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सिगरेट-बीड़ी ही नहीं, बाल से भी 100 गुना पतला कण बना आफत... समझें- कैसे नॉन-स्मोकर्स को हो रहा लंग कैंसर

लंग कैंसर अब स्मोकिंग करने वालों को ही नहीं, बल्कि नॉन-स्मोकर्स को भी अपना शिकार बना रहा है. हाल ही में एक स्टडी आई है, जिसमें बताया गया है कि भारत में लंग कैंसर के आधे से ज्यादा मरीन नॉन-स्मोकर्स हैं. ऐसे में जानते हैं कि सिगरेट-बीड़ी नहीं पीने वाले लोग कैसे लंग कैंसर की पीड़ित बन जा रहे हैं.

भारत में लंग कैंसर के मामले बढ़ने लगे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीरः Getty) भारत में लंग कैंसर के मामले बढ़ने लगे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीरः Getty)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 4:50 PM IST

लंग कैंसर को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. एक नई स्टडी में सामने आया है कि भारत में लंग कैंसर युवाओं में तेजी से फैल रहा है. हैरान करने वाली एक बात ये भी है कि लंग कैंसर के ज्यादातर मरीज वो हैं, जिन्होंने कभी स्मोकिंग नहीं की.

साइंस जर्नल 'लैंसेट' में साउथईस्ट एशिया में लंग कैंसर पर एक स्टडी छपी है. इसमें बताया गया है कि अब लंग कैंसर तेजी से नॉन-स्मोकर्स में भी फैलता जा रहा है.

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इस स्टडी के मुताबिक, लंग कैंसर तीसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है. इसमें बताया गया है कि 2020 में दुनियाभर में लंग कैंसर के 22 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए थे, जबकि लगभग 18 लाख लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, 2020 में भारत में लंग कैंसर के 72,510 नए मरीज मिले थे और उस साल इससे 66,279 मरीजों की मौत हो गई थी. भारत में 2020 में कैंसर से जितनी मौतें हुईं, उनमें से 7.8% लंग कैंसर के कारण हुई थीं.

लंग कैंसर पर डराते दो आंकड़े

- पहलाः स्टडी में बताया गया है कि भारत में लंग कैंसर का पता चलने की औसत उम्र पश्चिमी देशों की तुलना में 10 साल कम है. भारत में लंग कैंसर होने की औसत उम्र 28.2 साल है. हालांकि, इसकी एक वजह भारत की युवा आबादी भी हो सकती है. पश्चिमी मुल्कों में लंग कैंसर का पता 54 से 70 साल की उम्र के बीच चलता है. जबकि, अमेरिका में औसत उम्र 38 साल और चीन में 39 साल है. 

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- दूसराः भारत में फेफड़ों का कैंसर तेजी से फैल रहा है. 1990 में भारत में हर एक लाख आबादी पर लंग कैंसर की दर 6.62 थी, जो 2019 में बढ़कर 7.7 हो गई. यानी, 2019 में हर एक लाख लोगों में से 7.7 लोग लंग कैंसर से पीड़ित थे. 1990 से 2019 के दौरान यही पुरुषों में 10.36 से बढ़कर 11.16 और महिलाओं में 2.68 से 4.49 हो गई है.

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(फाइल फोटो- Getty Images)

नॉन-स्मोकर्स भी हो रहे लंग कैंसर के मरीज

हैरान करने वाली बात ये है कि अब लंग कैसर के ज्यादातर ऐसे मरीज भी सामने आ रहे हैं, जिन्होंने कभी बीड़ी-सिगरेट नहीं पी. 

इस स्टडी में बताया गया है कि भारत में लंग कैंसर के 40 से 50 प्रतिशत और साउथ एशिया में 83 प्रतिशत महिला मरीजों ने कभी स्मोकिंग नहीं की थी.

टाटा मेडिकल कॉलेज से जुड़े डॉ. कुमार प्रभाष ने इस स्टडी में लिखा है कि उनके यहां आने वाले लंग कैंसर के 50% से ज्यादा मरीज नॉन-स्मोकर्स थे.

नॉन-स्मोकर्स कैसे हो रहे शिकार?

इसके दो कारण हैं. पहला- पैसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोकिंग. और दूसरा- प्रदूषण. स्टडी के मुताबिक, वर्कप्लेस पर हर 10 में से 3 वयस्क व्यक्ति पैसिव स्मोकिंग का शिकार होता है. 

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इसका मतलब हुआ कि आप तो स्मोक नहीं कर रहे, लेकिन आपके आसपास के लोग स्मोकिंग कर रहे हैं, जिस कारण उसका धुआं आपके शरीर के अंदर भी चला जाता है.

इसके अलावा, खदानों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले नॉन-स्मोकर्स भी लंग कैंसर के मरीज बन जाते हैं, क्योंकि इन जगहों पर काम करने से हानिकारक केमिकल और गैसें शरीर के अंदर चली जाती हैं. 

लैंसेट ने स्टडी में बताया है कि शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण नॉन-स्मोकर्स में लंग कैंसर के खतरे को बढ़ा रहा है. स्टडी बताती है कि हवा में मौजूद PM2.5 सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है. PM2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रॉन का कण. 

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(फाइल फोटो- Getty Images)

कितना खतरनाक है PM2.5?

वातावरण में मौजूद PM2.5 को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है. ये बहुत ही महीन कण होता है. ये इंसानी बाल से भी 100 गुना ज्यादा पतला होता है.

ये इतने छोटे होते हैं कि नाक और मुंह के जरिए सीधे हमारे शरीर में घुस सकते हैं. जैसे ही ये हमारे शरीर में आते हैं तो दिल और फेफड़ों को प्रभावित कर सकते हैं और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं. हवा में जब इन कणों की मात्रा बढ़ जाती है तो न सिर्फ प्रदूषण बढ़ता है बल्कि हमारा स्वास्थ्य भी खराब होता है.

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PM2.5 में नाइट्रेट और सल्फेट एसिड, केमिकल, मेटल और धूल-मिट्टी के कण होते हैं. ये कण इतने छोटे होते हैं कि फेफड़ों में काफी अंदर तक घुस सकते हैं और गंभीर रूप से बीमार कर सकते हैं. इस कारण दिल और फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों की मौत भी हो सकती है. जबकि, स्वस्थ लोगों को इससे हार्ट अटैक, अस्थमा और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी हो सकती है.

इसी साल जनवरी में एक स्टडी आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि दुनियाभर में PM2.5 की सबसे ज्यादा मात्रा भारत में है. वहीं, दिल्ली में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा है. इस स्टडी में दावा किया गया था कि सर्दी के मौसम में भारत में घर के अंदर की हवा बाहर की हवा से 41% ज्यादा प्रदूषित होती है. 

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