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जंगी जहाज चलाने वाले माउंटबेटन की समंदर में ही हुई थी हत्या... एक धमाका और 15 मिनट का वो राज

भारत के आखिरी वायसराय और ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य लॉर्ड माउंटबेटन की हत्या 27 अगस्त 1979 को कर दी गई थी. जब उनकी हत्या हुई थी, तब वो एक नाव में सवार थे. मिनटों में ही पूरा जहाज उड़ गया था और तुरंत ही माउंटबेटन की मौत हो गई थी. लेकिन उनकी हत्या के 45 साल बाद भी कुछ राज अब भी अनसुलझे हैं.

माउंटबेटन भारत के आखिरी वायसराय थे. (फाइल फोटो) माउंटबेटन भारत के आखिरी वायसराय थे. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 2:36 PM IST

'आखिर कौन एक बूढ़े आदमी को मारना चाहेगा?' लॉर्ड माउंटबेटन ने जब ये बातें कही थीं, तब उन्हें शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि कोई है जो उनकी हत्या की साजिश रच रहा है. माउंटबेटन को बार-बार जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सुरक्षा नहीं ली. नतीजा ये हुआ कि 1979 की 27 अगस्त को उनकी हत्या कर दी गई थी. बीच समंदर में उनकी नाव को उड़ा दिया गया था. तब एक चश्मदीद ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था, 'एक मिनट पहले वहां पर नाव थी और अगले मिनट ऐसा लग रहा था जैसे पानी पर माचिस की बहुत सारी तीलियां तैर रही हों.'

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'माउंटबेटनः देयर लाइव्स एंड लव्स' के लेखक एंड्र्यू लोनी ने बीबीसी को बताया था कि पचास पाउंड जेलिग्नाइट फट गया था. इससे लकड़ी, मेटल, कुशन, लाइफजैकेट, जूते और सबकुछ हवा में उड़ गया था. चंद सेकंड में ही वहां सन्नाटा छा गया.

उनकी हत्या प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) ने की थी. रिपब्लिकन आर्मी उत्तरी आयरलैंड से ब्रिटिश सेना को खदेड़ने के लिए बनी थी.

नेवी अफसर से भारत के आखिरी वायसराय तक

जब माउंटबेटन की हत्या की गई, तब उनकी उम्र 79 साल हो चुकी थी और उत्तरी आयरलैंड में ब्रिटिश सेना में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. लेकिन माउंटबेटन एक प्रभावशाली व्यक्ति थे. वो भारत के आखिरी वायसराय थे. उनकी देखरेख में ही भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. 

माउंटबेटन की पहचान सिर्फ इतनी ही नहीं थी. माउंटबेटन क्वीन विक्टोरिया के परपोते थे. ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ II के चचेरे भाई थे. पहले विश्व युद्ध के दौरान उनके पिता ने परिवार का नाम बैटनबर्ग से बदलकर माउंटबेटन रख लिया. इस तरह से उनका नाम लॉर्ड लुईस माउंटबेटन पड़ा.

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पहले और दूसरे विश्व युद्ध में माउंटबेटन की अहम भूमिका रही. उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां सौंपी गईं. कहा जाता है कि सितंबर 1945 में माउंटबेटन ने ही जापान को सरेंडर करने के लिए मनाया था. साल 1947 में जब क्लेमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने आखिरी वायसराय के तौर पर माउंटबेटन को भारत भेजा. उन्हें मार्च 1947 में भारत का आखिरी वायसराय बनाया गया. भारत की आजादी और बंटवारे की सारी जिम्मेदारी माउंटबेटन पर ही थी. आजादी के बाद उन्हें भारत का अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया.

भारत से जाने के बाद माउंटबेटन ब्रिटिश नौसेना में वापस चले गए. 1965 में माउंटबेटन रिटायर हुए. 1916 में माउंटबेटन ब्रिटेन की रॉयल नेवी से करियर शुरू किया था. रिटायरमेंट के बाद माउंटबेटन अक्सर अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने आयरलैंड जाया करते थे.

(फाइल फोटो- Getty Images)

... वो मनहूस सुबह

1979 में 27 अगस्त को सोमवार का दिन था. माउंटबेटन उस दिन उत्तर-पश्चिम आयरलैंड के मुल्लघमोर बंदरगाह में एक जहाज पर सवार थे. माउंटबेटन जिस नाव में सवार थे, उसका नाम 'शैडो वी' था.

