्रेस भले ही विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन उसके पास इस पद को भरने लायक पूरी संख्या नहीं. 

पिछली लोकसभा में कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर रहा लेकिन अब भी वो 54 सीटों से पीछे ही रही. अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस के नेता बनाए गए लेकिन नेता प्रतिपक्ष तब भी कोई नहीं हो सका. इस चुनाव में अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट से हार गए. 

क्या राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनेंगे

ये कोई नहीं डिमांड नहीं. साल 2014 में भी कांग्रेसी नेताओं ने मांग की थी कि राहुल संसद में पार्टी का नेतृत्व करें. यही रिक्वेस्ट साल 2019 में भी की गई, लेकिन राहुल ने इनकार कर दिया. यहां तक कि पिछली हार के बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष की पोस्ट भी छोड़ दी, जो साल 2017 में उन्हें सोनिया गांधी से मिली थी. 

Advertisement

इस बार भी कांग्रेस विपक्ष में है, लेकिन मामला थोड़ा अलग है. उसे अकेले अपने बूते 99 सीटें मिल चुकी, जो कि दमदार विपक्ष है. यानी इस बार नेता प्रतिपक्ष बनना तय है. कांग्रेस लीडर्स लगातार राहुल को ये पद संभालने के लिए कह रहे हैं. सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर भी वे यह बात कर रहे हैं. विपक्षी नेता भी सोशल प्लेटफॉर्म पर ये बात कर चुके.  

अगर राहुल के नाम सहमति बन जाए और वे राजी हो जाएं तो वह विपक्ष के मेन लीडर के तौर पर सीधे पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल कर सकेंगे. इस भूमिका के दौरान उन्हें पीएम और लोकसभा स्पीकर के भी नियमित संपर्क में रहना होगा. मुख्य रूप से यह पद क्रिएटिव असहमति जताने का, और सत्ताधारी पार्टी को ट्रैक पर रखने का है. 

क्या हो अगर राहुल इनकार कर दें

राहुल गांधी अगर अपोजिशन लीडर बनने को तैयार न हों तो दूसरे नाम भी कतार में हैं. इनमें कांग्रेस लीडर शशि थरूर, मनीष तिवारी, केजी वेणुगोपाल और गौगव गोगोई जैसे नाम शामिल हैं. हालांकि खड़गे फिलहाल राज्यसभा के LoP हैं. साथ ही वेणुगोपाल भी दक्षिण से हैं. ऐसे में मुमकिन है कि दोनों ही जगहों पर एक क्षेत्र के लीडर रखने से बचा जाए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement