
ओम बिरला एक बार फिर लोकसभा के स्पीकर बन गए हैं. ये पांचवीं बार है जब किसी लोकसभा स्पीकर को दोबारा चुना गया है. ओम बिरला राजस्थान की कोटा सीट से सांसद हैं. इस बार लोकसभा स्पीकर का चुनाव दिलचस्प रहा, क्योंकि ऐन वक्त पर विपक्षी INDIA ब्लॉक ने के. सुरेश को लोकसभा स्पीकर के चुनाव में उतार दिया. हालांकि, ओम बिरला को ध्वनिमत से चुन लिया गया.
लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. ओम बिरला तो लोकसभा स्पीकर बन गए हैं. लेकिन डिप्टी स्पीकर कौन होगा? इसका फैसला होना अभी बाकी है.
विपक्षी INDIA ब्लॉक डिप्टी स्पीकर की मांग पर अड़ा हुआ है. लेकिन एनडीए सरकार डिप्टी स्पीकर का पद बगैर चुनाव के विपक्ष को देना नहीं चाहती. यही वजह है कि विपक्ष ने स्पीकर चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा था. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि हमारा विरोध प्रतीकात्मक और लोकतांत्रिक था, क्योंकि वो (एनडीए) हमें डिप्टी स्पीकर का पद नहीं दे रहे थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा की सांसद महुआ माझी ने भी कहा कि अगर सरकार डिप्टी स्पीकर का पद देने पर राजी हो जाती तो स्पीकर के लिए चुनाव नहीं कराना पड़ता.
कांग्रेस सांसद और अब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी कहा था कि विपक्ष स्पीकर के लिए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करने को तैयार है, अगर सरकार विपक्ष का पद हमें दे दे.
आमतौर पर लोकसभा स्पीकर का पद सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन के पास होता है, जबकि डिप्टी स्पीकर का विपक्ष को मिलता है. 1990 से लेकर 2014 तक डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास ही था. 2014 से 2019 तक ये पद सत्तारूढ़ गठबंधन के पास रहा. जबकि, 2019 से 2024 तक डिप्टी स्पीकर का पद खाली ही रहा.
क्या डिप्टी स्पीकर का पद जरूरी है?
अगर स्पीकर का पद खाली है तो संविधान के अनुच्छेद 95(1) के तहत डिप्टी स्पीकर सदन की अध्यक्षता करते हैं. स्पीकर की गैर-मौजूदगी में सदन की अध्यक्षता संभालते वक्त डिप्टी स्पीकर के पास वही सारे पावर होते हैं, जो स्पीकर के पास होते हैं.
अनुच्छेद 93 कहता है कि सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को जितनी जल्दी हो सके, नियुक्त किया जाना चाहिए.
हालांकि, इसके लिए कोई समयसीमा तय नहीं है. यही कारण है कि स्पीकर की नियुक्ति तो हो जाती है, लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद खाली बना रहता है.
क्या विपक्ष को ही मिलता है डिप्टी स्पीकर का पद?
जरूरी नहीं है. 1952 से 1969 तक पहले चार डिप्टी स्पीकर कांग्रेस से थे. और उस वक्त केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी.
1969 से 1977 तक जीजी स्वेल डिप्टी स्पीकर रहे थे. जीजी स्वेल ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस के सांसद थे. लोकसभा में ये पार्टी तब विपक्ष में थी. 1997 से 1979 तक जनता पार्टी की सरकार में डिप्टी स्पीकर का पद कांग्रेस के पास रहा.
1980 से 1984 में इंदिरा गांधी की सरकार में द्रमुक सांसद जी लक्ष्मणन डिप्टी स्पीकर थे. वहीं, 1985 से 1989 तक अन्नाद्रमुक के एम. थंबीदुरई डिप्टी स्पीकर रहे थे. इंदिरा गांधी के समय द्रमुक और राजीव गांधी के वक्त अन्नाद्रमुक सरकार में शामिल थी.
1990 से लेकर 2014 तक हर बार डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास रहा. 2014 में जब केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनी तो अन्नाद्रमुक सांसद एम. थंबीदुरई को डिप्टी स्पीकर बनाया गया. तब अन्नाद्रमुक एनडीए का हिस्सा थी.
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विपक्ष क्यों मांग रहा डिप्टी स्पीकर का पद?
डिप्टी स्पीकर भी उतना ही अहम है, जितना कि स्पीकर. संविधान का अनुच्छेद 95 कहता है कि डिप्टी स्पीकर, स्पीकर का काम तब संभालता है जब वो पद खाली हो गया हो या फिर वो गैरमौजूद हों.
अगर डिप्टी स्पीकर का पद खाली है और स्पीकर भी मौजूद नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त लोकसभा सांसद सदन की कार्यवाही संभालता है. संविधान ने डिप्टी स्पीकर को भी वही शक्तियां दी हैं, जो स्पीकर को दी है.
विपक्ष डिप्टी स्पीकर का पद इसलिए भी चाहता है, क्योंकि अब वो पिछले दो चुनावों की तुलना में ज्यादा मजबूत और एकजुट है. 2014 और 2019 के चुनाव में विपक्ष कमजोर था, लेकिन 2024 में विपक्ष के पास लगभग 250 सीटें हैं. पिछली बार डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहा था और विपक्ष की मांग के बावजूद इसे भरा नहीं गया. अब डिप्टी स्पीकर का पद लेकर विपक्ष अपनी मजबूती और एकजुटता का संदेश देना चाहता है.
डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष इसलिए भी मांग रहा है ताकि चुनाव की नौबत न आए. अगर चुनाव की नौबत आती है तो यहां नंबर एनडीए के पास हैं. ऐसी स्थिति में डिप्टी स्पीकर का चुनाव भी महज औपचारिकता बनकर रह जाएगा. इसलिए विपक्ष चाहता है कि सरकार खुद ही उसकी मांग मानकर डिप्टी स्पीकर का पद दे दे.
डिप्टी स्पीकर का पद कितना अहम?
स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद काफी अहम होता है. ये दोनों संसद के प्रमुख व्यक्ति होते हैं. वैसे तो स्पीकर ही सदन का सर्वेसर्वा होता है, लेकिन उनकी गैरमौजूदगी में सारी पावर डिप्टी स्पीकर के पास होती है.
अगर स्पीकर अपने पद से हटना चाहते हैं तो उन्हें अपना इस्तीफा डिप्टी स्पीकर को सौंपना होता है. इसी तरह अगर डिप्टी स्पीकर पद छोड़ना चाहते हैं तो वो अपना इस्तीफा स्पीकर को सौंपते हैं. अगर डिप्टी स्पीकर का पद खाली है तो फिर स्पीकर अपना इस्तीफा लोकसभा महासचिव को देते हैं.
इस्तीफे को लेकर संविधान सभा में बहस हुई थी. 1949 में केवी कामथ ने सवाल उठाया था कि स्पीकर को अपना इस्तीफा डिप्टी स्पीकर की बजाय राष्ट्रपति को सौंपना चाहिए. हालांकि, तब डॉ. आंबेडकर ने तर्क देते हुए कहा था कि कोई भी व्यक्ति अपना इस्तीफा उसे ही देता है, जिसने उसे नियुक्त किया है. इसलिए स्पीकर अपना इस्तीफा डिप्टी स्पीकर को देंगे और डिप्टी स्पीकर अपना इस्तीफा स्पीकर को सौंपेंगे.
इसके अलावा, अगर किसी विषय पर वोटिंग होती है और दोनों पक्षों के वोट बराबर होते हैं तो ऐसी स्थिति में स्पीकर की तरह ही डिसाइडिंग वोट का अधिकार भी डिप्टी स्पीकर के पास होता है.
कब होगा डिप्टी स्पीकर का चुनाव?
कोई समय सीमा नहीं है. लोकसभा स्पीकर के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति तय करते हैं. जबकि, डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख स्पीकर की ओर से तय की जाती है.
12वीं लोकसभा में पीएम सईद ने स्पीकर के चुनाव के 270वें दिन अपना पद संभाला था. इससे पहले 11वीं लोकसभा में सूरज भान 52 दिन के भीतर डिप्टी स्पीकर चुन लिए गए थे. 2014 में एम थंबीदुरई को 71वें दिन डिप्टी स्पीकर चुना गया था.
डिप्टी स्पीकर का चुनाव भी स्पीकर की तरह ही होता है. अगर एक ही उम्मीदवार है तो सदन में उसका प्रस्ताव रखा जाता है और पास किया जाता है. अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार हैं तो फिर वोटिंग करवाई जाती है. लोकसभा का सदस्य ही स्पीकर या डिप्टी स्पीकर बन सकता है. दोनों का ही कार्यकाल पांच साल के लिए होता है.