माउंटबेटन अपने जिस शैडो जहाज में सवार थे, उसमें उनके साथ उनकी बेटी पैट्रिशिया, उनके पति लॉर्ड जॉन ब्रेबॉर्न, उनके 14 साल के जुड़वा बेटे- टिमोथी और निकोलस और लॉर्ड ब्रेबॉर्न की मां डोरेन ब्रेबॉर्न भी थीं. इसी में 15 साल का पॉल मैक्सवेल भी था, जो उस जहाज में ही काम करता था. माउंटबेटन, निकोलस और मैक्सवेल की तुरंत मौत हो गई. अगले दिन डोरेन ब्रेबॉर्न की भी मौत हो गई. बाकी लोग इस धमाके में बच गए.

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आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के लिए माउंटबेटन एक आसान टारगेट थे. माउंटबेटन शाही परिवार के सम्मानित सदस्यों में से एक थे. रिपब्लिकन आर्मी को उम्मीद थी कि उनकी हत्या कर वो ब्रिटेन को अपनी सेना वापस बुलाने के लिए राजी कर लेगा. साथ ही उत्तरी आयरलैंड को आयरिश रिपब्लिक में शामिल भी कर लेगा. इसी उम्मीद से 27 अगस्त से पहले की रात को उनकी नाव में बम रख दिया गया.

15 मिनट बाद उड़ा दिया जहाज

27 अगस्त की सुबह ठीक साढ़े 11 बजे माउंटबेटन का जहाज वहां से निकला. उनके जहाज पर दूरबीन से रिपब्लिकन आर्मी के दो लड़ाके भी नजर गड़ाए हुए थे.

ठीक 11 बजकर 45 मिनट पर जैसे ही उनकी नाव लॉबस्टर पॉट्स के पास पहुंची, रिपब्लिकन आर्मी के लड़ाकों ने बटन दबाया, जिससे बम एक्टिव हो गया. बटन दबाते ही पचास पाउंड जेलिग्नाइट में विस्फोट हो गया. धमाके में माउंटबेटन, निकोलस और पॉल मैक्सवेल की तुरंत मौत हो गई. माउंटबेटन के पैर लगभग कट गए थे, उनके कपड़े फट चुके थे और थोड़ी देर बाद उनकी मौत हो गई.

माउंटबेटन का अंतिम संस्कार 5 सितंबर को वेस्टमिंस्टर एब्बी में किया गया. इस दौरान क्वीन एलिजाबेथ II समेत 1400 से ज्यादा लोग मौजूद थे. 

(फाइल फोटो- Getty Images)

हत्या की गुत्थी अब भी अनसुलझी?

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1960 के दशक की शुरुआत से ही माउंटबेटन IRA के निशाने पर थे. उन्हें बार-बार जान से मारने की धमकियां भी दी जा रही थीं. 1978 में भी उनकी जान लेने की नाकाम कोशिश हुई थी. तब एक स्नाइपर से उनपर गोली चली थी, जिससे माउंटबेटन बच गए थे.

मार्च 1979 में आयरिश नेशनल लिब्रेशन आर्मी ने उत्तरी आयरलैंड के शैडो सेक्रेटरी ऐरी नीव की हत्या कर दी थी. तब भी चेतावनी दी थी कि शाही परिवार के किसी सदस्य की हत्या की साजिश रची जा रही है. इसके बाद माउंटबेटन को उस साल उत्तरी आयरलैंड न जाने की सलाह दी गई थी, जिसे उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था.

माउंटबेटन के जहाज 'शैडो वी' की अक्सर सुरक्षा जांच की जाती थी और निगरानी रखी जाती थी. हालांकि, उनकी मौत से कुछ दिन पहले ही सुरक्षा हटा ली गई थी. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 1979 में ही एक पूर्व सैनिक ग्राहम युइल ने दावा किया था कि उन्होंने शैडो वी जहाज के पास IRA के कुछ लड़ाकों को देखा था. लेकिन ग्राहम युइल के इस दावे को भी नजरअंदाज कर दिया गया और उन्हें हॉन्गकॉन्ग भेज दिया था.  

अब भी इस बात पर सवाल उठते हैं कि अलर्ट और इंटेलिजेंस के बावजूद माउंटबेटन की सुरक्षा क्यों नहीं बढ़ाई गई?

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बीबीसी हिस्ट्री पर छपे एक लेख के मुताबिक, पैट्रिक हॉलैंड नाम के आयरिश कैदी ने दावा किया था कि उसे जेल में मैकमोहन नाम के कैदी ने बताया था कि माउंटबेटन की हत्या ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने करवाई थी. हॉलैंड माउंटबेटन हत्याकांड पर एक किताब लिखने की तैयारी कर रहा था, लेकिन एक दिन वो मृत पाया गया. इतना ही नहीं, ऐसा भी माना जाता है कि माउंटबेटन की हत्या के पीछे अमेरिकी एजेंसी सीआईए का हाथ था.

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