Advertisement

लोकसभा चुनाव में 1.20 लाख करोड़ खर्च का अनुमान... इन 3 चीजों पर पानी की तरह पैसा बहाती हैं पार्टियां

भारत में चुनाव महंगे होते जा रहे हैं. अनुमान है कि 2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च हुआ होगा. इस बार इससे दोगुना खर्च होने का अनुमान है. ऐसे में जानते हैं कि बीते चुनावों में पार्टियों ने कितना और कहां-कहां खर्च किया?

लोकसभा का चुनाव दुनिया में सबसे महंगा चुनाव हो सकता है. लोकसभा का चुनाव दुनिया में सबसे महंगा चुनाव हो सकता है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 5:37 PM IST

आजाद भारत में जब पहला आम चुनाव हुआ था, तब चुनाव आयोग ने लगभग साढ़े 10 करोड़ रुपये का खर्च किया था. लेकिन अब चीजें बहुत बदल गई हैं. अब आम चुनाव कराने में हजारों-हजार करोड़ का खर्च आता है. ये तो सिर्फ चुनाव आयोग का खर्च है. लेकिन अगर इसमें राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च को भी जोड़ दिया जाए, तो ये बहुत ज्यादा हो जाता है.

Advertisement

दरअसल, चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार पानी की तरह पैसा बहाते हैं. चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के खर्च की तो एक लिमिट तय कर रखी है, लेकिन पार्टियों पर कोई पाबंदी नहीं है.

यही वजह है कि अब भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव दुनिया के सबसे महंगे चुनाव होते जा रहे हैं. बीते कुछ आम चुनावों में जितना खर्च हुआ है, वो कई देशों की जीडीपी के बराबर है. 

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का अनुमान है कि इस बार आम चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो ये दुनिया का अब तक का सबसे महंगा चुनाव होगा. 

इतना ही नहीं, हर पांच साल में चुनावी खर्च दोगुना होता जा रहा है. 2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. जबकि, इससे पहले 2014 में लगभग 30 हजार करोड़ के खर्च की बात कही जाती है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: इधर वोटिंग का मीटर UP, उधर प्राइस मीटर DOWN... समझिए पेट्रोल-डीजल का चुनावी कनेक्शन, क्या होता है फायदा?

कितना महंगा हो रहा है चुनाव?

चुनाव कराने का पूरा खर्च सरकारें उठाती हैं. अगर लोकसभा चुनाव हैं, तो सारा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी. विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकारें करती हैं. अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हैं तो फिर खर्च केंद्र और राज्य में बंट जाता है.

चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले आम चुनाव में 10.45 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. 2004 के चुनाव में पहली बार खर्च हजार करोड़ रुपये के पार पहुंचा. उस चुनाव में 1,016 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. 2009 में 1,115 करोड़ और 2014 में 3,870 करोड़ रुपये का खर्च आया था. 2019 के आंकड़े अभी तक सामने नहीं आए हैं.

हालांकि, माना जाता है कि 2019 में चुनाव आयोग ने पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया होगा.

 

पार्टियां कितना खर्च करती हैं?

एसोसिएशन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियों ने 6,405 करोड़ रुपये का फंड जुटाया था. और इसमें 2,591 करोड़ रुपये खर्च किए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, सात राष्ट्रीय पार्टियों ने बीते चुनाव में 5,544 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा किया था. इसमें से अकेले बीजेपी को 4,057 करोड़ रुपये मिले थे. कांग्रेस को 1,167 करोड़ रुपये का फंड मिला था.

Advertisement

2019 में बीजेपी ने 1,142 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि, कांग्रेस ने 626 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया था. 

2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं. इस हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी को एक सीट औसतन पौने चार करोड़ रुपये में पड़ी थी. कांग्रेस 52 सीट ही जीत सकी थी. लिहाजा, एक सीट जीतने पर उसका औसतन 12 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुआ था.

यह भी पढ़ें: कहीं टिकट बेचकर, कहीं कॉर्पोरेट से... दुनियाभर में ऐसे चंदा जुटाती हैं राजनीतिक पार्टियां, जानें- भारत से कितना अलग है सिस्टम

कहां खर्च होता है ये सारा पैसा?

चुनाव आयोग ये सारा पैसा चुनावी प्रक्रिया पर करती है. चुनाव के दौरान ईवीएम खरीदने, सुरक्षाबलों की तैनाती करने और चुनावी सामग्री खरीदने जैसी चीजों पर पैसा खर्च होता है. पिछले साल कानून मंत्रालय ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त फंड मांगा था.

चुनाव आयोग के अलावा राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार अच्छा-खासा खर्च करती हैं. चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार के लिए 95 लाख रुपये की सीमा तय कर रखी है. यानी, एक उम्मीदवार चुनाव प्रचार पर 95 लाख रुपये से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता. लेकिन राजनीतिक पार्टियों के खर्च की कोई सीमा नहीं है.

Advertisement

राजनीतिक पार्टियों का सबसे ज्यादा खर्च तीन चीजों पर होता है. पहला- पब्लिसिटी. दूसरा- उम्मीदवारों पर. और तीसरा- ट्रैवलिंग पर.

चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों के स्टार प्रचारक दिनभर में ही कई-कई रैलियां करते हैं. इसके लिए हेलिकॉप्टर सर्विस का इस्तेमाल किया जाता है. 2019 में अकेले बीजेपी ने ही ट्रैवलिंग पर लगभग ढाई सौ करोड़ रुपये खर्च किए थे.

पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों ने लगभग 1,500 करोड़ रुपये पब्लिसिटी पर किए थे. इनमें से सात राष्ट्रीय पार्टियों ने 1,223 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च था. पब्लिसिटी पर सबसे ज्यादा खर्च बीजेपी और कांग्रेस ने किया था. बीजेपी ने 650 करोड़ तो कांग्रेस ने 476 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च किया था.

इस बार कितना खर्च होगा?

अनुमान है कि इस साल चुनाव में 1.20 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसमें से सिर्फ 20% ही चुनाव आयोग का खर्च होगा. बाकी सारा खर्चा राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार करेंगी.

ये खर्च कितना ज्यादा है, इसे इस तरह समझ सकते हैं कि सरकार 80 करोड़ गरीबों को लगभग 8 महीने तक फ्री राशन बांट सकती है. केंद्र सरकार की ओर से अभी हर महीने 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज दिया जाता है. इस पर हर तीन महीने में लगभग 46 हजार करोड़ रुपये का खर्च आता है. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement