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कानून ही नहीं... क्यों सेक्सुअल असॉल्ट के शिकार पुरुषों को न्याय नहीं दे पा रहीं अदालतें?

सेक्सुअल असॉल्ट का शिकार हुए पुरुषों को इंसाफ देने के लिए कोई कानून नहीं है. इसे लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब भी मांगा है. आईपीसी में धारा 377 थी, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में ऐसे कोई प्रावधान नहीं है.

पुरुषों के खिलाफ यौन हिंसा को लेकर कानून नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Meta AI) पुरुषों के खिलाफ यौन हिंसा को लेकर कानून नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Meta AI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 5:02 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने बगैर सहमति के बने समलैंगिंक सहमति को अपराध के दायरे से बाहर करने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार गेडेला की बेंच ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में इसे लेकर कोई प्रावधान ही नहीं है. सवाल उठता है कि अगर ये बीएनएस में नहीं है, तो क्या ये अपराध है?

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याचिकाकर्ता ने मांग की है कि बगैर सहमति से बने समलैंगिंक संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को बहाल करे या रेप से जुड़े कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए.

दरअसल, 1 जुलाई से आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता लागू हो गई है. आईपीसी में धारा 377 थी, जो बगैर सहमति के बने अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बनाती थी. लेकिन बीएनएस में इसे पूरी तरह से बाहर रखा गया है.

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर कोई विसंगति है तब भी अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती और संसद को कोई प्रावधान लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती. उन्होंने कहा, ये कानून का नया अवतार नहीं है, ये कानून ही नया है. देखने वाली बात है कि अदालतें कितना दखल कर सकती हैं.

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हाईकोर्ट में क्या-क्या हुआ?

दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर किसी पुरुष के साथ कोई पुरुष यौन हिंसा करता है तो इसका कोई कानूनी उपाय नहीं है. उन्होंने कहा कि कोई एफआईआर दर्ज ही नहीं की जा सकती.

इस पर कोर्ट ने कहा, 'अगर कोई अपराध है ही नहीं, तो अदालत तय नहीं कर सकती कि क्या सजा हो. ये उनपर निर्भर करता है कि वो इसे अपराध बनाना चाहते हैं या नहीं.'

इसके बाद अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इस मामले में अब अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी.

377 पूरी तरह खत्म होना, कितनी चिंता की बात?

पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने संसद में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का बिल पेश किया था. इसके बाद इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया था.

संसदीय समिति ने भी धारा 377 के प्रावधानों को बीएनएस में शामिल करने का सुझाव दिया था. समिति ने कहा था कि बगैर सहमति के बने समलैंगिक संबंध को अपराध घोषित किया जा जाए. धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध बनाती थी. ये धारा सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाओं, ट्रांसजेंडर्स और जानवरों के साथ बनाए गए अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे में लाती थी.

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लेकिन सरकार ने इस सिफारिश को नहीं माना था. अब चूंकि अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बनाने वाला कोई कानून नहीं है, इसलिए सिर्फ समलैंगिकिता ही नहीं, बल्कि पुरुष और महिला के बीच बने अप्राकृतिक यौन संबंध भी गैरकानूनी घोषित हो गए हैं.

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त कर दिया था. इससे सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर हो गए थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि बगैर सहमति से बनाए गए यौन संबंध को अभी भी धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा.

जानकारों का मानना है कि धारा 377 को पूरी तरह से खत्म कर देने से यौन उत्पीड़न के मामलों में पुरुषों और ट्रांसजेंडर्स को मिलने वाली कानूनी गारंटी छीन गई है.

धारा 377 के तहत कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान था, जिसे बढ़ाकर उम्रकैद तक किया जा सकता था. ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर जुर्माना भी लगाया जाता था.

यह भी पढ़ें: 'he' का मतलब सिर्फ पुरुष ही नहीं, समझें- कैसे पॉक्सो एक्ट में अब महिलाओं को भी बनाया जा सकता है आरोपी

नए कानून में क्या कुछ प्रावधान है?

धारा 377 जैसा प्रावधान बीएनएस में नहीं है, लेकिन अब भी कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो ऐसे कृत्यों को अपराध बनाती हैं.

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बीएनएस की धारा 140(4) में इसका प्रावधान है. इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति 'अप्राकृतिक वासना' के इरादे से किसी व्यक्ति का अपहरण करता है तो उसे 10 साल की जेल की सजा हो सकती है. हालांकि, ये धारा तभी लागू होगी जब अपहरण का मामला होगा.

इसी तरह बीएनएस की धारा 38 आत्मरक्षा में किसी की हत्या करने को अपराध के दायरे से बाहर करती है. धारा 38 में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी की 'अप्राकृतिक वासना' के खिलाफ अपने बचाव में सामने वाले की हत्या कर देता है तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा. हालांकि, 'अप्राकृतिक वासना' को परिभाषित नहीं किया गया है.

हालांकि, इस तरह के प्रावधान आईपीसी में भी थे. लेकिन इन प्रावधानों को लागू करने में कई चुनौतियां भी हैं. क्योंकि ऐसे मामले में अपहरण की बात को भी साबित करना होगा.

क्या कहते हैं आंकड़े?

भारत में कितने पुरुषों के साथ रेप होता है, इसके कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं. हालांकि, कुछ स्टडीज और रिसर्च बताती हैं कि सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी रेप का शिकार होते हैं.

पिछले साल अमेरिकी साइंस जर्नल में छपी एक स्टडी में अनुमान लगाया गया था कि 27% पुरुष और 32% महिलाओं ने अपने जीवन में कभी न कभी यौन उत्पीड़न का सामना किया है. इस जर्नल में एक स्टडी का हवाला देते हुए बताया गया था कि हर 33 में से 1 पुरुष के साथ या तो बलात्कार होता है या बलात्कार की कोशिश होती है. वहीं, हर 5 में से 1 पुरुष ऐसा है जो यौन हिंसा का शिकार होता है.

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अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (सीडीसी) ने 2010 से 2012 के बीच एक स्टडी की थी. इसमें सामने आया था कि हर 17 में से 1 पुरुष ऐसा है जिसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है.

'नेशनल अलायंस टू एंड सेक्सुअल वॉयलेंस' की रिपोर्ट बताती है कि बलात्कार के दर्ज 14% मामलों में पीड़ित लड़के या पुरुष होते हैं. हर 6 में से 1 लड़के और 25 में से 1 पुरुष यौन उत्पीड़न का शिकार होता है. इतना ही नहीं, पुरुषों के साथ यौन हिंसा करने वाले ज्यादातर पुरुष समलैंगिक नहीं होते.

अमेरिकी साइंस जर्नल में दावा किया गया कि पुरुषों के खिलाफ होने वाले यौन उत्पीड़न के 90 से 95 प्रतिशत मामले दर्ज नहीं होते. ऐसा इसलिए क्योंकि पुरुषों को लगता है कि पुलिस उनकी बात पर भरोसा नहीं करेगी और उन्हें अपनी बदनामी का डर भी सताता है.

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