
लोकसभा चुनाव को कुछ ही वक्त बचा है. चुनाव कराने की जिम्मेदारी इलेक्शन कमीशन की है. वो देखता है कि सारे काम सही वक्त पर और सही ढंग से हों. लेकिन उसके अधिकारी थोड़े हैं, और बड़ी जिम्मेदारियां ही देख सकते हैं. ऐसे में राज्यों, जिलों और गांव-गांव तक इलेक्शन को देखने-भालने के लिए एक पूरी फौज चुनी जाती है. ये कर्मी अलग-अलग सरकारी विभागों से लिए जाते हैं.
मतदान दलों में पीठासीन अधिकारी और मतदान अधिकारी, सेक्टर और जोनल अधिकारी, माइक्रो-ऑब्जर्वर से लेकर इलेक्शन के दौरान इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों के चालक, कंडक्शन जैसे बहुत सारे लोग शामिल होते हैं. एक बार चुनाव में किसी की ड्यूटी लग जाए तो बगैर सूचना उसका गायब रहना गंभीर लापरवाही की श्रेणी में आता है.
किनकी ड्यूटी लगती है
इलेक्शन कमीशन इस काम के लिए सबकी ड्यूटी नहीं लगा देता. केवल उनकी ही ड्यूटी लगती है जो सेंटर या स्टेट के स्थाई कर्मचारी हों. अगर ज्यादा संख्या में जरूरत पड़े तो डेप्युटेशन पर रहते अधिकारियों को भी जिम्मा मिलता है. वोटिंग का काम संभालने में टीचर, इंजीनियर, क्लर्क, अकाउंटेंट, प्रशासनिक और सपोर्ट टीम शामिल हैं. सरकारी लैब और अस्पताल कर्मचारी भी ड्यूटी पर रहते हैं.
किनकी ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती
ऐसे कर्मचारी जो सरकारी संस्थानों में तो हैं, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट पर, या फिर दैनिक वेतनभोगी हों, उन्हें ये जिम्मा नहीं दिया जाता. सरकारी कर्मचारियों को जिम्मा मिलता है क्योंकि वे सरकार के कंट्रोल में रहते हैं. लोकसभा चुनाव आमतौर पर 45 से 90 दिन तक चल सकते हैं. इतने समय के लिए ये सरकारी कर्मचारी इलेक्शन कमीशन के लिए तैनात रहते हैं. अगर पति-पत्नी दोनों ही सरकारी काम करते हों, तो उनमें से एक बच्चों या बुजुर्ग पेरेंट्स की देखभाल के लिए ड्यूटी हटवाने की गुजारिश कर सकता है.
कितनी हो सकती है सजा
एक बार चुनाव में तैनाती होने के बाद अगर कोई भी अधिकारी या कर्मचारी बिना सूचना गायब हो जाए तो ये नॉन-कॉग्निजेबल क्राइम की श्रेणी में आता है. ऐसे शख्स पर चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है. अगर दोष साबित हो जाए तो 6 महीने की जेल भी हो सकती है. वैसे इसमें जमानत का प्रावधान भी है.
चुनाव में जरा भी भूलचूक की गुंजाइश न रहे, इसके लिए पक्के इंतजाम किए जाते हैं. यही वजह है कि अगर कोई अधिकारी अपनी इलेक्शन ड्यूटी में राहत पाना चाहे, तो उसे अपने से सीनियर अधिकारियों को वजह देनी होगी. छूट देने का अधिकार भी सिर्फ जिला निर्वाचन अधिकारी के पास रहता है, जो आमतौर पर कलेक्शन होता है. वो वैधता जांचने के बाद हामी देता है.
इन कारणों से रद्द करवा सकते हैं ड्यूटी
- अगर ड्यूटी लगने से पहले ही किसी ने फॉरेन ट्रिप की योजना बना रखी हो जिसकी तारीख उसी समय क्लैश हो रही हो तब यात्रा की टिकट और वीजा जैसे दस्तावेज देकर ड्यूटी रुकवाई जा सकती है.
- अगर कोई दिल की या किसी और गंभीर बीमारी से पीड़ित हो, जो चुनाव के दौरान दिक्कत दे सकते हों तो भी छूट मिल सकती है, लेकिन शर्त वही कि सारे दस्तावेज देने होंगे.
- कई बार एक ही कर्मचारी की दो जगहों पर ड्यूटी लग जाती है. ऐसे में भी एक जगह की ड्यूटी रद्द हो सकती है.
- अगर कोई कर्मचारी किसी राजनैतिक पार्टी से एक्टिव तौर पर जुड़ा हो तो उसकी मौजूदगी चुनाव पर असर डाल सकती है. ऐसी स्थिति में वो खुद अपने को ड्यूटी से हटवाने का आवेदन दे सकता है.
कैसे दे सकते हैं ड्यूटी अफसर वोट
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्शन कमीशन ने पोल ड्यूटी पर लगे लोगों के लिए खास सुविधा दी है. पोलिंग ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी दो तरीकों से वोट डाल सकते हैं. एक- पोस्टल बैलेट के जरिए और दूसरा- इलेक्शन ड्यूटी सर्टिफिकेट (EDC) की मदद से. EDC मिलने पर आपको उस पोलिंग बूथ पर जाना जरूरी नहीं, जहां नाम है, बल्कि अपनी कंस्टिट्यूएंसी में कहीं से भी वोट डाल सकते हैं.