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महाराष्ट्र और कर्नाटक में किस बात पर है सीमा विवाद? आखिर क्यों आमने-सामने हैं दो BJP शासित राज्य

Maharashtra-Karnataka Border Dispute: महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद पर 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. ये मामला 18 साल से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. दोनों राज्यों के बीच का ये सीमा विवाद पांच दशकों से भी ज्यादा पुराना है.

 महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई. (फाइल फोटो-PTI) महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई. (फाइल फोटो-PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST

Maharashtra-Karnataka Border Dispute: महाराष्ट्र और कर्नाटक... दोनों ही जगह बीजेपी सत्ता में है और दोनों ही राज्य अब आमने-सामने आ गए हैं. कारण है दोनों राज्यों के बीच पांच दशकों से चला आ रहा सीमा विवाद.

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच लंबे समय से सीमा विवाद है. इस मामले में 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.

हाल ही में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, 'महाराष्ट्र का कोई भी गांव कर्नाटक में नहीं जाएगा. हमारी सरकार कर्नाटक के बेलगाम, निप्पणी और कारावार जैसे मराठी भाषी गांवों को पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से लड़ाई लड़ेगी.'

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कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने इसे भड़काऊ बयान बताया और कहा, 'उनका (फडणवीस) सपना कभी पूरा नहीं होगा. हमारी सरकार राज्य की जमीन, जल और सीमा की सुरक्षा करने के लिए कमिटेड है.' 

बोम्मई ने कहा कि कर्नाटक के सीमावर्ती जिलों का कोई भी हिस्सा छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने तो ये भी कहा कि हमारी मांग तो ये भी है कि महाराष्ट्र के सोलापुर और अक्कलकोट जैसे कन्नड़ भाषी इलाकों को कर्नाटक में मिला देना चाहिए.

बोम्मई ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने सीमा के मुद्दे को लेकर 2004 में सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया था. उन्हें अभी तक कामयाबी नहीं मिली है और आगे भी नहीं मिलेगी. हमारी सरकार मजबूती से कानूनी लड़ाई लड़ेगी.

महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमा विवाद इतना गहरा है कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट से ये मसला सुलझ नहीं जाता, तब तक विवादित इलाकों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर देना चाहिए. इतना ही नहीं, जनवरी 2021 में ठाकरे ने तो विवादित इलाकों को 'कर्नाटक अधिकृत महाराष्ट्र' तक कह डाला था.

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विवाद समझने से पहले समझिए राज्य कैसे बने?

1947 में आजादी मिलने के बाद देश में भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे की मांग उठने लगी. पहले श्याम धर कृष्ण आयोग बना. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन को देशहित के खिलाफ बताया.

लेकिन लगातार उठ रही मांगों के बाद 'जेवीपी' आयोग बना. यानी जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का सुझाव दिया.

इसके बाद 1953 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ. 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून बना और इस आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने. महाराष्ट्र को उस समय बंबई और कर्नाटक को मैसूर के नाम से जाना जाता था. 

अब जानते हैं विवाद क्या है?

आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. 

आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है. 

इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की.

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जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. 

इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. हालांकि, महाराष्ट्र बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. इस रिपोर्ट पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई थी.

महाराष्ट्र दावा करता है कि उन गांवों में मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है, इसलिए वो उसे दिए जाएं. जबकि, कर्नाटक का कहना है कि राज्य की सीमाएं पुनर्गठन कानून के तहत तय हुई हैं, इसलिए वही आखिरी है. 

सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है मामला

18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी.

2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है.

ये मामला अभी तक सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. इस मामले में अब 30 नवंबर को सुनवाई होगी.

 

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